Manikarnika Review : दमदार कंगना के सामने कमज़ोर ही रहे विलन
Manikarnika Review : दमदार कंगना के सामने कमज़ोर ही रहे विलन
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आनंद एल राय के निर्देशन में बनी फिल्म 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' हाला ही में रिलीज़ हुई है जिसकी तारीफे आप सुन ही सकते हैं. एक्ट्रेस कंगना रनौत एक बहुत ही कमाल की एक्ट्रेस हैं और उनकी इस एक्टिंग को आप इस फिल्म में देख सकते हैं. आइये जानते हैं क्या कहता है पब्लिक रिव्यु .

फिल्म-  मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी
कलाकार-  कंगना रनौत, अंकिता लोखंडे, जिस्सू सेनगुप्ता, डैनी डेन्जोंगपा, मोहम्मद जीशान अयूब, सुरेश ओबेरॉय, कुलभूषण खरबंदा अन्य.
निर्देशक-  कंगना और कृष
रेटिंग-  3/5

कहानी : फिल्म की शुरुआत अमिताभ बच्चन की दमदार अवाज से होती है. आगे कहानी में, पेशवा (सुरेश ओबेरॉय) की दत्तक बेटी मणिकर्णिका उर्फ मनु जन्म से ही साहसी और सुंदर हैं.  ऐसे में राजगुरु (कुलभूषण खरबंदा) की निगाह उन पर पड़ती है. मनु के साहस और शौर्य से प्रभावित होकर वह झांसी के राजा गंगाधर राव नावलकर (जीशू सेनगुप्ता ) से उसकी शादी करते हैं. ऐसे में मनु झांसी की रानी बनती है. शादी के बाद उनका नाम 'लक्ष्मीबाई' हो जाता है. सबकुछ ठीक चलता है. रानी लक्ष्मीबाई झांसी को उसका उत्तराधिकारी देती है, जिसका नाम होता है 'दामोदर दास राव'. लेकिन मात्र 4 महीने की उम्र में उनका निधन हो जाता है. इसके बाद गंभीर बीमारी से उनके पति का भी निधन हो जाता है. बच्चे और पति के निधन होने की वजह से अंग्रेज झांसी को हड़पने की कोशिश करते हैं. 

ऐसे में झांसी की रानी को अंग्रेजों के सामने सिर झुकाना कभी गवारा नहीं था. वह झांसी को वारिस देने पर खुश है कि अब उसके अधिकार को अंग्रेज बुरी नियत से हड़प नहीं पाएंगे. मगर घर का ही भेदी सदाशिव (मोहम्मद जीशान अयूब) षड्यंत्र रचकर पहले लक्ष्मीबाई की गोद उजाड़ता है और फिर अंग्रेजों के जरिए गद्दी छीन लेता है. अपने राज्य को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई झांसी के गद्दी पर बैठती हैं और ऐलान करती हैं कि झांसी किसी को नहीं देंगी. इसके बाद वह अपनी झाँसी को कैसे बचाती है ये पूरी कहै देखिये फिल्म में.

क्यों देखें फिल्म?

पीरियड फिल्मों में दिलचस्पी रखने वालों के लिए फिल्म फरफेक्ट है. फिल्म में भरपूर मात्रा में एक्शन है. कंगना का रौद्र रूप देखने को मिला. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक बेहद ही शानदार है, जिसकी वजह से एक्शन सीन्स में जान आती है. कंगना पूरी फिल्म में जोश से भरी हुई नजर आईं. शायद इस फिल्म में उनकी परफॉर्मेंस क्वीन को भुला दे. हालांकि, झलकारी बाई के रोल में अंकिता लोखंडे को ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं दिया गया है. लेकिन,अपनी पहली फिल्म में वह अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाब रही हैं.

गुलाम गौस खान के रोल में डैनी की परफॉर्मेंस ये साबित करती है कि उनमें पहले जैसी धार अभी भी कायम है. वहीं, गंगाधर राव के रोल में जीशूसेन गुप्ता, पेशवा के रोल में सुरेश ओबरॉय और राजगुरु के रोल में कुलभूषण खरबंदा ने अपना रोल बखूबी निभाया है. 

क्यों ना देखें

फिल्म की लेंथ बहुत बड़ी है. इसके कारण कई बार ध्यान भटकाव सा भी महसूस हो सकता है. वहीं फिल्म में डायलॉग तो कई हैं लेकिन उनमें पंच नहीं है. फिल्म के पहले हाफ के मुकाबले इसका सेकंड हाफ इसकी कमजोर कड़ी है. वहीं, फिल्म में कंगना के बोलने का तरीका काफी खराब है. फिल्म का सबसे कमजोर हिस्सा इसके विलेन थे. फिल्म के विलेन का रोल निभा रहे एक्टर्स में चमक की कमी लगी. इस फिल्म ने फिर साबित कर दिया है कि विदेशी एक्टर को हिंदी बुलाना अभी भी टेढ़ी खीर है.  

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