सफलता को बहुत ही आसान करता है लहसुनिया रत्न
सफलता को बहुत ही आसान करता है लहसुनिया रत्न
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ज्योतिष के अनुसार सभी रत्नों का सम्बन्ध किसी न किसी ग्रह से अवश्य होता है और जो रत्न जिस ग्रह से सम्बंधित होता है, वह उस ग्रह के दोष को कम करता है. ऐसा ही एक रत्न है लहसुनिया, जो केतु से सम्बंधित रत्न है इसे धारण करने से केतु से सम्बंधित दोष समाप्त हो जाते है. यदि आपकी कुंडली में केतु किसी शुभ ग्रह या सौम्य ग्रह के साथ होता है, तो लहसुनिया रत्न धारण करने से लाभ मिलता है. यदि किसी व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि से भय लगता है, तो लहसुनिया रत्न को धारण करने से वह भयमुक्त होता है. ऐसे व्यक्ति को लहसुनिया रत्न अवश्य धारण करना चाहिए. 

कुछ विद्वान और ज्योतिष शास्त्रियों का मानना है, की केतु ग्रह एक छाया है और उसकी कोई राशि नहीं है तथा वह जब लग्न त्रिकोण या तृतीय,षष्ठ या एकादशः भाव में होता है, तो इसे उसकी महादशा कहते है और इस दशा में लहसुनिया रत्न धारण करने से लाभ होता है. किन्तु यदि व्यक्ति की कुंडली में केतु द्वीतीय,सप्तम, अष्टम या द्वादशा भाव में हो तो इस रत्न को धारण नहीं करना चाहिए. 

यदि कोई व्यक्ति अपने आपको किसी स्त्री के समक्ष असहाय महसूस करता है, तो लहसुनिया की भस्म को घी में मिलाकर खाने से उसे लाभ होता है और उसका वीर्य गाढ़ा होता है. जो व्यक्ति लहसुनिया धारण करता है उसे अजीर्ण, मधुमेह और आमवात की समस्या से मुक्ति मिलती है. नेत्र से सम्बंधित सभी तरह के रोग को दूर करने के लिए लहसुनिया की भस्म को पीतल की भस्म के साथ मिलाकर खाना चाहिए.

 

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