महर्षि व्यास ने भेंट किया कुरु वंश को वंशज
महर्षि व्यास ने भेंट किया कुरु वंश को वंशज
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भगवान कृष्ण के यदु कुल में अवतरण के बारे में। आइये जानते हैं कि कैसे इस बीच कुरु वंश अपना वंशज ढूंढ रहा था, और फिर महर्षि व्यास को बुलाया गया उस बच्ची ने एक अलग रूप ले लिया और कहा, ‘तुम्हें मारने वाला अब भी जीवित है। वह मैं नहीं हूं।’ आतंकित कंस इधर-उधर देखने लगा, ‘वह बच्चा कहां है?’ जब उसे बच्चा नहीं मिला, तो वह बोला, ‘इस इलाके में पैदा होने वाले तीन महीने तक की उम्र के सभी बच्चों को मार डालो।’ उसके सिपाहियों को इस उम्र तक के जितने शिशु मिले, उन सब को उन्होंने मार डाला। मगर फिर भी कृष्ण बच गए और बड़े होते रहे।

अब अलग-अलग कुलों के वंशजों के बारे में जान लेते हैं – यदु कुल के वासुदेव की दो पत्नियां थीं, देवकी और रोहिणी। देवकी के बच्चों में से सिर्फ कृष्ण ही बच पाए। बलराम और सुभद्रा रोहिणी की संतानें थीं। वासुदेव की पृथा नाम की एक बहन थी, जिसे वासुदेव के भाई कुंतीभोज ने गोद ले लिया था क्योंकि वह नि:संतान थे। कुंतीभोज इस बालिका को इतना प्यार करते थे कि उन्होंने उसका नाम अपने नाम पर रख दिया। उसके बाद पृथा, कुंती के नाम से जानी जाने लगी। कुंती ने कुरु वंश के पांडु से विवाह किया। वासुदेव की दूसरी बहन श्रुतादेवी ने दमघोष से विवाह किया था।

कुरु वंश में, अम्बिका और अम्बालिका से विवाह के तुरंत बाद ही क्षय रोग से विचित्रवीर्य की मृत्यु हो गई। एक बार फिर एक पीढ़ी संतानविहीन थी। इस परिस्थिति को लाने वाली वजह थी, विचित्रवीर्य की माता सत्यवती की यह चाह कि उसके वंशज ही राज्य पर शासन करेंगे। मगर अब संतान पैदा किए बिना उसके पुत्र की मृत्यु हो चुकी थी। उसने भीष्म को बुलाया और कहा, ‘तुम्हारी शपथ बहुत हुई। इन दोनों युवतियों के विवाह के तुरंत बाद इनके पति की मृत्यु हो चुकी है। इन्हें अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार करके कुरु वंश को आगे बढ़ाओ।’

भीष्म शब्द का मतलब ही है, भीषण। उन्होंने एक भीषण प्रतिज्ञा की थी और वह प्रतिज्ञा उनके लिए सब कुछ थी। वह बोले, ‘आप मुझे या मेरे धर्म को अच्छी तरह नहीं जानतीं। मैं एक बार फिर साफ-साफ कहता हूं – धरती अपनी सुगंध खो सकती है, जल अपनी मिठास, सूर्य अपना तेज और चंद्रमा अपनी शीतलता खो सकता है, देवों के देव धर्मदेव अपना सत्य छोड़ सकते हैं मगर भीष्म अपनी प्रतिज्ञा कभी नहीं तोड़ सकता। मेरी शपथ अटल है। उस दिन आपके पिता की झोंपड़ी में मेरा जीवन सदा के लिए बदल गया था। मेरी शपथ मेरा सत्य है और मेरे लिए सत्य स्वर्ग के आनंद से भी कहीं बढ़कर है। मैंने सिर्फ राजपाट त्यागता है, मैं स्वर्ग का आनंद भी त्यागता हूँ, जरूरत पड़ने पर मैं मुक्ति को भी छोड़ सकता हूं, मगर अपनी प्रतिज्ञा से कभी पीछे नहीं हट सकता।’

भीष्म की यह मनोदशा कभी नहीं बदली। इस एक शपथ के कारण उन्होंने बहुत सारी ऐसी चीजें कीं, जो वे अन्यथा नहीं करते। इसके अलावा, उन्होंने सिर्फ इसी वजह से बहुत सी भीषण चीजें भी होने दीं, क्योंकि वह अपनी प्रतिज्ञा तोड़ना नहीं चाहते थे। अगर वह अपना प्रण तोड़ देते, तो वह कभी भी सारे हालात को बदल सकते थे। मगर इस एक शपथ की रक्षा के लिए उन्होंने यह सब कुछ किया क्योंकि वह अपना धर्म किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहते थे। इसी संदर्भ से यह कहानी आगे बढ़ती है।

दो युवा रानियों के साथ कोई राजा नहीं था और भीष्म अपनी शपथ तोड़ना नहीं चाहते थे, इस तरह कुरु वंश संकट में फंस गया था। मगर सत्यवती अपनी इस महत्वकांक्षा को त्यागने के लिए तैयार नहीं थी कि उसके वंशज राजा बनेंगे। काफी सोच-विचार के बाद, उसने अपने पुत्र व्यास को बुलाने का फैसला किया, जिसे पहले कृष्ण द्वैपायन के नाम से जाना जाता था। ऋषि पाराशर का पुत्र होने के कारण व्यास भी ऋषि बन गए। वह जंगल में रहकर तप करते थे और तपस्या से उन्होंने काफी शक्तियां हासिल कर ली थीं।

छह वर्ष की आयु में अपनी मां को छोड़कर जाते समय उन्होंने अपनी मां से कहा था, ‘माता, जब भी तुम्हें मेरी सच में जरूरत हो, मुझे याद करना, मैं आ जाऊंगा।’ इस बात को बहुत वर्ष बीत गए थे और सत्यवती ने उन्हें याद नहीं किया था। अब एक विशाल साम्राज्य में दो युवा रानियां थीं और कोई राजा नहीं था। राज्य के प्रबंध के लिए एक अच्छा राज प्रतिनिधि था, मगर उस राज्य का कोई भविष्य नहीं था। आखिरकार कभी न कभी कोई आकर साम्राज्य पर कब्जा कर ही लेता।

सत्यवती ने व्यास को याद किया, व्यास प्रकट हुए। उसने व्यास से कहा, ‘तुम मेरे पुत्र हो। आज तक मैंने तुमसे कुछ नहीं मांगा मगर अब मैं तुमसे जो मांगने वाली हूं, उसके लिए ‘ना’ मत कहना।’ व्यास सिर झुका कर बोले, ‘आप आज्ञा दें माता।’ वह बोली, ‘तुम्हें इन दो युवा रानियों से संतान पैदा करनी होगी। मैं चाहती हूं कि कुरु वंश में मेरा रक्त रहे। सिर्फ तुम ही बचे हो। मैं जानती हूं कि तुम संन्यासी हो मगर यह एक काम तुम्हें मेरे लिए करना होगा।’ व्यास ने बिना हिचकिचाए कहा, ‘ठीक है, माता, जैसा आप चाहें।’

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