बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सद्‌गुरु की शुभकामनाएं
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सद्‌गुरु की शुभकामनाएं
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वह इंसान जो अध्यात्म के मार्ग पर है उसके लिए बुद्ध पूर्णिमा एक बड़ा महत्वपूर्ण दिन है। सूर्य का चक्कर लगाती पृथ्वी जब सूर्य के उत्तरी भाग में चली जाती है तो उसके बाद यह तीसरी पूर्णिमा होती है। गौतम बुद्ध की याद में इसका नाम उनके नाम पर रखा गया है।

बुद्ध पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के दिन के रूप में देखा जाता है। करीब आठ साल की घनघोर साधना के बाद गौतम बहुत कमजोर हो गए थे। चार साल तक वह समाना (श्रमण) की स्थिति में रहे। समाना (श्रमण) के लिए मुख्य साधना बस घूमना और उपवास रखना था, वे कभी भोजन की तलाश नहीं करते थे। इससे गौतम का शरीर इतना कमजोर हो गया कि वह मौत के काफी करीब पहुंच गए। इस दौरान वह निरंजना नदी के पास पहुंचे, जो प्राचीन भारत की कई नदियों की तरह सूख चुकी है और लगभग विलुप्त हो चुकी है। उस वक्त यह नदी एक बड़ी जलधारा थी, जिसमें घुटनों तक पानी तेज गति से बह रहा था। गौतम ने नदी पार करने की कोशिश की, लेकिन आधे रास्ते में ही उन्हें इतनी कमजोरी महसूस हुई कि उन्हें लगा कि अब एक कदम भी आगे बढ़ा पाना संभव नहीं है। लेकिन वह हार मानने वाले शख्स नहीं थे। उन्होंने वहां पड़ी पेड़ की एक शाखा को पकड़ लिया और बस ऐसे ही खड़े रहे।


बोधी वृक्ष
कहा जाता है कि इसी अवस्था में गौतम घंटों खड़े रहे। हो सकता है, वह कई घंटे खड़े रहे हों। यह भी हो सकता है कि वे कुछ पल ही खड़े रहे हों, जो कमजोरी की ऐसी हालत में घंटों जैसे लग सकते हैं। उस पल उन्हें अहसास हुआ कि वह जो खोज रहे हैं, वह तो उनके भीतर ही है। फिर ये सब संघर्ष करने का क्या फायदा! जिस चीज की आवश्यकता है, वह है अपने भीतर पूर्ण रूप से राजी हो जाना और ऐसा तो यहीं और अभी हो सकता है। फिर मैं उसे पूरी दुनिया में खोजता क्यों घूम रहा हूं? जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ, तो उन्हें हिम्मत और ताकत मिली और उन्होंने एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए नदी पार कर ली। इसके बाद वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए, जिसे अब बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है। वह इस पेड़ के नीचे इस संकल्प के साथ बैठे – ‘जब तक मुझे परम ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती, मैं यहां से नहीं उठूंगा। या तो मैं यहां से एक प्रबुद्ध व्यक्ति के रूप में उठूंगा या फिर इसी अवस्था में प्राण त्याग दूंगा।’ और एक ही पल में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई, क्योंकि इसके लिए बस इसी चीज की जरूरत होती है

जो चीज आप चाहते हैं, वह आपकी प्राथमिकता बन जानी चाहिए। फिर वह एक पल में हो जाती है। पूरी साधना, पूरी कोशिश बस इसी के लिए होती है। चूंकि लोग इधर उधर इतने बिखरे हुए और अस्त व्यस्त हैं कि उन्हें एकत्रित करने और एक समग्र इकाई बनाने में बहुत लंबा समय लग जाता है। ये लोग अपनी पहचान तमाम चीजें के साथ बना लेते हैं। इसलिए पहली चीज है, खुद को समेटना। अगर इस इंसान को हमने एक समग्र इकाई के रूप में पूरी तरह से समेट लिया, तभी हम उसके साथ कुछ कर सकते हैं।


दूसरी शताब्दी की बुद्ध की प्रतिमा
तो वह बस एक पल में घटित हो गया। जिस वक्त पूर्ण चंद्रमा का उदय हो रहा था, उसी वक्त उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। वह उसी स्थान पर कुछ घंटों के लिए बैठे रहे और फिर उठे। समाना (श्रमण) के रूप में उनकी साधना की गहराई से प्रभावित होकर इस दौरान पांच लोग उनके साथ आ गए थे, जो उनको आदर्श के रूप में देखते थे। उठने के बाद पहली बात जो बुद्ध ने कही, वह यह थी – चलो, हम भोजन करें। यह सुनकर वे पांचों लोग हक्के-बक्के रह गए। उन्हें लगा कि गौतम का पतन हो गया हैं। उन्हें बड़ी निराशा हुई। गौतम ने कहा – ‘आप लोग बात को गलत समझ रहे हैं। उपवास रखना महत्वपूर्ण नहीं है, जानना और साक्षात्कार करना महत्वपूर्ण है। मेरे भीतर पूर्ण चंद्रमा का उदय हो गया है। मुझे देखो। मेरे भीतर आए रूपांतरण को देखो। बस यहीं रहो।’ लेकिन वे लोग चले गए। गौतम के मन में दया आई और कुछ सालों के बाद वह इन पांच लोगों की खोज में निकले। उन्होंने एक-एक करके उन्हें ढूंढ निकाला और ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर उनका मार्ग दर्शन किया।

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