'तिलक-तुलसी की माला छोड़ो, छुपकर पूजा करो..', इस्लामी कट्टरपंथियों से बचने के लिए बोला ISKCON

'तिलक-तुलसी की माला छोड़ो, छुपकर पूजा करो..', इस्लामी कट्टरपंथियों से बचने के लिए बोला ISKCON
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ढाका: बांग्लादेश में हिन्दुओं, विशेष रूप से ISKCON अनुयायियों, के खिलाफ बढ़ते हमले और अत्याचारों ने चिंता बढ़ा दी है। हाल की घटनाओं के बाद ISKCON कोलकाता ने अपने अनुयायियों को सलाह दी है कि वे बांग्लादेश में अपनी धार्मिक पहचान को छिपाकर रखें। अनुयायियों को तिलक न लगाने, भगवा वस्त्र न पहनने, तुलसी मला न पहनने और पूजा-पाठ छुपकर करने की सलाह दी गई है। 

 

ISKCON कोलकाता के प्रवक्ता राधारमण दास ने कहा कि बांग्लादेश में हालात बहुत गंभीर हो चुके हैं। हिन्दू साधुओं और अनुयायियों को धमकियाँ मिल रही हैं, और धार्मिक पहचान सार्वजनिक होने पर उनके साथ हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने अनुयायियों से खुद को साधुओं जैसा दिखने से बचने और अपनी सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाने की अपील की है। इस बीच, इस्लामी कट्टरपंथियों ने ISKCON साधु चिन्मय कृष्ण दास के वकील रामेन रॉय पर जानलेवा हमला किया। रामेन रॉय गंभीर रूप से घायल हैं और ICU में भर्ती हैं। चिन्मय कृष्ण दास, जिन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, पर सरकार की सख्ती और उनके वकील पर हमला, दोनों ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के हालात को उजागर किया है।

ये सवाल उठता है कि जब दुनिया भर में यह दावा किया जाता है कि मुस्लिम समुदाय शांतिप्रिय है और सभी धर्मों के साथ सौहार्द बनाए रखता है, तो ISKCON को अपने अनुयायियों को धार्मिक पहचान छिपाने की सलाह क्यों देनी पड़ी? हिन्दू बहुल भारत में किसी मुस्लिम व्यक्ति को अपनी दाढ़ी या टोपी छुपाने की जरूरत नहीं पड़ती, तो फिर इस्लामी बहुल देश में हिन्दुओं को अपनी धार्मिक पहचान छिपाने के लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है? अगर भारत में भी इस्लामी आबादी बढ़ी तो क्या यहाँ के अन्य समुदायों को भी इसी तरह डर-डर कर रहना पड़ेगा ? क्योंकि, बांग्लादेश में लोग किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं, भारत से ही गए हैं, उनकी विचारधारा वही है, जो यहाँ के लोगों की है।

इस स्थिति से यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है कि इस्लामी देशों में हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को अपने धर्म का पालन करने में क्यों कठिनाई होती है ? क्या यह कट्टरपंथी इस्लामी मानसिकता का नतीजा है, जो अन्य धर्मों के प्रति नफरत दिखाती है? क्यों इस्लामी देश अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी देने में असफल हो रहे हैं? इन मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस होना जरूरी है, ताकि धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

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