क्या कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रहा सुप्रीम कोर्ट ? नूपुर शर्मा पर टिप्पणी से उठे कई सवाल
क्या कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रहा सुप्रीम कोर्ट ? नूपुर शर्मा पर टिप्पणी से उठे कई सवाल
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नई दिल्ली: उदयपुर में कट्टरपंथियों द्वारा टेलर कन्हैयालाल की नृशंस हत्या और भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा बयान दिया है। सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्य कांत का कहना है कि, कन्हैयालाल की हत्या के लिए पूरी तरह से नूपुर शर्मा ही जिम्मेदार है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को पूरे देश के लिए खतरा बताया है। साथ ही उन्हें पूरे देश से माफ़ी मांगने के लिए कहा गया है। 

यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि, नूपुर शर्मा के बयान से बेशक मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत हुईं हैं और ये बात सुप्रीम कोर्ट ने भी मानी है कि नूपुर ने उकसावे में आकर यह टिप्पणी की। लेकिन फिर भी एक बयान के लिए किसी की जान कैसे ली जा सकती है ? वो भी उसकी (कन्हैयालाल) जिसने किसी के धर्म पर टिप्पणी की भी नहीं। न्याय का मंदिर कहा जाने वाला सुप्रीम कोर्ट, एक जघन्य हत्या को कैसे इस तरह जायज ठहरा सकता है ?  क्या इस तरह के बयान देकर सुप्रीम कोर्ट कट्टरपंथियों को बढ़ावा नहीं दे रहा है ? कल को अगर किसी पर भी ईशनिंदा का आरोप लगाकर इस तरह काट डाला गया, तो क्या उसे जायज माना जाएगा ? या फिर कोर्ट इस बात पर बहस करेगी कि मृतक ने सच में भी किसी धर्म विशेष की निंदा की थी या नहीं ? और अगर ये साबित हो जाता है कि मृतक ने ईशनिंदा की थी, तो क्या मृतक को ही उसकी मौत का जिम्मेदार मानकर आरोपी को रिहा किया जा सकता है ?

मौलाना इलियास सर्फुद्दीन ने एक TV डिबेट में शिवलिंग को 'प्राइवेट पार्ट' बताते हुए हिन्दुओं के भगवान का अपमान किया था, तो क्या उनकी हत्या जायज होगी ? इस तरह तो देश में कानून नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह जाएगी। कुछ दिनों पहले जो भीड़ सड़कों पर 'सर तन से जुदा' के नारे लगा रही थी, यदि उस भीड़ को नूपुर शर्मा कहीं मिल जाती और वो उसका सर कलम कर देते, तो भी नूपुर की हत्या के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता ? यहाँ ये बात भी गौर करने लायक है कि, जिस निर्ममता से कन्हैयालाल की हत्या हुई है, कोर्ट ने उस कट्टरपंथ के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने कई ऐसे सवालों को जन्म दे दिया है, जो देश के भविष्य के लिए बेहद अहम हैं। क्योंकि ऐसे में ईशनिंदा का इल्जाम लगाकर किसी की भी हत्या हो सकती है और व्यक्ति के मरने के बाद अदालतें बस बहस करती रह जाएंगी कि इस हत्या का मूल कारण क्या था ? 

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