नोट-बदली के अमल की गलतियां और लोगों के कष्ट
नोट-बदली के अमल की गलतियां और लोगों के कष्ट
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मोदी सरकार ने बड़े नोटों को बदलने का जो निर्णय लिया वह एक ऐतिहासिक बदलाव का निर्णय है । इसके 32 लाभो की एक सूची तो हम पूर्व लेख में दे चुके हैं । परंतु इतने सारे लाभों के बावजूद इस निर्णय की तीखी आलोचना भी हो रही है । आम लोग वाकई इससे बहुत समस्याएं व तकलीफे झेल रहे हैं, इस बात से सरकार व प्रधानमंत्री भी इनकार नहीं करते हैं । इसके बड़े-बड़े फायदों को देखते हुए इसे जरुरी मानने में भी कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए। जो ख़ुफ़िया जानकारिया मिल रही थी उन्हें देखते हुए, इस निर्णय को अभी तुरंत कम तैयारी के साथ ले लेना भी, शायद सही ठहराया जाएं । फिर भी यहाँ यह देखना और सोचना जरुरी है कि वे क्या गलतियां हुई, जो यदि नहीं होती तो इतनी समस्याएं नहीं होती और लोगों को इतने कष्ट नहीं झेलना पड़ते, साथ ही यह नोट-बदली अधिक प्रभावी होती एवं इसके और भी अच्छे परिणाम मिलते।

सबसे बड़ी चूक: सरकार यदि यह कर लेती कि, शुरू दिन से ही जो भी व्यक्ति बैंको में सप्ताह में एक लाख रुपये से ज्यादा पुराने नोट जमा करवाये या बदलने लाये उसके लिये जरुरी होता कि वह अपने पास मौजूद कुल पुराने नोटों कि संख्या का, अपनी चल-अचल संपत्ति का एवं उनके सोर्स/ जरिये का एक घोषणापत्र भरे । यह तो स्वाभाविक है कि ऐसा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे वाला असली गरीब या निम्न वर्ग का तो नहीं होता, वह मध्यवर्ग या उच्च वर्ग का ही होता । निम्न वर्ग के लिए जैसे अभी दो-ढाई हजार के नोट बदलने की प्रक्रिया चली है वह चलने देते। घोषणापत्र भरने वालो के कारण गरीबो को नोट मिलने या बदलने की प्रक्रिया में कोई रूकावट नहीं आती; क्योंकि घोषणापत्र अलग लाइन में और/ या अलग काउंटर पर भरे जाते । इस प्रकार के घोषणापत्रों के निम्नानुसार लाभ होते:

1. काले धन वाले अपना धन अन्य लोगों के खातों में जमा नहीं करवा पाते और उसे छुपाने के अन्य रास्ते भी जल्दी नहीं ढूंढ पाते । चूँकि घोषणापत्रों में गलत जानकारी देना सख्त दंडनीय होता इसलिए किसी और का धन कोई अपना बताने की गलती नहीं करता । काले धन वाला अपना धन कम बताता तो या तो उसे उस धन को नष्ट करना पड़ता या फिर बाद में भी अधिक कर व पेनल्टी के साथ घोषित करना पड़ता ।

2. सरकार को जल्दी ही पता लग जाता कि किस-किस के पास बड़ी संख्या में कितना नकदी है और उसमें कितना सफ़ेद है कितना काला ?

3. असली निम्न वर्ग को छोड़कर, जब सभी को अपनी सभी संपत्तियों का विवरण भी घोषित करना पड़ता तो नकदी के अलावा अन्य प्रकार के काले धन की भी स्वयं द्वारा घोषित जानकारी तो सरकार को मिल जाती । यहाँ यदि कोई अपनी किसी संपत्ति को घोषित नहीं करता तो उससे हाथ धोने का खतरा उठाता । सरकार को बेनामी संपत्तियों पर कार्यवाही करने का विस्तृत ठोस आधार मिल जाता ।

4. सरकार फ़िलहाल अपने कई निकायों जैसे ‘नेशनल सैंपल सर्वे’ आदि के बड़े अमले के बड़े खर्चे से देश भर के संपत्तियों व आय-व्यय संबंधी आंकड़े जुटाने की बड़ी कवायद करती रहती है, फिर भी उसे सही जानकारियां नहीं मिलती, परंतु यहाँ मध्यम व उच्चवर्ग के लिए सही जानकारी देना एक मज़बूरी होता और सरकार सरकार को कम खर्च में सही आंकड़े मिल जाते ।

5. फ़िलहाल अनुमान है कि नोट-बदली की यह कष्टकारी कवायद 10-20% से अधिक काले धन को शायद ही ख़त्म कर पाए। पर यदि "सामूहिक स्व-घोषणा" का उक्त उपाय अपनाया गया होता तो निश्चित ही 80-90% काला धन सिस्टम से बाहर हो जाता।

