मोदी लाए रिलायंस डिफेन्स के अच्छे दिन
मोदी लाए रिलायंस डिफेन्स के अच्छे दिन
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सूट बूट की नरेंद्र मोदी की सरकार ने हाल ही में रूस में जाकर रिलायंस डिफेंस का कथित तौर पर प्रतिनिधित्व करते हुए एक बहुत बड़े रक्षा सोदे को हरी झंडी दे दी है मोदी की रूस की यात्रा के कुछ ही दिनों में रिलायंस डिफेंस ने एक बड़े खुलासे में यह बताया है कि उनकी रूस के साथ 5 S-400 एंटी बलास्टिक मिसाइल सिस्टम को खरीदने की डील तय हुई है.  5 S-400 सिस्टम की लगत लगभग 70 हजार करोड़ की है. रक्षा मंत्री मनोहर पारिख ने पहले ही नवंबर में जाकर इस सौदे की सारी प्रक्रिया पूरी करली थी.  इस वार्ता को मोदी एक कदम और आगे लगाए. 

माना जा रहा है इस डील के साइन होने के कुछ ही समय बाद रूस की तरफ से भी भारत के लिए बहुत बड़े योगदान की घोसना होगी. माना तो यह भी जा रहा है कि इस डील से तीनों पक्षों को बहुत ज्यादा फायदा होगा. पहला भारत दूसरा रूस और तीसरा रिलायंस. इस खबर के आते ही रिलायंस अधिकृत (44%) पीपावाव डिफेंस ने 20% की छलांग मारी है साथी रिलायंस इंडस्ट्रीज में सात प्रतिशत की छलांग मारी है. भारत और रूस में इस प्रकार कार की डील तो होती रही है लेकिन रिलायंस डिफेंस को इस डील से बहुत ज्यादा बड़ा फायदा मिला है. 

इस डील  का सकारात्मक पहलू भी देखा जा सकता है. असल में मोदी ने इस डील के जरिए मिसाइलें नहीं बल्कि पूरा आग का जखीरा ही खरीद लिया है. 6000 मिसाइलों के साथ लॉन्चिंग सिस्टम भी 5 S-400 ख़रीदे है. जिससे भारत की क्षमता 600 किलोमीटर तक हो जाएगी. इस पूरे मिसाइल सिस्टम की सबसे अच्छी बात यह है कि इस से 40 से 600 किलोमीटर दूर तक के टारगेट को निशाना बनाया जा सकता है मिसाइल बहुत ही उन्नति परिष्कृत तो नहीं मानी जा सकती क्योंकि इस मिसाइल को रूस ने 1990 में बनालिया था और अब लगभग 25 साल बाद इस मिसाइल को भारत में उपलब्ध कराया गया है.

दूसरा अमित्र देशों की नजर से देखा जाए तो यह रक्षा डील बहुत बड़ी है क्योंकि भारत के अलावा केवल चाइना रूस ब्रिटेन और यूरेशिया के कुल देशो के पास यह प्रणाली उपलब्ध है अन्य देशो में भी इस मिसाइल को खरीदने की अधिकारिक रौप से होड़ मची है  जैसे वियतनाम, सऊदी अरेबिया, कजाकिस्तान, इरानी अदि.

भारत के लिए एक यह  भी सकारात्मक पहलू  है कि मेक इन इंडिया को गति देने के लिए भारत में ही डिफेंस के साजो-सामान बनाने के लिए रिलायंस डिफेन्स अब रुसी डिफेन्स इंडस्ट्री एल्मा अन्तेज़  के साथ काम करेगी और वहां की टेक्नोलॉजी भारत को सिखाई जाएगी और इस मिसाइल को फिर भारत में भी बनाया जा सकेगा. विशेषज्ञों द्वारा डील को करने का दूसरा तरीका माना जा रहा था कि भारत के DRDO खुद इस रक्षा सौदे में लिप्त होकर इस मिसाइल की टेक्नोलॉजी लेकर खुद के देश में बनाता, लेकिन इस रक्षा सौदे में आने वाली लागत का एक बहुत बड़ा हिस्सा रिलायंस  डिफ़्रेंस भी देने वाली है.

कहते है कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है अब देखना यह भी है की आने वाले दिनों में रूस की तरफ से और कोई निवेश की घोषणा होती है? और होती है भी तो कितनी बड़ी? 

डॉ सुरुचि सिंह 
CHRC 

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