हल्द्वानी: "कब के बिछड़े हुए हम आज कहां आ के मिले" अमिताभ बच्चन की फिल्म लावारिस का ये गीत तो आप सभी ने सुना होगा, पर हक़ीक़त में ये घटना घटी है, चंपावत जिले के सुदूरवर्ती गांव चौड़ापिता, रीठा साहिब की रहने वाली 55 वर्षीया लक्ष्मी देवी के साथ. जिनका सबसे बड़ा बेटा प्रेम सिंह वर्ष 2005 से लापता हो गया था. बहुत खोजा, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला. पुलिस में भी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
समय गुजरता गया और थक हार कर लक्ष्मीदेवी ने प्रेम के जिन्दा होने की उम्मीद भी छोड़ दी, लेकिन 13 सालों के बाद बूढ़ी आँखों को फिर से रौशनी मिलने वाली है. और ये सब हुआ सरकार की आधार कार्ड योजना की मदद से. एक दिन लक्ष्मीदेवी के घर एक डाक आई, जिसमे एक आधार कार्ड था, शक्ल तो बूढ़ी आंखे जल्दी नहीं पहचान पाई, लेकिन नाम सुनते ही उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए. ये उसके बेटे प्रेम सिंह बोहरा का आधार कार्ड था, जो नवंबर 2017 में बना था.
उस आधार कार्ड पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था, जिस पर प्रेम के छोटे भाई ने कॉल करके अपने भाई से बात की, प्रेम ने घर आने की बात भी कही लेकिन कुछ समय बाद उसका फोन बंद हो गया, उसके बाद से प्रेम का फ़ोन बंद ही है. बूढ़ी माँ ने आशा के साथ पुलिस प्रशासन से अपने बेटे को ढूंढ़ने के लिए गुहार लगाई है. चंपावत के पुलिस अधीक्षक धीरेंद्र गुंज्याल ने बताया कि, मोबाइल नंबर का रिकार्ड निकालकर संबंधित जिले की पुलिस से संपर्क किया जाएगा। प्रेम को ढूंढने के लिए फिर प्रयास किए जाएंगे।
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