संकष्ट चतुर्थी में सांयकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर गणेश जी का पूजन करने का विधान है। गणेश जी की वैदिक व पौराणिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। इसमें पुष्प, अक्षत से आह्वान एवं आसन, जल से पाद्य-जल अर्ध्य, आचमन, शुद्ध जल, पंचामृत, गंधोदक तथा पुन: शुद्ध जल एवं गंगा जल से स्नान कराना चाहिए। यज्ञोपवीत एवं वस्त्र, गंध एवं चंदन से तिलक, अक्षत, रक्त पुष्प एवं पुष्पमाला, दूर्वा, सिंदूर, अबीर-गुलाल, हरिद्रादि, सौभाग्य द्रव्य, सुगंधित द्रव्य, धूप, दीप एवं मोदक का नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पान एवं दक्षिणा अर्पण करके, आरती तथा पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा एवं प्रार्थना के विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजा होने के उपरांत लाल चंदन अथवा हकीक की माला से इस अद्भूत मंत्र का यथा संभव जाप करें
चतुर्थी सहित समस्त तिथियों ने भगवान गणपति की आराधना की
संकष्ट चतुर्थी में सांयकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर गणेश जी का पूजन करने का विधान है। गणेश जी की वैदिक व पौराणिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। इसमें पुष्प, अक्षत से आह्वान एवं आसन, जल से पाद्य-जल अर्ध्य, आचमन, शुद्ध जल, पंचामृत, गंधोदक तथा पुन: शुद्ध जल एवं गंगा जल से स्नान कराना चाहिए। यज्ञोपवीत एवं वस्त्र, गंध एवं चंदन से तिलक, अक्षत, रक्त पुष्प एवं पुष्पमाला, दूर्वा, सिंदूर, अबीर-गुलाल, हरिद्रादि, सौभाग्य द्रव्य, सुगंधित द्रव्य, धूप, दीप एवं मोदक का नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पान एवं दक्षिणा अर्पण करके, आरती तथा पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा एवं प्रार्थना के विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजा होने के उपरांत लाल चंदन अथवा हकीक की माला से इस अद्भूत मंत्र का यथा संभव जाप करें