यह दर्दनाक घटना एक उस परिवार की है। जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी और दो बच्चे थे। जो जैसे तैसे अपना जीवन घसीट रहे थे। घर का मुखिया एक लम्बे अरसे से बीमार था। घर की जो भी जमा पूंजी थी वह डॉक्टरों की फ़ीस और दवाखानों पर लग चुकी थी। लेकिन वह अभी भी चारपाई से लगा हुआ था। और एक दिन इसी हालत में अपने बच्चों को अनाथ कर इस दुनिया से चला गया। रिवाज़ के अनुसार तीन दिन तक पड़ोस से खाना आता रहा, पर चौथे दिन भी वह मुसीबत का मारा परिवार खाने के इन्तजार में रहा मगर आस पास के सभी लोग अपने अपने काम धंधों में लग चुके थे, किसी ने भी इस घर की ओर ध्यान नहीं दिया।
बच्चे अक्सर बाहर निकलकर सामने वाले सफेद मकान की चिमनी से निकलने वाले धुएं को आस लगाए देखते रहते। नादान बच्चे यही समझ रहे थे कि उनके लिए खाना तैयार हो रहा है। जब भी कुछ क़दमों की आहट आती उन्हें लगता कोई खाने की थाली लेकर आ रहा है। वो बाहर दरवाजे की ओर भागते मगर कभी भी उनके दरवाजे पर दस्तक न हुई।
माँ तो माँ होती है, उसने घर से रोटी के कुछ सूखे टुकड़े ढूंढ कर निकाले। इन सूखे टुकड़ों से ही बच्चों को जैसे-तैसे बहला फुसला कर सुला दिया। अगले दिन फिर भूख सामने खड़ी थी। घर में था ही क्या जिसे बेचा जाता, फिर भी काफी देर "खोज" के बाद चार चीज़ें निकल आईं। जिन्हें बेच कर शायद दो समय के भोजन की व्यवस्था हो गई।
बाद में क्या वह पैसा भी खत्म हो गया तो जान के लाले पड़ गए। भूख से तड़पते बच्चों का चेहरा माँ से देखा नहीं गया। सातवें दिन विधवा माँ ही बड़ी सी चादर में मुँह लपेट कर मुहल्ले की पास वाली दुकान पर जा खड़ी हुई। दुकानदार से महिला ने उधार पर कुछ राशन माँगा तो दुकानदार ने साफ इंकार ही नहीं किया बल्कि दो चार बातें भी सुना दीं और दुकान से भगा दिया ।
उस बेबस लाचार माँ को खाली हाथ ही घर लौटना पड़ा। एक तो बाप के मरने से अनाथ होने का दुख और ऊपर से लगातार भूख से तड़पने के कारण उसके सात साल के बेटे की हिम्मत तो मानो जवाब ही दे गई और वह तेज बुखार से पीड़ित होकर चारपाई पर पड़ गया। बेटे के लिए दवा कहाँ से लाती, खाने तक का तो ठिकाना था नहीं।
तीनों घर के एक कोने में सिमटे पड़े थे। माँ बुखार से आग बने बेटे के सिर पर पानी की पट्टियां रख रही थी, जबकि पाँच साल की छोटी बहन अपने छोटे हाथों से भाई के पैर दबा रही थी। अचानक वह उठी, माँ के कान से मुँह लगा कर के बोली माँ, भाई कब मरेगा ? ? ? ? ?
माँ के दिल पर तो मानो जैसे तीर चल गया, तड़प कर उसे छाती से लिपटा लिया और पूछा मेरी बच्ची, तु यह क्या कह रही है ? बच्ची ने बड़ी मासूमियत से बोली, "हाँ माँ ! भाई मरेगा तब तो लोग खाना देने आएँगे ना ? ?
हमारा उद्देश्य केवल ये बताना हे की सभी लोग कृपया अपनी अपनी दौलत को धर्म और बाबाओ के नाम पर चढ़ावा चढ़ाने की बजाय किसी असहाय भूखे को खाना खिलाकर पुण्य प्राप्त करें। इससे सारे जहाँ के मालिक भी खुश होंगे और आपके मन को भी सुकून मिलेगा साथ ही आपको इतने आनंद की प्राप्ति होगी जो आप सोच भी नहीं सकते ।
अपनी धन दौलत का कुछ भाग भूखे, असहाय और सही मायने में गरीब की मदद में करें न की धर्म और बाबाओ के यहाँ व्यर्थ करें ताकि आगे कोई भी बहन भूख के कारण अपने भाई के मरने की दुआ ना करे