चिकित्सकीय दुनिया का काला सच, 'मेडिकल किडनेपिंग'
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बंगलोर: अभिनव वर्मा की माँ ,जो केवल 50 वर्ष की थीं, पेट में दर्द उठा, पास में ही फोर्टिस अस्पताल बनेरघट्टा, बंगलौर है. डॉ कनिराज ने माँ को देखा और अल्ट्रा साउंड कराने के लिए कहा . फोर्टिस में ही अल्ट्रा साउंड किया गया और डॉ कनिराज ने बताया कि गाल ब्लैडर में पथरी है . एक छोटा सा ऑपरेशन करना होगा और माँ स्वस्थ हो जाएंगी . अभिनव माँ को घर लेकर आ गए और पेन-किलर के सेवन से दर्द खत्म भी हो गया.

कुछ दिन बाद अभिनव वर्मा को फोर्टिस से फोन कर डॉ कनिराज ने हिदायत दी कि यूँ पथरी का गाल ब्लैडर में रहना खतरे से खाली नहीं होगा, अतः अभिनव को अपनी माँ का ऑपरेशन तत्काल करा लेना आवश्यक है . अभिनव जब अपनी माँ को फोर्टिस बंगलौर लेकर पहुचे तो एक दूसरे डॉक्टर मो शब्बीर अहमद ने उन्हें अटेंड किया, जो एंडोस्कोपी के विशेषज्ञ थे, उन्होंने बताया कि एहतियात के लिए ERCP करा ली जाए, डा अहमद को पैंक्रियास कैंसर का 0:05 % शक था .

अभिनव विवश थे, डॉक्टर भगवान होता है, झूठ तो नहीं बोलेगा, सो पैंक्रियास और गाल ब्लैडर की बायोप्सी कर ली गई . रिपोर्ट नेगेटिव आई मगर बॉयोप्सी और एंडोस्कोपी की प्रक्रिया के बाद माँ को भयंकर दर्द आरंभ हो गया . गाल ब्लैडर के ऑपरेशन को छोड़, माँ को पेट दर्द और इंटर्नल ब्लीडिंग के संदेह में ICU में पंहुचा दिया गया . आगे पढ़ने के लिए थोड़ा धैर्य और बेहद सख्त दिल चाहिए .

जब अभिनव की माँ अस्पताल में भर्ती हुई थीं तो लिवर, हार्ट, किडनी और सारे ब्लड रिपोर्ट पूरी तरह नार्मल आए थे . डॉक्टरों ने बताना शुरू किया कि अब लिवर पर असर आने लगा है, फिर किडनी के लिए कह दिया गया कि डायलिसिस होगा . एक दिन कहा कि अब बीपी बहुत 'लो' जा रहा है तो पेस मेकर लगाना पड़ेगा, अब पेस मेकर लगा दिया गया, लेकिन हालात बद से बदतर हो गए . पेट का दर्द भी दिनों दिन बढ़ता जा रहा था और शरीर के अंग एक-एक कर साथ छोड़ते जा रहे थे . अब तक अभिनव की माँ को फोर्टिस ICU में एक महीने से अधिक हो चुका था .

एक दिन डॉक्टर ने कहा है कि उनके शरीर के ऑक्सीजन सप्लाई में कुछ गड़बड़ हो गई अतः ऑपरेशन करना पड़ेगा . ऑपरेशन टेबल पर लिटाने के बाद डॉक्टर, ऑपरेशन थिएटर के बाहर निकल कर तत्काल कई लाख की रकम जमा कराने के लिए कहता है और उसके बाद ही ऑपरेशन करने की बात कहता है . अभिनव तुरंत दौड़ता है और अपने रिश्तेदारों, मित्रों के सामने गिड़गिड़ाता है, रकम उसी दिन इकठ्ठा कर अस्पताल में जमा करा दी जाती है, पैसे जमा होने के बाद भी डॉक्टर ऑपरेशन कैंसिल कर देते हैं .

हालात क्यों बिगड़ रहे हैं, इंफेक्शन क्यों होते जा रहा है, डॉक्टर अभिनव को इस बारे में कुछ भी नहीं बताते . केवल दवा, ड्रिप, खून की बोतलें और माँ की बेहोशी में अभिनव खुद आर्थिक और मॉनसिक रूप से बुरी तरह टूट चुका था . डॉक्टरों को जब अभिनव से अस्पताल में पैसा जमा 
कराना होता था, उसी समय ही वह अभिनव से बात करते थे. माँ बेहोशी में कराहती रहती थी. अभिनव माँ को देख कर रोता था कि इस माँ को कभी-कभी मामूली पेट दर्द के अलावा कोई समस्या न थी .

उसकी हंसमुख और खुशहाल माँ को फोर्टिस की नज़र लग गई थी . 50 दिन तक ICU में रहने के बाद दर्द से कराहते हुए अभिनव की मां ने दुनिया से विदा ले ली . खर्चा-अस्पताल का बिल रु 43 लाख, दवाइयों का बिल 12 लाख और 50 यूनिट खून . अभिनव की माँ की पार्थिव देह को मर्चरी में रखवा दिया गया और अभिनव को बाकि भुगतान जमा कराने के लिए कहा गया, इतना ही नहीं शव के इर्द गिर्द बाउंसर्स लगा दिए गए . अभिनव ने केवल एक छोटी सी शर्त रखी कि मेरी माँ की सभी रिपोर्ट्स और माँ के शरीर की जांच एक स्वतंत्र डॉक्टरों की टीम द्वारा करवाई जाए . फोर्टिस ने बमुश्किल इजाजत दे दी ..

रिपोर्ट आई.... जिसमे पता चला कि अभिनव वर्मा की माँ के गाल ब्लैडर में कभी कोई पथरी नहीं थी.... एक चलती-बोलती खुशहाल महिला और एक माँ, अच्छे खासे पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी लोगों की देखरेख में 50 रहकर भी दुनिया को अलविदा कह गई, वो भी उस बीमारी के नाम पर, जो उसे कभी थी ही नहीं.  

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