जानिए किस दिन है महाशिवरात्रि और क्यों रखते हैं इस दिन व्रत
जानिए किस दिन है महाशिवरात्रि और क्यों रखते हैं इस दिन व्रत
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आप सभी जानते ही हैं कि हर साल भोलेनाथ का त्यौहार यानी महाशिवरात्रि मनाया जाता है और यह त्यौहार सभी को भाता है. ऐसे में इस साल महाशिवरारात्रि 4 मार्च को है जो कई लोगों का फेवरेट त्यौहार है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस व्रत के पीछे की एक कथा जिससे आपको यह पता चलेगा कि लोग इस दिन व्रत क्यों रखते हैं.

व्रत की कथा - प्राचीन काल में एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था. लेकिन एक दिन उस शिकारी को किसी भी जानवर का शिकार करने का मौका ही नहीं मिला. अब क्योंकि उसके परिवार का पेट इसी के माध्यम से भरता था, तो शिकारी बहुत परेशान हो गया. उसे डर सताने लगा कि उसके पूरे परिवार को भूखे पेट सोना पड़ेगा. रात होते- होते शिकारी थक गया और जंगल में सरोवर के पास चला गया. वहां उसने अपनी प्यास बुझाई और एक बेल के पेड़ पर जाकर बैठ गया. शिकारी को पूरी आस थी कि अब इस सरोवर के पास कोई जानवर तो अवश्य आएगा. शिकारी की उम्मीद पर पानी नहीं फिरा. जीं हां, थोड़ी ही देर में वहां एक हिरनी आई. हिरनी को देख शिकारी की खुशी का ठिकाना ना था. उसने तुरंत अपना धनुष निकाला और वार करने के लिए तैयार हो गया.

लेकिन ऐसा करने के चलते, पेड़ के कुछ पत्ते नीचे पड़े शिवलिंग पर गिर गए. अब शिकारी इस बात से अवगत नहीं था कि उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था. पत्तों की आवाज सुन हिरनी सचेत हो गई और घबराते हुए बोली ' मुझे मत मारों '. लेकिन शिकारी उसकी बात को नजरअंदाज कर रहा था क्योंकि उसे अपने परिवार की भूख मिटानी थी. ये सुनकर हिरनी ने आश्वासन दिया कि अपने बच्चों को अपने स्वामि के पास छोड़कर वो वापस आ जाएगी. ये सुन शिकारी पिघल गया और उसे जाने दिया. थोड़ी देर बात सरोवर के पास एक और हिरनी आई. अब उसको देख शिकारी ने फिरसे अपना तीर कमान निकाल लिया. पेड़ को धक्का लगने एक चलते बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार शिकारी की दूसरे प्रहर की उपासना भी हो गई. अब शिकारी को देख, हिरनी ने दया याचना की और उससे आग्रह किया कि उसको ना मारे. लेकिन फिरसे शिकारी ने उसकी दया याचना को खारिच कर दिया. ये देख हिरनी बोली ' शिकारी, जो व्यक्ति अपने वचन का पालन नहीं करता उसके जीवन के सभी पुण्य नष्ट हो जाते हैं. विश्वास रखो, मै जरूर वापस आउंगी '.

अब शिकारी ने इस हिरनी को भी जाने दिया. अब दो हिरनियों को छोड़ देने के बाद शिकारी को लगा आज उसका परिवार भूखा पेट ही सोएगा. लेकिन तभी एक हिरण आया. पहले की तरह शिकारी ने अपना तीर कमान निकाला और निशाने साधने लगा. इस प्रक्रिया में फिर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे और उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी संपन हो गई. इस हिरण ने अब शिकारी से दया याचिका नहीं की, बल्कि कहा की ये उसका सौभाग्य है कि वो किसी के पेट की भूख को शांत कर पाएगा. लेकिन उसने कहा कि वो पहले अपने बच्चों को उनकी मां के पास छोड़ कर आएगा. शिकारी ने उस हिरण पर विश्वास किया और उसे जाने दिया. कुछ समय बाद शिकारी ने देखा की सभी हिरण उसकी तरफ बढ़ रहें हैं.

उन्हे देख शिकारी ने अपना धनुष निकाल लिया और उसकी चौथे प्रहर की पूजा भी संपन हो गई. अब क्योंकि उसकी शिव की उपासना पूर्ण हो गई थी, उसका ह्दय परिवर्तन हुआ. शिकारी को इस बात की आत्मग्लानि हुई कि वो इन बेजुबान जानवरों का शिकार कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है. उसने सभी हिरणों को वापस जाने को कह दिया. शिकारी के ऐसा कहते ही भगवान शिव का दिव्य रूप प्रकट हुआ और उन्होंने उस शिकारी को यश, वैभव और ख्याति का आर्शीवाद दिया. तो इस कहानी का सार यहीं है कि अगर आप सच्चे दिल से शिव की उपासना करते हैं तो भोले बाबा आपके सभी दुखों का हरण करते हैं और अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाकर रखते हैं.

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