कुपोषण बच्चे के मामले में हरकत में आया महिला बाल विकास विभाग, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सस्पेंड
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इंदौर : आज जो खबर हम आपको बताने जा रहे हैं वह अपने में कई दृश्यों को समेटे हुए है. इस घटना में संबंधित विभाग की लापरवाही, नन्हीं बच्ची पर पारिवारिक बोझ, पिता की उपेक्षा और संवेदनाओं से भरी उपेक्षा सामने आयी है जो व्यवस्था पर कई सवालिया निशान लगा रही है. हाल में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमे एक मरणासन्न कुपोषित बच्चा पाया गया. जिसपर और कई दिनों से ना तो ध्यान दिया गया ओर ना इसके इलाज की व्यवस्था की गयी. इस मामले में बड़ी लापरवाही सामने आयी है. जिसमे प्रशासन से लेकर, अफसर, गांव, परिवार के लोग और वे लोग भी दोषी है जिन्होंने उसे देखकर अनदेखा कर दिया.

यह मामला इंदौर के समीप पर्यटन स्थल कजलीगढ़ (सिमरोल) का बताया जा रहा है. जहा पर पिकनिक पर गयी इंदौर की पुष्पा श्रीवास्तव (नाड़ी वैद्य) ने एक ऐसे मरणासन्न कुपोषित बच्चे को उसकी बड़ी बहन की गोद में एक मंदिर के समीप देखा जिसकी हालत बहुत खराब थी.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निलंबित 

मामला सामने आने के बाद महिला बल विकास विभाग हरकत में आ गया और कार्यवाही करते हुए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता शयामलता मालवीय को निलंबित कर दिया गया. विभाग अधिकारी बीएल पासी ने बताया कि जाँच बैठा दी गई है और लापरवाही सामने आने पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को पद से निलंबित कर दिया गया है.

जानिए क्या है पूरा मामला

न्यूज़ ट्रैक ने जब इस मामले के बारे में पुष्पा श्रीवास्तव से बात की तो उन्होंने बताया कि इस बच्चे के बारे में जान कर उनके नीचे से जमीन खिसक गयी. कुपोषित बच्चे को गोद में लिए उसकी बड़ी बहन जिसकी उम्र लगभग 7 -8 साल होगी, उससे पूछने पर पता चला कि वे घर में सात भाई -बहन है. और उनकी मां का निधन हो चूका है. जबकि उनके पिता शराबी है. उस छोटी सी लड़की ने बताया कि वही उसके भाई (कुपोषित) को संभालती है. तथा पुरे परिवार के लिए खाना भी वही बनाती है.

जब पुष्पा श्रीवास्तव ने इस बच्चे को गोद में उठाया तो पूरी तरह मलमूत्र में सना हुआ था. वही वह हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया था. जिसे इलाज की सख्त जरूरत थी. किन्तु इस और अब तक किसी का ध्यान नहीं गया था जो एक पीड़ादायक घटना है. बात करने पर उन्होंने बताया कि इस बच्चे का कोई नाम तक नहीं था, बाद में उन्होंने उसे "मानव" नाम दिया.

न्यूज़ ट्रैक को जानकारी देते हुए पुष्पा श्रीवास्तव ने बताया कि इस बच्चे को देखकर उनका दिल पसीज गया और वे किसी भी स्थिति में इस बच्चे की जान बचाना चाहती थी. जिसके चलते उन्होंने पास के मंदिर के पुजारी और अन्य लोगो से इस बारे में बात की. वे बच्चे को लेकर थाने पहुँच गयी, जहा पर उन्होंने इस बच्चे को अपने साथ ले जाकर इलाज करवाने की बात कही. शुरुआत में इस और ध्यान ही दिया गया किन्तु बाद में मामला बढ़ता देख तहसीलदार, टीआई, पटवारी, गांव के मुखिया तथा उस बच्चे के पिता की मौजूदगी में उसे इलाज के लिए लाया गया. जहा उसे एमवाय हॉस्पिटल के आईसीयू में रखा गया है.

सरकारी व्यवस्था से कैसे रहा अब तक नजरअंदाज यह

मामला सरकारी व्यवस्था पर कई सवालिया निशान लगा रहा है. पहला सवाल महिला एवं बाल विकास से है जिसके अधीन इस गांव की आंगनवाड़ी है. उस आंगनवाड़ी ने क्या किया. दस माह का कुपोषित बच्चा विभाग की सूची में क्यों शामिल नहीं हुआ ? दूसरा सवाल स्वास्थ्य विभाग से भी है कि इस निर्धन परिवार में सात बच्चे कैसे हो गए. परिवार कल्याण वालों की नजर इन पर क्यों नहीं पड़ी? स्कूल विभाग ने भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई तभी तो ये बच्चे स्कूल नहीं जा पाए ? संबंधित ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी सबसे पहले थी लेकिन उसने भी उदासीनता बरती. चौथा सवाल गांव के उन समाज जनों से भी है जिन्होंने अपने सामाजिक दायित्व को अनदेखा किया और दुखों में रह रहे इस परिवार को अकेला छोड़ दिया.

सबसे बड़ा सवाल तो पूरे समाज से है जिसकी संवेदनाएं इतनी खोखली हो गई है कि ऐसी घटनाएं अब उन पर कोई असर नहीं डालती.यह कैसी विडंबना है कि एक ओर राज्य में दीनदयाल जन्म शताब्दी वर्ष में कुपोषण मुक्त जिला बनाए जाने की बात की जाती है , वहीं कजलीगढ़ जैसे मामले भी सामने आ रहे हैं जो सरकार की व्यवस्था और उसके प्रयत्नों पर तमाचा है. क्या इस घटना से सरकार सबक लेगी ?

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