आज नवरात्रि का तीसरा और चौथा दिन है। ऐसे में तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करते हैं वहीँ चौथे दिन मां कूष्मांडा देवी की पूजा करते हैं। हालाँकि आज दोनों की पूजा एक साथ होगी। आपको बता दें कि इस बार शारदीय नवरात्रि 8 दिन की है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं मां चंद्रघंटा की पूजन विधि, मंत्र और कथा।
मां चंद्रघण्टा की पूजन विधि – सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाए और फिर लकड़ी की चौकी पर मां की मूर्ति को स्थापित करें। अब मां चंद्रघण्टा को धूप, दीप, रोली, चंदन, अक्षत अर्पित करें। इसके बाद मां को लाल रंग के पुष्प और लाल सेब चढ़ा दें। अब मां चंद्रघण्टा को दूध या दूध की खीर का भोग लगाए। वहीं इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करके मां चंद्रघण्टा के मंत्रों का जाप करना चाहिए। ध्यान रहे पूजन का अंत मां की आरती गाकर करें। मां के पूजन में घण्टा जरूर बजाएं, ऐसा करने से आपके घर की सभी नकारात्मक और आसुरी शक्तियों का नाश होता है। कहते हैं माता सभी नौ ग्रहों में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने के लिए जानी जाती हैं। ऐसे में उनकी पूजा के लिए सफेद फूल, सफेद कपड़ा, शहद, दूध या दही और लाल सेब चाहिए। वहीं मां की मूर्ति चौकी या टेबल पर रखकर केसर, गंगाजल और पुष्पजल से स्नान कराएं। फिर माता को वस्त्र धारण कराएं। इसी के साथ उन्हें फूल अर्पित करें। ध्यान रहे पूजा के दौरान मिठाई, पंचामृत और मिश्री का प्रसाद जरूर माता को चढ़ाएं।
मां चंद्रघंटा मंत्र-
मां चन्द्रघंटा का स्त्रोत मंत्र:
ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्घ
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ
स्तोत्र आपद्धद्धयी त्वंहि आधा शक्तिरू शुभा पराम।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यीहम्घ्
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम।
धनदात्री आनंददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायनीम।
सौभाग्यारोग्य दायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्घ्
कवच रहस्यं श्रणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचं सर्वसिद्धि दायकम्घ
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोद्धरं बिना होमं।
स्नान शौचादिकं नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिकमघ
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च।
न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्घ
उपासना मंत्र-
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्दघण्टेति विश्रुता।।
माँ चंद्रघंटा कथा- मां दुर्गा ने अपने तीसरे स्वरूप का अवतार तब लिया, जब असुरों का आतंक बढ़ गया था और उन्हें सबक सिखाना जरूरी हो गया था। राजा इंद्र का सिंहासन दैत्यों के राजा महिषासुर हड़पना चाहता था। इस कारण देवताओं और दैत्य की सेना के बीच में युद्ध छिड़ गया। राजा महिषासुर स्वर्ग लोक पर अपना राज कायम करना चाहता था और इसी कराण सभी देवता परेशान थे। परेशान होकर सभी देवता त्रिदेव के पास पहुंचे। उन्होंने त्रिदेव को सारी बात बताई, जिसे सुनकर त्रिदेव क्रोधित हो गए और तुरंत ही उनकी समस्या का हल निकाल लिया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई, जिसने देवी चंद्रघंटा का रूप ले लिया। देवी को भगवान शिव ने त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, देवराज इंद्र ने घंटा, सूर्य देव ने तेज और तलवार और बाकी देवताओं ने अपने अस्त्र और शस्त्र दिए। इसके बाद देवी का नाम चंद्रघंटा रखा गया। देवताओं की समस्या हल करने और उन्हें बचाने के लिए मां चंद्रघंटा महिषासुर के पास पहुंच गईं। मां चंद्रघंटा को देखते ही महिषासुर ने उन पर हमला कर दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया।
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