'मेरा वक्त भी बदलेगा, तेरी राय भी बदलेगी', राज्यसभा में शायराना हुए मल्लिकार्जुन खड़गे
'मेरा वक्त भी बदलेगा, तेरी राय भी बदलेगी', राज्यसभा में शायराना हुए मल्लिकार्जुन खड़गे
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नई दिल्ली: शीत सत्र के पहले दिन राज्यसभा में पीएम नरेंद्र मोदी ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का स्वागत किया, हालाँकि विपक्ष ने उनसे अपना भी ध्यान रखने की अपील की। जी हाँ, राज्यसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने उपराष्ट्रपति के स्वागत में बोलते हुए कहा कि, 'मुझे उम्मीद है कि आप हमारी भावनाओं को समझेंगे। हम अपनी ओर से आपको पूरा सहयोग करेंगे।' केवल यही नहीं बल्कि इस दौरान उन्होंने अपना दर्द भी बयां किया और कहा कि, 'सदन में नंबरों की ही भाषा समझी जाती है और किसी भी दल के नेताओं के अनुभव, तर्कों और विचारों पर ध्यान नहीं दिया जाता।' इसी के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'विपक्ष के लोग संख्या बल में भले ही कम हों, लेकिन उनके अनुभव और तर्कों में ताकत रहती है। पर समस्या यह है कि इनकी जगह नंबरों की गिनती होती है न कि विचारों के बारे में सोचा जाता है। सदन की बैठकें कम होने से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए बातचीत का मौका कम मिल पाता है। बिल भी कई बार बहुत जल्दबाजी में पारित किए जाते हैं। पहले संसद साल भऱ में 100 दिन से ज्यादा चलती थी, लेकिन अब 60 से 70 दिन भी नहीं चल पाती। सदन में बैठकें होंगी तो अच्छा नतीजा निकलेगा।'

केवल इतना ही नहीं बल्कि इस दौरान कांग्रेस की हालत पर भी शायराना अंदाज में बात करते हुए उन्होंने विपक्ष को नसीहत भी दी। जी दरअसल मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस की कमजोरी पर इशारों में बात करते हुए कहा, 'मेरे बारे में कोई राय मत बनाना गालिब, मेरा वक्त भी बदलेगा, तेरी राय भी बदलेगी।' इसी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष ने उपराष्ट्रपति से कहा कि, 'उच्च सदन के संरक्षक के रूप में आपकी भूमिका अन्य जिम्मेदारियों से कहीं बड़ी है। आप भूमि पुत्र हैं और यहां तक पहुंचने का सफर अहम है। आप संसदीय परंपरा को समझते हैं। 9वीं लोकसभा में आप चुने गए थे और संसदीय कार्य मंत्रालय में थे। आप राज्यपाल भी रह चुके हैं। राज्यसभा स्थायी सदन है और राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। राज्यों की राजनीतिक तस्वीर यहां दिखती है। हमेशा से राज्यों के तमाम दिग्गज यहां शोभा बढ़ाते रहे हैं।'

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इसी के साथ कांग्रेस के लीडर ने कहा कि, 'राज्यसभा ने भारतीय लोकतंत्र में संवाद की परंपरा को मजबूती दी है। जैसे संसद दो सदनों से मिलकर बनी है, उसी तरह लोकतंत्र विपक्ष और सत्ता पक्ष से मिलकर बनी है। इसलिए जरूरी है कि विपक्ष की भी राय ली जाए। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब आंबेडकर ने दोनों सदनों के लिए अलग सचिवालय बनाने की बात कही थी ताकि दोनों का महत्व बना रहे। विपक्ष के लोग संख्या बल में भले ही कम हों, लेकिन उनके अनुभव और तर्कों में ताकत रहती है।'

इसी के साथ उन्होंने संसद के कामकाज को लेकर कहा कि, 'सदन में बैठकें होंगी तो अच्छा नतीजा निकलेगा। आपसे उम्मीद है कि आपकी लीडरशिप में चर्चा के दिन लौटेंगे। आप तो कानून के जानकार हैं। आप अच्छी तरह से समझते हैं कि जल्दबाजी में कानून बनते हैं तो उसमें खामियां रह जाती हैं। ऐसे कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की टिप्पणियां भी आती रहती हैं। इसलिए हम चाहते हैं कि बिलों का सही से परीक्षण हो। निचले सदन की स्टैंडिंग कमेटियों की राय ली जाए। राज्यसभा का मुख्य काम ही यही है कि बिलों पर विस्तार से विचार करे।'

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