उज्जैन के महाकाल या महाकालेश्वर मंदिर की इस साल खासी अहमियत है – जिसकी वजह है वहां का कुंभ मेला। यह सूर्य के बारह वर्षीय चक्र का बारहवां चक्र है। यह बहुत महत्वपूर्ण है और इसे सिंहस्थ कुंभ मेला कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण चंद्रसेन नाम के राजा ने कराया था। इससे संबंधित एक मान्यता है। यह इस संस्कृति का स्वभाव है। एक ही घटना या एक ही पहलू से संबंधित कथाओं की कई परतें हो सकती हैं। उदाहरण के लिए हम महाशिवरात्रि की बात करते हैं। जो लोग इस संसार में उपलब्धियां हासिल करना चाहते हैं, मसलन राजा आदि, उन्होंने महाशिवरात्रि को शिव के विजय दिवस के रूप में देखा। आम गृहस्थ लोग जो सामान्य पारिवारिक परिस्थितियों में जीते हैं, उनके लिए महाशिवरात्रि एक ऐसा दिन है जब शिव और पार्वती का विवाह हुआ। उनके लिए यह शिव पार्वती की शादी की सालगिरह की तरह से है। योगी और तपस्वी किस्म के लोग महाशिवरात्रि को एक ऐसे दिन की तरह देखते हैं जब शिव पूरी तरह से स्थिर और शांत हो गए थे। इस दिन वे इतने स्थिर और शांत हो गए थे कि उनकी उस अवस्था को अचलेश्वर कहा गया। इसका मतलब है कि वह पूरी तरह से अचल हैं। वह किसी पर्वत की तरह स्थिर हो गए जिससे उनके पास जो कुछ भी था, अपना सारा ज्ञान, उसे वह ऊर्जा के रूप में पर्वत को दे सके। यहीं से कैलाश की पूरी परंपरा की शुरुआत मानी जाती है, जहां बहुत से योगी गए और वही काम किया। तो महाशिवरात्रि तो एक ही है, लेकिन यह सबको समाहित कर लेती है, जिससे हर कोई इसका अपने हिसाब से उपयोग कर सके।
महाकाल मंदिर की स्थापना
तो महाकाल मंदिर से संबंधित मान्यता का एक पहलू यह है कि राजा चंद्रसेन पर आक्रमण हुआ। वह शिव के भक्त थे। कुछ लोग इस संस्कृति को नष्ट करना चाहते थे। उन्होंने उन पर हमला कर दिया। उस समय उज्जैन भक्तों का गढ़ बन चुका था। वहां ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, जो ज्ञान हासिल करना चाहते थे। यह भारत में दूसरा काशी था, जहां ज्ञान और आध्यात्मिकता का आदान-प्रदान उस शहर का मुख्य कार्य बन चुका था। सिर्फ इसी मकसद से लोग यहां आने लगे थे। यह शहर किसी व्यापारिक मार्ग पर नहीं है, इसलिए इस शहर को उन दिनों अवंतिका कहा जाता था। यह अवंतिका ज्ञान के एक केंद्र के रूप में विकसित होता चला गया।
कुछ ऐसे लोग थे, जिन्हें यह सब पसंद नहीं था। ऐसे लोग हमेशा होते हैं। वे लोग इस नगर को ही ध्वस्त कर देना चाहते थे और इसी मकसद से उन्होंने हमला कर दिया। ऐसे में राजा चंद्रसेन ने शिव की आराधना की और शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए।
उन्होंने एक खास तरीके से शत्रुओं का नाश कर दिया और चंद्रसेन को कष्टों से निजात दिलाई, जिससे ज्ञान का प्रसार करने का जो काम वह कर रहे थे, उसे वे करते रहें। राजा के सामने प्रशासन संबंधी समस्याएं होती हैं, सीमाओं को संभालने और उन्हें बढ़ाने की भी उसकी जिम्मेदारी होती है। ये एक राजा के सामान्य कर्तव्य होते हैं, लेकिन राजा चंद्रसेन आध्यात्मिक प्रक्रिया में काफी आगे बढ़ चुके थे। वह एक महान भक्त थे। अपने राज्य की तमाम संपदा का उपयोग उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए करना शुरू कर दिया था। जाहिर है, उनकी सेनाएं बहुत शक्तिशाली नहीं थीं। तो जब इस तरह का हमला हुआ तो उन्हें लगा कि युद्ध करने का कोई फायदा नहीं है। इसके बजाय उन्होंने भगवान शिव की आराधना की और फिर शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए।