6. नकदी व बेनामी संपत्ति ही नहीं लोगो को सोना, जेवरात व विदेशी मुद्रा की भी पूरी जानकारी घोषित करना पड़ती तो काली संपत्ति के सभी रूपों पर कार्यवाही करने में सरकार को बड़ी मदद मिलती । काली संपत्ति 'ऐसे नहीं तो वैसे' पकड़ी जाती।

7. सरकार को फिर से एक "स्वैच्छिक घोषणा (VDS)" का ऑफर नहीं देना पड़ता & बल्कि यह एक 'अनिवार्य स्व-घोषणा' का प्रावधान होता, जिसमें यदि लोग घोषित करते तो टेक्स व दंड भरते और यदि नहीं घोषित करते तो संपत्ति को खो देते । गलत घोषणापत्र भरना प्रमाणित होने पर उन्हें सजा ही नहीं मिलती बल्कि उनके नाम अखबारों में प्रकाशित भी होते तो यह डर सभी काले धन वालो को खुद मान लेने व टेक्स देने पर मजबूर कर देता ।

अन्य गलतियां:

1) नोट बदली घोषित करने से पहले यदि 2000 के नोटों के बजाय 500 के व 100 के नोट अधिक संख्या में तैयार होते तो लोगो की दिक्कते आधी हो जाती।

2) 500 व 2000 के नये नोटों का आकार एवं वजन वही रखा जाता, जो कि पुराने 500 व 1000 के नोटों का था (सिर्फ रंग, डिजाईन व आतंरिक फीचर्स बदले जाते), तो जो कठिनाई इन नोटों को ATM मशीनों में डालने में आई, वह नहीं आती और लोगो को जल्द ATM से पैसे मिलने लगते ।

3) इस ऐतिहासिक घोषणा का समय कई तरह से ज्यादा चुनौती भरा था, यदि इसे अभी टाला नहीं जा सकता था तो तीन चुनौतियों का शुरू से ध्यान रखना चाहिए था । पहली:- यह शादियों का मौसम था इसलिए शादी वाले परिवारों को ढाई लाख तक निकालने की जो छूट बाद में दी गयी वह जल्दी मिल जाना चाहिए थी । दूसरी:- यह रबी की बुवाई का भी समय था इसलिए किसानों को भी सुविधा जल्दी ही घोषित होना चाहिए थी तथा उन्हें बीज के अलावा खाद आदि के लिए भी कुछ राशि निकालने देना चाहिए थी । तीसरी:- सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों के मजदूरो को दैनिक मजदूरी मिल सकें, भले ही वह मालिक के हाथ में नहीं जाये, ऐसी कोई व्यवस्था बनानी चाहिए थी ।

4) प्रधानमंत्री ने यह घोषणा जब की तब तो कहा गया कि अब बैंक वालो को करीब बारह घंटे भिड़कर काम करना होगा तथा उन्हें साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलेगा। परंतु देखा यह गया कि सामान्यतः बैंक कर्मचारियों ने करीब 8 घंटे ही काम किया और केवल एक या दो दिन का ही उनका साप्ताहिक अवकाश निरस्त हुआ दो-तीन अवसर ऐसे आये जब बैंक दो या तीन दिनों तक बंद रहे । ATM व्यवस्था की भी पोल खुल गयी ।

5) ‘नोट बदलने की कवायद में लोगो की तकलीफे कब तक रहेगी ?’ इस सवाल का जवाब स्पष्ट दो टूक नहीं दिया गया सरकार को अपने स्टैंड बार-बार बदलना पड़े । इससे भ्रम और बेचैनी का वातावरण रहा तथा विपक्षियो को भी दुष्प्रचार का अधिक मौका मिला ।

6) कई मानवीय भूलों ने भी नकारात्मकता को बढ़ावा दिया जैसे 500 का नोट तीन प्रकार का छप गया और बीच में साढ़े चार हजार तक बदलने का निर्देश दे दिया जिस सीमा को बाद में घटाना पड़ा । टोल-टेक्स संबंधी निर्णय भी बार-बार बदले गये ।

7) अधिकांश बैंक शाखाओं में भी शाखा प्रबंधको ने लाइन में लगे लोगो के लिए अच्छा व्यस्थापन नहीं किया । यदि लाइन में लोगों को सिमित संख्या में टोकन बाँटे जाते और अधिक लोगो को फिजूल लंबी लाइन लगाने से मना कर दिया जाता तो लोगो को इतने कष्ट नहीं होते । इतने लोग नहीं मरते और समस्या भी अनावश्यक बड़ी नहीं दिखती ।

* हरिप्रकाश 'विसंत'

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