वास्तु के अनुसार मानव को अपने जीवन में कुछ नियम पद्धति को अपनाना बहुत ही जरूरी होता है .शास्त्रों के अनुसार, भवन सिर्फ चार दीवारों का नाम नहीं होता। इसके निर्माण के लिए वास्तु की कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना होता है. और उसी के अनुसार निर्माण की प्रक्रिया को अपनाना होता है.
इस धरा में नव निर्माण करने से पहले धर्म कर्म को पहले लाना होता है इस धरती में मनुष्य के अलावा देवी-देवताओं का भी वास होता है। जैसा तो आप सभी जानते है की भवन निर्माण से पूर्व जमीन की खुदाई की जाती है.ताकि नींव गहरी और मजबूत हो।जिंतनी ज्यादा नीव की मजबूती होगी भवन में उतनी मजबूती होगी इसके लिए जमीन की खुदाई की जाती है. मजबूत नींव ही सुदृढ़ भवन का आधार होती है।
वास्तुशास्त्र में भवन निर्माण के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। भवन का निर्माण कार्य शुरू होने से पहले भूमि का पूजन होता है. ताकि वहां रहने वाले लोग सुख-शांति के साथ जीवन बिताएं। आप को ज्ञात है की भवन निर्माण संपूर्ण होने के बाद गृहप्रवेश भी शुभ मुहूर्त में होता है। यह पूरी प्रक्रिया धार्मिक नियमों के अनुसार पूर्ण की जाती है.
लेकिन शास्त्रों में भवन निर्माण से पहले की कुछ जरूरी बातों का उल्लेख किया गया है-
1. यदि आपके घर के निर्माण के लिए की जाने वाली नींव की खुदाई के दौरान कुछ खास वस्तुएं निकलें तो इससे जमीन के शुभ या अशुभ होने का आकलन किया जाता है।
2 वास्तु के अनुसार यदि भूमि की खुदाई के समय राख, हड्डियां, मृत जानवर, चूड़ी के टुकड़े, बाल आदि निकलें तो भूमि को अशुभ समझना चाहिए।
3. हड्डियां अशुभ और अपवित्र होती हैं। उनका दर्शन, स्पर्श आदि भी शुभ नहीं माना जाता। जिस स्थान पर ये मिलती हैं अगर वहां भवन का निर्माण होता है तो वे उस परिवार के लिए अशुभ होती हैं।
4. बताया जाता है की सभी धर्मों में मृत शरीरों का सम्मान किया जाता है। अतः वास्तुशास्त्र में ऐसी भूमि का त्याग कर अन्य स्थान पर भवन निर्माण करना चाहिए .