गृहस्थी का मूलमंत्र है प्रेम
गृहस्थी का मूलमंत्र है प्रेम
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दांपत्य जीवन में झूठ, अहंकार व संदेह का समावेश हो जाए तो परिवार को बिखरने में देर नहीं लगती। ये विचार भागवत वाचक पंडित विजयशंकर मेहता ने श्रीमद्भागवत कथा के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने शिव-सती का मार्मिक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि पति-पत्नी में झूठ, अहंकार व संदेह का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इन तीन प्रमुख बातों के कारण ही परिवार टूट जाता है।

गृहस्थों को इन तीनों बुराइयों से हमेशा दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए। घर-गृहस्थी में परमात्मा का ध्यान व पूजन हमेशा किया जाए तो परिवार में खुशियाँ बनी रहती हैं। एक अच्छे गृहस्थ की पूँजी धैर्य ही होती है। जीवन में किसी भी चीज को पाने के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। ईश्वर पर भरोसा रखने से सब कुछ धीरे-धीरे प्राप्त हो जाता है। 
आज नहीं तो कल सुख अवश्य मिलता है। सुख के पीछे भागना नहीं, बल्कि दुख का सामना करते हुए सुख के आने का इंतजार धैर्यपूर्वक करना चाहिए। इससे सुख मिलने पर उसका मजा दोगुना हो जाता है।

परिवार सुनीति एवं सुरुचि के जीवन की तरह चलता है। जिन परिवारों में सुनीति अपनाई जाती है, उनके घर ध्रुव जैसा पुत्र पैदा होता है, जिसके पीछे पूरा परिवार तर जाता है। वहीं दूसरी ओर सुरुचि की तरह जो माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है। उसके घर उत्तम जैसा पुत्र पैदा होता है, जो संसार के पीछे-पीछे चलता है।

भारतीय संस्कृति में एक अद्भुत घटना यह हुई कि एक माँ ने पुत्र को गुरु मानकर उससे ज्ञान प्राप्त किया। यही संस्कृति हमारी भारतीय संस्कृति को विशेष दर्जा देती है। उन्होंने बताया कि देवहुति ने अपने पुत्र कपिल मुनि को अपना गुरु मानकर ज्ञान का अर्जन किया था। कपिल मुनि ने जीवन में भक्ति को ही सर्वश्रेष्ठ माना है।

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