लुइ ब्रेल जयंती: नेत्रहीनों के लिए वरदान बनी ब्रेललिपि, बंद आँखों से पढ़ रहे गीता और बाइबिल
लुइ ब्रेल जयंती: नेत्रहीनों के लिए वरदान बनी ब्रेललिपि, बंद आँखों से पढ़ रहे गीता और बाइबिल
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नई दिल्ली: दिव्यांगों के लिए वरदान बनी ब्रेल लिपि आज सभ्यता और संस्कृति को सुशोभित करने का नया इतिहास रच रही है. बताया जाता है कि सोच और इरादों का विकास परंपराओं द्वारा होता है, हमारे पूर्वजों ने जो लिखा है और जो भी कहा है, वह कहीं न कहीं हमारी जिंदगी में सहायक बनता है. यह कहा था महान वैज्ञानिक और देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने. उन्हीं की कही बातें का एक उदहारण हीरापुर स्थित प्रेरणा दिव्यांग स्कूल में देखने को मिला है. यहां तृप्ति गायगवाल, उमेश्वरी निषाद सहित कई छात्राएं बाइबल और गीता से अध्यात्म ज्ञान प्राप्त कर रही हैं.

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हमारे देश में विभिन्न धर्म के लोग निवास करते हैं. जो लोग देख सकते हैं, वे आसानी से रामायण, गीता, बाइबल पढ़ लेते हैं, लेकिन जो नेत्रहीन हैं, उनका क्या ? ऐसे में ब्रेल लिपि दिव्यांग बच्चों को सभ्यता और संस्कृति से परिचित करा रही है. आज हम ब्रेल लिपि की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज चार जनवरी को लुई ब्रेल की जयंती है. उन्हीं की याद में चार जनवरी को लुई ब्रेल दिवस भी मनाया जाता है. लुई ने दिव्यांगों के लिए ऐसी लिपि दी है, जिसे आने वाले हजारों वर्ष तक इस्तेमाल किया जाएगा.

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यही ब्रेल लिपि आज दिव्यांग बच्चों को सभी धर्मों का ज्ञान दे रही है. फिर चाहे वो गीता हो या रमायण, बाइबल हो या कुरान, सभी का ब्रेल में विकसित किया जा चुका है. इसका लाभ यह हो रहा है कि दिव्यांग बच्चे रोजाना धर्में ग्रंथ में रची-बची सभ्यता और संस्कृति को जान-पहचान रहे हैं. 

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