करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है.कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहाँ तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को इनका जन्म हुआ.इनका बचपन का नाम ‘वर्धमान’ था. ये ही बाद में स्वामी महावीर बने. महावीर को ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे. उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था.
महावीर स्वामी के प्रेरणात्मक कथन :
1- किसी के अस्तित्व को मत मिटाओ. शांतिपूर्वक जिओ और दुसरो को भी जीने दो. हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो. घृणा से विनाश होता है.
2-सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं , और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं.
3-एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है. वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है. लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हश्र होने वाला है. वह आदमी मूर्ख है.
4-भगवान् का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है. हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास कर के देवत्त्व प्राप्त कर सकता है.