सेना मजबूत तो देश सुरक्षित: 5.94 लाख करोड़ का रक्षा बजट, 1959 में हुई थी बड़ी गलती
सेना मजबूत तो देश सुरक्षित: 5.94 लाख करोड़ का रक्षा बजट, 1959 में हुई थी बड़ी गलती
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नई दिल्ली: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार (1 फरवरी) को देश का आम बजट पेश कर दिया। बजट में वर्ष 2023-24 के लिए रक्षा क्षेत्र (Defense sector) के लिए कुल 5.94 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। यह राशि कुल बजट की लगभग आठ फीसदी है। पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इस बार रक्षा बजट में 70 हजार करोड़ रुपए का इजाफा किया गया है। गत वर्ष (5.25 लाख करोड़) के मुकाबले यह 13 प्रतिशत अधिक है।

सीतारमण के अनुसार, रक्षा क्षेत्र को आवंटित बजट में से 1.62 लाख करोड़ रुपए हथियार और गोला-बारूद खरीदने के लिए स्वीकृत किए गए हैं। वहीं, 2.70 लाख करोड़ रुपए जवानों के वेतन और उनके लिए आवश्यक संसाधन जुटाने पर खर्च किए जाएंगे। इसके साथ ही 1 लाख 38 हजार करोड़ रुपए की रकम सेवानिवृत्त (Retired) सैनिकों के पेंशन के लिए रखी गई है। यदि पिछले 4 रक्षा बजट पर नजर डालें, तो यह साल दर साल बढ़ता गया है। वर्ष 2019-20 में रक्षा बजट 4.31 लाख करोड़ रुपए था, वहीं 2020-21 में इसे बढ़ाकर 4.71 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया। 2021-22 में देश की रक्षा के लिए 4.78 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। इसी प्रकार वर्ष 2022-23 के लिए 5.25 लाख करोड़ रुपए का रक्षा बजट रहा। 

जब पंडित नेहरू ने की थी बजट में कटौती:-

किन्तु, यदि अतीत में झाँका जाए, तो एक दौर ऐसा भी था, जब देश के प्रथम पीएम जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने रक्षा बजट में कटौती कर दी थी। उसके बाद चीन ने जो किया, वह भारतीय शौर्य के इतिहास पर सबसे गहरा जख्म बना। जिस समय चीन और भारत के बीच टकराव की स्थिति थी, उस समय पंडित नेहरू ने 1959 के रक्षा बजट घटा दिया था। इसके 3 साल बाद भारत-चीन में जंग छिड़ गई, जिसमे भारत बुरी तरह परास्त हुआ।

बता दें कि, वो वर्ष था 1959, जब नेहरू सरकार ने रक्षा बजट में 25 करोड़ रुपए की कटौती की थी। इसके अलावा केन्द्रीय बजट में 82 करोड़ रुपए घटाए गए थे। यह पीएम नेहरू का एक ऐसा फैसला था, जिसका खामियाज़ा देश को भुगतना पड़ा, इसी वजह से भारतीय सेना 1962 के युद्ध में बुरी तरह हारी। भारत न केवल युद्ध हारा, बल्कि अक्साई चीन स्थित कई हज़ारों स्क्वायर किलोमीटर भूमि भी चीन के कब्ज़ा में चली गई। तत्कालीन नेहरू सरकार को चीन के हमलों को लेकर कई बार चेतावनी मिली थी, 1962 से करीब 2.5 वर्ष पूर्व चीनी सैनिकों ने सीमा पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया था। इसके बाद भी जवाहर लाल नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन को सेना से राय-मशवरे और चर्चा की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। उसका परिणाम यह निकला कि भारत को अपने इतिहास की सबसे बुरी शिकस्त का सामना करना पड़ा।

नेहरू ने सेना द्वारा दिए गए तमाम संकेतों को अनदेखा किया और सेना को सशक्त करने की कोई छोटी कोशिश तक नहीं की। रिपोर्ट्स में यहाँ तक कहा जाता है कि पंडित नेहरू और तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन ने योजनाबद्ध तरीके से जनरल थिमैया (1957 से 1961 तक आर्मी स्टाफ के सेनाध्यक्ष) को बदनाम करने की भी योजना बनाई थी। यही नहीं 1959 के पहले भी नेहरू भारतीय सेना को भंग करना चाहते थे। मेजर जनरल डीके ‘मोंटी’ पाटिल (Major General DK “Monty” Palit) द्वारा लिखी गई एक पुस्तक, मेजर जनरल एए ‘जिक’ रुद्रा ऑफ़ इंडियन आर्मी (Major General AA “Jick” Rudra of the Indian Army) की बायोग्राफी के अनुसार, 'आज़ादी के कुछ वर्षों बाद नेहरू ने कहा था कि, 'भारत को ‘डिफेंस प्लान’ की आवश्यकता कैसे है ? अहिंसा हमारी नीति है। हमें सेना के लिहाज़ से कोई ख़तरा नहीं नज़र आता है। सेना को स्क्रैप (scrap) करो। सुरक्षा संबंधी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए पुलिस है।' लेकिन, जब हम मौजूदा दौर की चुनौतियों को देखते हैं, चीन-पाकिस्तान को आए दिन हमारी सरहदों पर गंदी नज़र रखते देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि, एक मजबूत और आधुनिक सेना हिंदुस्तान के लिए कितनी आवश्यक है

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