3 मई को है मोहिनी एकादशी, जानिए इससे जुडी दो कथाएं
3 मई को है मोहिनी एकादशी, जानिए इससे जुडी दो कथाएं
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हर महीने आने वाली एकदशी में इस महीने मोहिनी एकादशी है. जी हाँ, आने वाले 03 मई को यह एकदशी है. ऐसे में प्रात: 9 बजकर 9 मिनट से प्रारंभ होगी और यह 04 मई को 06 बजकर 12 मिनट पर समाप्‍त होगी. इसी के साथ एकादशी का व्रत दशमी तिथ‍ि से ही यान‍ि की 02 मई के सूर्यास्‍त से शुरू हो जाता है इसलिए जब सूर्य अस्‍त हो जाएं तो उसके बाद भोजन नहीं करना चाहिए. तो आइए आज जानते हैं पुराणों में मिलने वाली एकादशी से जुडी कथाएं.


कथा मिलती है कि, ''एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने देवकी नंदन श्रीकृष्‍ण से पूछा वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम और उसकी कथा क्‍या है? उन्‍होंने न‍िवेदन किया क‍ि हे माधव कृपा करके व्रत की विधि भी व‍िस्‍तारपूर्वक बताएं. इसपर श्रीकृष्ण ने कहा क‍ि हे धर्मराज, मैं जो कथा आपसे कहने जा रहा हूं, इसे गुरु वशिष्‍ठ ने मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम से कहा था. कथा इस प्रकार है कि एक बार श्रीराम ने गुरु वशिष्‍ठ से पूछा कि हे गुरुदेव, ऐसा कोई व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए. मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं.

श्रीराम के इस सवाल पर गुरु वशिष्ठ बोले- हे राम, यह बहुत ही उत्‍तम सवाल है. आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है. उन्‍होंने कहा क‍ि वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है. यह व्रत करने से मनुष्य के समस्‍त पापों तथा दु:खों का नाश हो जाता है. वह सभी मोहजाल से भी मुक्त हो जाता है. महर्षि ने कहा कि मोह किसी भी चीज का हो, मनुष्य को कमजोर ही करता है. इसलिए जो भी व्‍यक्ति मोह से छुटकारा पाने की कामना रखते हैं उनके लिए यह मोहिनी एकादशी का व्रत अत्‍यंत उत्‍तम है.

मोहिनी एकादशी को लेकर एक और कथा मिलती है- इसके अनुसार सरस्‍वती नदी के सुंदर तट पर भद्रावती नाम की सुंदर नगरी थी. जहां चंद्रवंश में जन्‍में सत्‍यप्रतिज्ञ धृतिमान नामक राजा हुए. उसी नगर में एक वैश्य रहता था जो धन-धान्‍य से परिपूर्ण और समृद्धिशाली था. उसका नाम था धनपाल. वह सदा ही पुण्‍यकर्मों में लगा रहता था. साथ ही वह भगवान विष्णु का अनन्‍य भक्‍त था. उसके पांच पुत्र थे. जिनके नाम सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्‍ट्बुद्धि . धनपाल के अन्‍य पुत्र तो उसी की ही भांति थे. लेकिन धृष्‍ट्बुद्धि हमेशा ही पापकर्मों में लिप्‍त रहता था.

धनपाल अपने पुत्र धृष्‍ट्बुद्धि से बहुत दु:खी रहता था. एक द‍िन उसने परेशान होकर धृष्‍ट्बुद्धि को घर से ही निकाल द‍िया. इसके बाद वह दर-दर भटकने लगा. उसकी खराब आदतों की वजह से किसी ने कुछ भी खाने-पीने को नहीं द‍िया. भूख-प्‍यास से व्‍याकुल धृष्‍ट्बुद्धि महर्षि कौंड‍िन्‍य के आश्रम जा पहुंचा और हाथ जोड़ कर बोला महर्षि मैं अपराधी हूं किंतु मेरा कल्‍याण करें. कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरी मुक्ति हो जाए. तब म‍हर्षि ने उसे मोहिनी एकादशी की व्रत व‍िध‍ि और महत्‍व बताया.

महर्षि कौंड‍िन्‍य ने कहा कि हे जातक वैशाख के शुक्ल पक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से एकादशी का व्रत करो. यह व्रत करने से प्राणियों के अनेक जन्मों में किए हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं. महर्षि के यह वचन सुनकर धृष्‍ट्बुद्धि का मन प्रसन्‍न हो गया. उसने गुरु के अनुसार बताई गई विधि से ‘मोहिनी एकादशी’ का व्रत किया. इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरूढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया. 

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