माता वैष्णो देवी की रक्षा के लिए हनुमान जी ने लड़ा था भैरवनाथ से युद्ध
माता वैष्णो देवी की रक्षा के लिए हनुमान जी ने लड़ा था भैरवनाथ से युद्ध
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हर साल हनुमान जयंती का पर्व बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन इस बार सभी को अपने घरों में रहकर ही इस पर्व को मनाना होगा. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे है वह कथा जब हनुमानजी ने माता वैष्णो देवी की रक्षार्थ के लिए लड़ा था भैरवनाथ से युद्ध. आइए जानते हैं वह कथा.

पौराणिक कथा : वैष्णोदेवी मंदिर के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उसे पकड़ने के लिए दौड़े. तब वह कन्या वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं. भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे. माना जाता है कि तभी मां की रक्षा के लिए वहां पवनपुत्र हनुमान पहुंच गए. हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए. फिर वहीं एक गुफा में गुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की. इस दौरान हनुमानजी ने पहरा दिया. फिर भैरव नाथ वहां आ धमके. उस दौरान एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे. भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी.

तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं. यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है. अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है. यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था. अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया और भैरवनाथ वापस जाने का कह कर फिर से गुफा में चली गईं, लेकिन भैरवनाथ नहीं माना और गुफा में प्रवेश करने लगा. यह देखकर माता की गुफा कर पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकार और दोनों का युद्ध हुआ. युद्ध का कोई अंत नहीं देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया. कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी. माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी. तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा.

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