ये बिमारी भी दे जाती है जेनेटिक्स
ये बिमारी भी दे जाती है जेनेटिक्स
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इतनी भीड़ भरी दुनिया में कोई खुद को कैसे और क्यों अकेला महसूस कर सकता है यह सोचने लायक बात है. हम में से बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो या तो भीड़भाड़ से दूर रहते हैं या फिर ऐसा सोचते हैं कि कोई उनका साथ नहीं देता और वो खुद को बहुत तन्हा महसूस करते हैं. अकेलापन स्ट्रेस और डिप्रेशन का बहुत बड़ा कारण माना जाता है और ऐसी स्थिति में लोगों को कई बार मानसिक समस्याएं भी हो जाती है. हाल ही मे हुए एक शोध के मुताबिक़ अकेलापन जेनेटिकली भी हो सकता है.

अमेरिका के सैन डिएगो स्कूल ऑफ मेडिसिन, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर, प्रमुख शोधकर्ता अब्राहम पालमर ने कहा, “दो लोगों के एक समान संख्या में करीबी दोस्तों और परिवार में एक के लिए सामाजिक संरचना सही दिखती है जबकि दूसरे के लिए नहीं.” पालमर ने कहा, “हमारा मतलब है ‘अकेलेपन की आनुवांशिक गड़बड़ी से है.’ हम जानना चाहते हैं कि क्यों, समान हालात में आनुवांशिक रूप से एक जैसा आदमी दूसरे से ज्यादा अकेला महसूस करता है?” अपने नवीनतम शोध में पालमर और उनके दल ने 10,760 लोगों के आनुवांशिक और स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों का अध्ययन किया.

इन लोगों की आयु 50 या इससे ज्यादा रही. शोधकर्ताओं ने पाया कि अकेलापन इनके पूरे जीवन काल में रहा. यह कभी-कभी परिस्थितियों की वजह से और 14 से 27 प्रतिशत एक आनुवांशिक वजह से भी रही. शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अकेलापन तंत्रिका रोग और अवसाद वाले लक्षणों के साथ अगली पीढ़ी में चला जाता है. हालांकि अकेलापन महसूस करना आंशिक तौर पर आनुवांशिक है, लेकिन इसमें आसपास का वातावरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

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