महाकाल का अर्थ
तो सवाल है कि महाकाल का अर्थ क्या है? काल शब्द के दो अर्थ हैं। काल का एक मतलब होता है वक्त। काल का दूसरा अर्थ अंधकार भी है। एक ही शब्द के दो मायने मसलन वक्त और अंधकार कैसे हो सकते हैं? जब हम कहते हैं वक्त, तो आपके वर्तमान अनुभव में वक्त का अर्थ होता है चक्र। चक्र का मतलब भौतिक प्रकृति से है। एक छोटे से परमाणु से लेकर यह पूरा ब्रह्मांड ही चक्रीय गति में है। अगर चक्र नहीं होंगे तो भौतिकता की कोई संभावना ही नहीं होगी। तो अभी समय का आपको जो अनुभव है, वह पूरी तरह से भौतिक है। मसलन जब यह धरती एक चक्कर पूरा कर लेती है, तो हम उसे एक दिन कह देते हैं। चंद्रमा धरती का एक चक्कर लगा लेता है तो हम उसे एक महीना कह देते हैं। धरती सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, इसे हम एक साल कह देते हैं। बस यह सब ऐसे ही चलता रहता है। घड़ी में मिनट की सुई एक चक्कर लगा देती है तो हम इसे एक घंटा कहते हैं और जब सेकेंड की सुई एक चक्कर लगाती है तो उसे एक मिनट कहा जाता है। सब कुछ चक्रों में है। समय की हमारी समझ चक्र में ही है।
चक्र तमाम तरह के हो सकते हैं। मसलन सोना – जागना – सोना, खाना – पाचन – भूख – खाना, आदि। ऐसे न जाने कितने चक्र हैं। चीजों की चक्रीय गति की वजह से ही आप समय के बारे में जान पाते हैं। अगर कोई चक्रीय गति न होती, अगर इस जगत में कोई चक्र न होता, अगर कोई भौतिकता न होती, तो आप समय को नहीं समझ पाते। यह समय का एक पहलू है। समय भौतिक अस्तित्व के जरिए ही जाहिर हो रहा है। यह भौतिक अस्तित्व एक बड़े अनस्तित्व व शून्यता की गोद में घटित हो रहा है, जिसे अंग्रेजी में हम ‘स्पेस’ कहते हैं। यहां हम उसे काल या अंधकार कहते हैं।
हम स्पेस को अंधकार क्यों कह रहे हैं? अगर आप प्रकाश देखना चाहते हैं तो आपको किसी अपारदर्शक पदार्थ की जरूरत होगी। अपारदर्शक पदार्थ का मतलब है जो प्रकाश को रोक देता है। आप किसी चीज को इसलिए देख पाते हैं, क्योंकि वह प्रकाश को रोक रही है। आप हवा को नहीं देख सकते, क्योंकि वह प्रकाश को नहीं रोक रही है। कोई भी चीज जो प्रकाश को नहीं रोक रही है, उसे आप नहीं देख सकते। वह आपके लिए अंधकार की तरह ही होगी। या तो आपको प्रकाश के स्रोत को देखना होगा या आपको वह चीज देखनी होगी जो प्रकाश को रोकती है, नहीं तो आपको प्रकाश का कोई अनुभव नहीं होगा। आप चांद और सूरज को देख पाते हैं। सूर्य हमारे लिए प्रकाश का स्रोत है। चंद्रमा प्रकाश को परावर्तित कर देता है। बीच में सब कुछ अंधकार ही है। लेकिन उस अंधकार से होकर प्रकाश गुजर रहा है। हां, आप उसे देख नहीं सकते, लेकिन निश्चित रूप से यह गुजर रहा है, नहीं तो यह चंद्रमा तक कैसे पहुंचता। इस तरह से स्पेस को काल या अंधकार कहा जा सकता है क्योंकि स्पेस अंधकारमय है।
महाकाल, स्पेस और समय
