एवेरेस्ट चढ़ने वालों को राह दिखाने का काम करती है ये 300 से अधिक लाशें
एवेरेस्ट चढ़ने वालों को राह दिखाने का काम करती है ये 300 से अधिक लाशें
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नई दिल्ली: विश्व के सबसे ऊंचे शिखर एवरेस्ट की चढ़ाई बेहद खतरनाक साबित हुई है और बीते 9 दिनों में 11 पर्वतारोहियों की मृत्यु हो चुकी है. एवरेस्ट पर फतह का पहला नाकाम प्रयास 1921 में हुआ था. जबकि पहली कामयाबी 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने प्राप्त की. एवरेस्ट पर चढ़ाई विश्व के सबसे कठिन और संघर्षपूर्ण कामों में से एक है.

एवरेस्ट पर चढ़ने की पहली कोशिश से लेकर अब तक 308 से अधिक पर्वतारोहियों की मृत्यु हो चुकी है. 8848 मीटर (29,029 फीट) ऊंचे एवरेस्ट में सबसे अधिक मौतें 8000 मीटर (26,000 फीट) और उसके ऊपर से आरंभ होती हैं. इसे डेथ जोन कहा जाता है. एवरेस्ट पर मरने वाले पर्वतारोहियों की लाश के वापस लाना बेहद कठिन होता है. इसलिए उन्हें वहीं छोड़ दिया जाता है. पर्वतारोहियों की लाशों से ही एवरेस्ट पर चढ़ने के रास्ते का पता चलता है. 

ये लाशें एवरेस्ट फतह करने के लिए भविष्य में आने वाले पर्वतारोहियों के लिए मील के पत्थर का कार्य करते हैं. इन्हीं शवों को देखकर नए पर्वतारोहियों को सही राह के बारे में मालूम चलता है. एवरेस्ट पर 98 वर्षों से पड़ी ये लाशें सड़ती नहीं हैं. इसका सबसी बड़ी वजह यह है एवरेस्ट का तापमान. एवरेस्ट का न्यूनतम तापमान -16 डिग्री से - 40 डिग्री तक रहता है. इस तापमान में मरे हुए पर्वतारोहियों की लाश खराब नहीं होती.

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