महावीर जयंती: उन्मत हाथी को इस तरह कर दिया था बिलकुल शांत
महावीर जयंती: उन्मत हाथी को इस तरह कर दिया था बिलकुल शांत
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आज महावीर जयंती है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का जीवन ही उनका संदेश है और उनके सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और अस्तेय आदि उपदेश एक खुली किताब की तरह हैं. कहा जाता है वे एक राजा के परिवार में पैदा हुए थे और उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, जिसका कि वे मनचाहा उपभोग भी कर सकते थे, परंतु युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर दिल दहला देने वाली यातनाओं को सहन किया और सारी सुविधाओं को त्यागकर वे नंगे पैर पैदल यात्रा करते रहे. ऐसे में आज हम आपको उनसे जुडी एक कथा बताने जा रहे हैं जिसमे उन्होंने एक उन्मत हाथी को शांत कर दिया था. आइए जानते हैं.

उन्मत हाथी हुआ शांत - राजा सिद्धार्थ की गजशाला में सैकड़ों हाथी थे. एक दिन चारे को लेकर दो हाथी आपस में भिड़ गए. उनमें से एक हाथी उन्मत्त होकर गजशाला से भाग निकला. उसके सामने जो भी आया, वह कुचला गया. उसने सैकड़ों पेड़ उखाड़ दिए, घरों को तहस-नहस कर डाला और आतंक फैलाकर रख दिया. महाराज सिद्धार्थ के अनेक महावत और सैनिक मिलकर भी उसे वश में नहीं कर सके. वर्द्धमान को यह समाचार मिला तो उन्होंने आतंकित राज्यवासियों को आश्वस्त किया और स्वयं उस हाथी की खोज में चल पड़े. प्रजा ने चैन की सांस ली, क्योंकि वर्द्धमान की शक्ति पर उसे भरोसा था.

वह उनके बल और पराक्रम से भली-भांति परिचित थी. एक स्थान पर हाथी और वर्द्धमान का सामना हो गया. दूर से हाथी चिंघाड़ता हुआ भीषण वेग से दौड़ा चला आ रहा था मानो उन्हें कुचलकर रख देगा. लेकिन उनके ठीक सामने पहुंचकर वह ऐसे रुक गया मानो किसी गाड़ी को आपातकालीन ब्रेक लगाकर रोक दिया गया हो. महावीर ने उसकी आंखों में झांकते हुए मीठे स्वर में कहा- 'हे गजराज! शांत हो जाओ! अपने पूर्व जन्मों के फलस्वरूप तुम्हें पशु योनि में जन्म लेना पड़ा. इस जन्म में भी तुम हिंसा का त्याग नहीं करोगे तो अगले जन्म में नर्क की भयंकर पीड़ा सहनी होगी. अभी समय है, अहिंसा का पालन कर तुम अपने भावी जीवन को सुखद बना सकते हो.' वर्द्धमान के उस उपदेश ने हाथी के अंतर्मन पर प्रहार किया. उसके नेत्रों से आंसू बहने लगे. उसने सूंड उठाकर उनका अभिवादन किया और शांत भाव से गजशाला की ओर लौट गया.

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