सुबह से नजर आ रहा है भगवान शिव और पार्वती की आराधना में लीन महिलाओं का नजारा
सुबह से नजर आ रहा है भगवान शिव और पार्वती की आराधना में लीन महिलाओं का नजारा
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हमारे इस भारतवर्ष में हरतालिका तीज व्रत  की एक बड़ी महत्वता है .पति की लम्बी आयु के लिए,एक अच्छा पति मिलने के लिए ,महिलाएं सुबह से स्नान कर भगवान भोलेनाथ और माँ पार्वती की आराधना में जुट गई है. चारों और बड़े ही विधि-विधान से पूजा-पाठ चल रही है .महिलाये विधि पूरक भगवान शिव को जल, दूध, दही , मक्खन से स्नान करा रही हैं फूल और बेलपत्र से भगवान भोलेनाथ का सिंगार किया जा रहा है. भगवान शिव को लिंग रूप में स्थापित कर उनका बड़े ही सुन्दर ढंग से श्रृंगार किया जा रहा है .चरों और मन्त्रों की गूंज सुनाई दे रही है. मन्त्रों से भगवान शिव की पूजा आराधना की जा रही है. 

सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह शृंगार करके सुबह से भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा-अर्चना में जुट गई है. इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जा है और फिर हरितालिका तीज की कथा भी सुनी जा रही है  माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जा रहा है .सांसारिक तापों को हरने वाले हरितालिका व्रत को बड़े ही विधि पूर्वक किया जा रहा है.


धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है की इस व्रत को सबसे पहले शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती जी ने शादी से पहले किया था. इसलिए इस व्रत की बहुत मान्यता है. कहते हैं मां पार्वती ने जंगल में जाकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई सालों तक ताप किया था.और उन्होंने ये व्रत बिना पानी पिये लगातार किया था.जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था. 

पंडितों और शास्त्रीयों के मुताबिक़ -इस बार तृतिया व्रत सुबह 5 बजे से ही होने की जानकारी है. इसलिए व्रत रखने वाली महिलाएं और लड़कियां इससे पहले ही दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर पूजा पाठ में जुट गई है. इसके अलावा पूजा करने का सही मुहूर्त शाम 6 बजकर 04 मिनट से रात 8 बजकर 34 मिनट तक है.इस दौरान की गई पूजा लाभदायी मानी जाएगी.

कैसे पड़ा हरितालिका नाम
युवतियों द्वारा मनाया जाने वाला यह पवित्र पर्व के संबंध में हमारे पौराणिक शास्त्रों में इसके लिए सधवा-विधवा सबको आज्ञा दी गई है.इस व्रत को 'हरतालिका' इसीलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उन्हें पिता-प्रदेश से हर कर घनघोर जंगल में ले गई थी। 'हरत' अर्थात हरण करना और 'आलिका' अर्थात सखी, सहेली,

हरतालिका तीज की पूजन सामग्री
हरतालिका पूजन के लिए - गीली काली मिट्टी या बालू रेत। बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, नाडा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते, फुलहरा (प्राकृतिक फूलों से सजा)

पार्वती मां के लिए सुहाग सामग्री- मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा आदि. श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत इत्यादि 

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