माँ वैष्णो देवी की अतुलनीय कथा
माँ वैष्णो देवी की अतुलनीय कथा
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हिन्दू सभ्यता के मानने वाले व्यक्ति माँ वैष्णो देवी का गुणगान करते नहीं थकते है। हमारे ग्रंथो में छत्तीस हजार देवी देवताओ का वर्णन किया गया है। जिनमेँ माँ वैष्णो देवी को सर्वमान्य बताया गया है। हमारे ग्रंथो व पुराणो में ऐसे कई कथा है लेकिन उसमे सर्वोपरि यह एक कथा है। जो काफी प्रचलित हुई थी। जिसे पड़ सुन कर माँ के प्रति आपकी श्रद्धा और भक्ति और भी अटूट हो जाएगी।

माँ वैष्णो देवी ने अपने भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न होकर श्रीधर की नइया पार लगाई थी. माँ ने श्रीधर की अटूट भक्ति व सच्ची श्रद्धा से की जाने वाली पूजा अर्चना से प्रसन्न हो कर माता ने श्रीधर को दुनिया के सभी धर्मो से अवगत करते हुए संसार की महिमा से अवगत कराया था। माँ ने जिस जिस स्थान से श्रीधर को अवगत कराया था वह स्थान आज कई बड़े तीर्थ स्थान है। और लोग वहा अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए जाते है।

कटरा के समीप हंसाली गांव में श्रीधर का निवास था। नवरात्री में एक बार श्रीधर ने कन्या भोजन करवाया जिसमे माँ वैष्णो देवी बल कन्या के रूप में वहाँ भोजन के लिए आई एवं अंत में जाते समय माँ ने श्रीधर को भंडारे की बात कही और श्रीधर ने बालिका की बात मान कर गाँव भर में भंडारे का निमंत्रण दे दिया साथ ही भैरवनाथ को भी निमंत्रण दिया।

भंडारे का निमंत्रण पा कर सभी आश्चर्य चकित थे की यह कौन सी दिव्य बालिका है जो श्रीधर के घर भंडारा करवा रही है। जब माँ बालिका स्वरूप में सभी को भोजन प्रसादी बाट रही थी। तब भैरवनाथ ने कहा हम खीर- पूड़ी नहीं मांस खाएंगे और मदिरा पियेंगे। माँ के समझाने पर भी भैरवनाथ अपनी बात पर अड़ा रहा की उसे मांस के साथ मदिरा पीनी है। लेकिन माँ ने कहा यह ब्राम्हण का घर है यहाँ यह सब नहीं मिलेगा।

भैरवनाथ अपनी बात पर टस से मस नहीं हुआ और माँ को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन जैसे ही भैरवनाथ ने माँ का हाथ पकड़ा माँ वैसे ही वायु रूप में त्रिकूटा पर्वत की ओर चली गई। भैरवनाथ माँ का पीछा करने लगा।

वैष्णो देवी के साथ महावीर भी थे जब उन्हें प्यास लगी तब माँ ने बाण चलाकर एक जल की उत्त्पत्ति की और अपने बालो को धोया, उस स्थान को बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। आगे चल कर माँ ने 9 महीने तक एक गुफा में छुप कर अपना समय बिताया।

भैरवनाथ भी माँ का पीछा करता हुआ वहाँ आ पंहुचा। भैरवनाथ को एक सिद्ध साधु ने कहा की तू जिस कन्या को साधारण बालिका समझ रहा है वह कोई साधरण बालिका नहीं वह माँ वैष्णो देवी का बालिका रूप है। लेकिन भैरवनाथ नहीं माना। माँ जिस स्थान में नो माह रही थी आज उस स्थान को गर्भजून, आदिकुमारी या अर्द्धकुमारी के नाम से जाना जाता है।

जिस स्थान पर माँ ने भैरवनाथ को पलट कर देखा था। उस स्थान पर माँ की चरण पादुका आज भी है। माँ ने अपना रूप गुफा से बाहर निकलने के बाद धारण किया था। और भैरवनाथ को सचेत किया था की वह पुनः चला जाये किन्तु वह नहीं माना। माँ गुफा में प्रस्थान कर गई और गुफा के द्वार पर हनुमान ने पहरा दिया था। जिस समय हनुमान और भैरवनाथ के बीच युद्ध चल रहा था उस समय माँ ने महा काली का रूद्र अवतार ले कर भैरवनाथ का संहार किया ।

जिस स्थान पर माँ ने भैरवनाथ का सर कटा था उसका सर उस स्थान से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत पर गिरा। उस स्थान को भैरव घाटी के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर माँ ने भैरव को संहारा था वह स्थान पवित्र गुफा के नाम से जानी जाती है। उस स्थान पर महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी विराजमान है। जिन्हे माँ वैष्णो देवी के नाम से जाना जाता है।

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