कैसे मिली थी भगवान महावीर को तीर्थंकर की उपाधि? जानिए इतिहास
कैसे मिली थी भगवान महावीर को तीर्थंकर की उपाधि? जानिए इतिहास
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आज पुरे देश में महावीर जयंती मनाई जा रही है। इस दिन को भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, चैत्र मास के 13वें दिन महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। इनका जन्म बिहार के कुंडग्राम/कुंडलपुर के राज परिवार में हुआ था। प्रथा है कि इन्हें जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के तौर पर माना जाता है। ये उन 24 लोगों में से हैं जिन्होंने तपस्या से आत्मज्ञान की प्राप्ति की थी। माना जाता है कि तीर्थंकर वह लोग होते हैं जो इंद्रियों एवं भावनाओं पर पूरी प्रकार से विजय प्राप्त कर लेते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती...

इस प्रकार मनाएं महावीर जयंती:- इस दिन देशभर के जैन मंदिरों में आराधना की जाती है। साथ-साथ शोभा यात्राएं भी निकाली जाती हैं। इस दिन जैन समुदाय के लोग स्वामी महावीर के जन्म का जश्न मनाते हैं। इन्होंने विश्व को सत्य, अहिंसा के कई उपदेश दिए थे। इन्होंने ही जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए थे जो इस तरह हैं- अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य।

जानिए भगवान महावीर का जीवन:- इनके बचपन का नाम वर्धमान था। इनकी माता का नाम महारानी त्रिशाला तथा पिता का नाम महावीर महाराज सिद्धार्थ था। महावीर स्वामी ने आत्मज्ञान की खोज में 30 साल की आयु में ही अपना सारा राज-पाट छोड़ दिया था। इन्होंने अपना घर-बार छोड़ दिया था। उन्होंने 12 साल तक कठोर तपस्या की तथा दीक्षा ग्रहण की। तप के बाद ही भगवान महावीर को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा वो तीर्थंकर कहलाए।

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