माहवारी स्वच्छता दिवस: कोलकाता से आकर झारखंड में माहवारी स्वच्छता संदेश फैला रही है यह लड़की
माहवारी स्वच्छता दिवस: कोलकाता से आकर झारखंड में माहवारी स्वच्छता संदेश फैला रही है यह लड़की
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साल 2018 में हुए एवेरटीन मेनस्ट्रउअल सर्वे में सामने आया था की भारत में 46 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के दौरान काम से अनुपस्थित रहती हैं. जी हाँ, एवेरटीन भारत में सेनेटरी उत्पादों का एक बड़ा ब्रैंड है और जाधवपुर यूनिवर्सिटी से सोशियोलॉजी में पीएचडी कर रही श्रीलेखा मूलत: कोलकाता की रहने वाली हैं. जी हाँ, आप सभी को बता दें कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान को माहवारी जागरूकता कार्यक्रम से जोड़ कर इस दिशा में एक नयी एवं खूबसूरत पहल की है. जी हाँ, उन्होंने फिलहाल म्यूरल पेटिंग (दीवारों पर की जानेवाली चित्रकारी) के जरिये देवघर के लोगों को माहवारी के संबंध में जागरूक करने के बारे में सोचा और उनकी कोशिश इस अभियान को झारखंड के अन्य जिलों में ले जाने की भी है.

जी हाँ, आपको बता दें कि श्रीलेखा ने 2014 में गैर-सरकारी संस्था नीड्स (नेटवर्क फॉर एंटरप्राइज एंहांसमेंट एंड डेवलपमेंट सपोर्ट) के संपर्क में आयीं. इसी के साथ यह संस्था झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र (देवघर, पाकुड़, साहेबगंज, जामताड़ा, खूंटी आदि) में बाल सुरक्षा एवं अधिकार, स्वास्थ्य, सफाई, आजीविका जैसे मुद्दों पर काम करती है. वहीं श्रीलेखा इस संस्था द्वारा संचालित एक जेंडर प्रोजेक्ट पर काम करने के दौरान झारखंड आयीं थीं. उनका मुख्य कार्यक्षेत्र देवघर था. आप सभी को बता दें कि इस प्रोजेक्ट में उन्हें ग्रामीण किशोर एवं किशोरियों को लैंगिक भेदभाव, सेक्स, सेक्सुअलिटी, रिप्रोडक्टिव हेल्थ आदि के विषय में जानकारी देनी थी.

वहीं इन मुद्दों पर काम करने के दौरान श्रीलेखा को महिला स्वास्थ्य, मातृत्व स्वास्थ्य, माहवारी स्वच्छता आदि के बारे में भी काफी रिसर्च करने का मौका मिला. उन्होंने महसूस किया इन मुद्दों पर, खास कर माहवारी के बारे में महिलाओं में जानकारी का काफी अभाव है. श्रीलेखा की मानें, तो उस वक्त तक 'माहवारी' उतना पॉपुलर टॉपिक नहीं था, जितना कि 'पैडमैन' और 'भूल्लू' जैसी मूवीज आने के बाद आज हो गया है. लोग इसके बारे में बात नहीं करते थे. 'पीरियड्स पर चर्चा' की हुई शुरुआत - श्रीलेखा ने माहवारी जागरूकता के इस गैप को भरने के लिए 'पीरियड्स पर चर्चा' नाम से एक कैंपेन शुरू किया. उनका उद्देश्य था- ''लोगों को, खास तौर से महिलाओं एवं लड़कियों को इस बारे में बात करने और अपनी समस्याएं शेयर करने के लिए अधिकाधिक प्रोत्साहित करना.'' श्रीलेखा बताती हैं- ''इस कैंपेन के तहत मैं समुदायों में जा-जाकर महिलाओं से उनके पहले माहवारी अनुभव के बारे में बात करना शुरू किया. ज्यादातर महिलाओं ने बताया कि उस वक्त उन्हें लगा कि उनके वजाइना में किसी जोंक (leech) ने घुस कर काट लिया है. इससे वे काफी डर गयी थीं.

उन्हें लग रहा था कि वे अब ज्यादा दिन नहीं बचेंगी. जल्द ही मर जायेगी. यह जानकर मेरे आश्यर्च की सीमा नहीं रही. तब मैंने इस दिशा में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ने की पहल की, क्योंकि ग्रामीण आबादी तक उनकी पहुंच मुझसे कहीं ज्यादा है. पिछले डेढ़ साल से मैंने चार जिलों- खूंटी, पाकुड़, साहेबगंज और चाइबासा के सैकड़ों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को माहवारी जागरूकता कार्यक्रम से जोड़ा है.''

श्रीलेखा ने कहा नीड्स संस्था ने उन्हें हर कदम पर सहयोग किया है. सरकारी प्रोग्राम केवल पैड वितरण से संबंधित झारखंड सरकार ने वर्ष 2015-16 में स्कूली छात्राओं के बीच एक साल तक बेहतर गुणवत्ता वाले सेनेटरी पैड वितरण हेतु करीब 25 करोड़ की राशि आवंटित की थी, लेकिन श्रीलेखा बताती हैं कि ''मैं पिछले डेढ सालों से पाकुड़, खूंटी, देवघर और चाइबासा में माहवारी जागरूकता विषय पर काम कर रही हूं. इन क्षेत्रों अब तक केवल एक ही बार (अक्टूबर 2018 में) छात्राओं को सरकार की ओर से सेनेटरी पैड मिले हैं और उनकी क्वालिटी भी बेहद निम्नस्तरीय है. गांवों में सरकार का काम केवल पैड वितरण तक सीमित होकर रह गया है. व्यावहारिक स्तर पर देखें, तो स्थिति आज भी जस-की-तस बनी हुई है. सरकार केवल आंकड़ों पर काम करती है.'' वहीं आप सभी को बता दें कि श्रीलेखा ने पिछले साल change.org के माध्यम से भी इस मुहिम को आगे बढ़ाने की पहल की, जिसमें अब तक उन्हें करीब डेढ लाख लोगों का सपोर्ट मिल चुका है.

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