आखिर क्यों 8 मार्च को ही मनाते हैं 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस'
आखिर क्यों 8 मार्च को ही मनाते हैं 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस'
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आप सभी को बता दें कि आज से तकरीबन 100 से ज्यादा समय पहले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत हुई थी और इसका उपाय भी एक महिला का ही था, जिनका नाम क्लारा जेटकिन था. जी हाँ, क्लारा यूं तो मार्क्सवादी चिंतक और कार्यकर्ता थीं, मगर महिलाओं के अधिकारों के सवाल पर भी वह लगातार सक्रिय रहीं और वह महिलाओं के अधिकार के लिए हमेशा काम करती थीं. साल 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी औरतों की एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी और इसी कॉन्फ्रेंस में पहली बार उन्होंने इंटरनेशनल वुमेन्स डे मनाने का सुझाव दिया था. बताया जाता है उस कॉन्फ्रेंस में 17 देशों की तकरीबन 100 औरतें मौजूद थीं और उन सभी ने क्लारा के इस सुझाव का समर्थन किया.

इसी के साथ बताया जाता है सबसे पहले साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था, लेकिन तकनीकी तौर पर इस साल हम 107वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं. आप सभी को बता दें कि 1975 में महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता उस वक्त दी गई थी जब संयुक्त राष्ट्र ने इसे वार्षिक तौर पर एक थीम के साथ मनाना शुरू किया और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पहली थीम थी 'सेलीब्रेटिंग द पास्ट, प्लानिंग फॉर द फ्यूचर.'

आइए जानते हैं क्यों 8 मार्च को मनाते हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस - कहते हैं महिला दिवस को 8 मार्च को मनाने के पीछे एक रोचक घटना है. जी दरअसल हुआ यूँ था कि जब क्लारा ने वुमेन्स डे मनाने की बात कही थी, तब उन्होंने कोई दिन या तारीख नहीं दी थी और 1917 की बोल्शेविक क्रांति के दौरान रूस की महिलाओं ने ब्रेड एंड पीस की मांग की. वहीं महिलाओं की हड़ताल के दबाव के कारण ने वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और इस घटना के फलस्वरूप वहां की अंतरिम सरकार ने स्थानीय महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया. कहते हैं उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था और जिस दिन महिलाओं ने यह हड़ताल शुरू की थी वो तारीख 23 फरवरी थी. वहीं ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च का था इसके बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाना शुरू कर दिया गया.

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