अगर कहीं कुछ है, केवल तभी वह प्रकाश को परावर्तित करेगा और आप प्रकाश को महसूस कर पाएंगे। लेकिन अगर वहां कोई चीज है तो वह स्पेस नहीं हो सकता। इसलिए स्पेस को अंधकार कहा गया है। समय और स्पेस, इन्हें एक शब्द से इसलिए परिभाषित किया जाता है, क्योंकि वे एक ही हैं। मान लीजिए एक बिंदुअ है और एक बिंदु ब। ये दोनों बिंदु सिर्फ इसलिए संभव हैं क्योंकि समय है। ये इसलिए नहीं हैं क्योंकि दूरी है, बल्कि इसलिए हैं क्योंकि समय है। चूंकि समय है इसलिए स्पेस की भी संभावना है। अगर कोई समय नहीं है तो केवल एक ही बिंदु हो सकता है और इस भौतिक संसार में एक बिंदु का अस्तित्व नहीं हो सकता। यहां केवल ध्रुवीकरण हो सकता है यानी एक साथ दो विरोधी वृत्तियां हो सकती हैं। चीजें केवल एक दूसरे की विरोधी के रूप में ही अस्तित्व में रह सकती हैं। तो अगर कोई समय नहीं होगा तो कोई स्पेस नहीं होगा, कोई भी दो अलग-अलग चीजें नहीं होंगी। किसी चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा। इस तरह इस जगत का जो मूल आधार है वह काल या समय ही है। समय है तभी स्पेस की गुंजाइश है, नहीं तो कोई स्पेस नहीं होगा।
तो समय का आपका अनुभव केवल भौतिकता की ही एक अभिव्यक्ति है, क्योंकि भौतिकता का अस्तित्व केवल चक्रीय गतियों के कारण ही है। हर किसी की आध्यात्मिक इच्छा होती है मुक्ति प्राप्त करना। मतलब आप भौतिकता से आगे बढऩा चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, आप इस सृष्टि की चक्रीय प्रकृति से आगे बढ़ जाना चाहते हैं। जीवन की बार-बार की प्रक्रिया से परे चले जाने का मतलब है, अपनी तमाम बाध्यताओं से परे चले जाना। बाध्यताओं से जागरूकता की ओर चलना – यह एक तरह की यात्रा है। तो अगर आप बाध्यताओं से जागरूकता की ओर जाना चाहते हैं, तो अभी आपके पास जो समय का सीमित अनुभव है, जो भौतिक अस्तित्व की चक्रीय गति की अभिव्यक्ति है, उससे परे जाना होगा। अगर आप समय को बिना भौतिकता के या भौतिकता की सीमाओं के बिना महसूस कर सकते हैं तो हम इस समय को महाकाल कहते हैं।
महाकाल की गोद में
कह सकते हैं कि महाकाल की गोद में यह सृष्टि बेहद तुच्छ है। विशाल आकाशगंगाएं हैं, लेकिन फिर भी उन्हें इस सृष्टि का एक छोटा सा कण कहा जा सकता है। बाकी सब खाली स्पेस है। किसी परमाणु का निन्यानवे फीसदी या उससे भी ज्यादा हिस्सा खाली है – जो महाकाल है। हालांकि परमाणु च्रकीय गति में है, लेकिन उसका निन्यानवे फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा खाली है। इस पूरे ब्रह्मांड में भी निन्यानवे फ ीसदी से ज्यादा हिस्सा खाली ही है। विशाल आकाशगंगाएं चक्रीय गति में हैं, लेकिन उनका निन्यानवे फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा खाली है। इस तरह महाकाल के गोद में ही ये सब सृष्टि घटित होती हैं, यह जगत बनता है।
लझे हुए हैं, तो आप समय को चक्रीय गति के तौर पर ही अनुभव करेंगे। इस पहलू को संसार कहा जाता है, जिसका अर्थ है चक्रीय गति। अगर आप इससे आगे निकल जाते हैं तो हम इसे वैराग्य कहते हैं। इसका मतलब है कि आप पारदर्शी हो गए हैं। अगर आप पारदर्शी हैं तो आप प्रकाश को नहीं रोकते। अगर आप प्रकाश को नहीं रोकते तो इसका मतलब है कि आप जीवन की बाध्यताओं से या जीवन की चक्रीय गति से मुक्ति पा चुके हैं। जब आप जीवन की चक्रीय गति से मुक्ति पा जाते हैं तो हम कहते हैं कि आप पूर्ण मुक्ति की अवस्था में पहुंच गए हैं। तो जो लोग मुक्ति पाना चाहते हैं, उनके लिए यह पहलू जिसे हम महाकाल कहते हैं, बड़ा ही महत्वपूर्ण हो जाता है।