आनंद और सुख की भिन्नता को जानें
आनंद और सुख की भिन्नता को जानें
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इस संसार में आया प्रत्येक जीव हमेशा आनंद की प्राप्ति चाहता है। चाहे उसने अपने जीवन में भले ही कोई अच्छे कार्य न किये हो पर उसे लगता है. की में हमेशा आनंद भरा जीवन व्यतीत करूँ . उसे अपने जीवन में सुख तो सांसारिक वस्तुओं , व्यक्तियों से मिल जाता है. पर आनंद की प्राप्ति नहीं होती है . 

उसके मन की बात आनंद और सुख की अनुभूति परमानंद से व्यक्त की जा सकती है। पर परमानंद तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं वंहा तक पहुचें के लिए व्यक्ति को साधक बनकर जीना होता है.हमेशा सत्य , अहिंसा , धर्म , परोपकार ,पुण्य ,ध्यान संयम, नियम उपासना ,को अपनाने वाला ही इस परमानंद तक पहुंचता है. और इस परमानंद से ही आनंद की प्राप्ति होती है. और इस परमानंद के समक्ष उसका यह सांसारिक सुख फीका पड़ जाता है .वहां उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता.

इस संसार से प्राप्त धन ,दौलत , सोहरत ,आराम , पद, प्रतिष्ठा को लेकर ही व्यक्ति सुख की अनुभूति करता रहता है और परमानंद को भूल जाता है. वो यह नहीं जानता की ये सांसारिक सुख कुछ समय के लिए है पर परमानंद तो जीवन पर्यन्त होता है. जो की दुनिया में आये जीव को आबागमन से मुक्त करता है. और व्यक्ति हमेशा के लिए परम -आनंद को प्राप्त करता है . 

असत्य का त्याग करना परमानंद की ओर ले जाने वाला है। यह तभी संभव है. जब जीवात्मा संपूर्णता से सत्य को धारण करे । आत्मा का परमात्मा से सीधा सम्बन्ध होता है, वह अमर , आज जीव- आत्मा ने इस संसार में किसी एक रूप धारण कर सुख तो हासिल कर लिया पर यह जरुरी नहीं की अगले जन्म में भी उसे इस सुख की प्राप्ति हो लेकिन परम- आनंद वो हे जो हमेशा हमेशा के लिए मिल जाए और वो तभी मिल सकता है. जब जीव के अंदर साधना की शक्ति हो , मन और विचारों की शुद्धता हो , भगवान के प्रति आस्था हो , परोपकार , पुण्य , की भावना हो, भगवन का ध्यान करे , उपासना करे , दया , धर्म , न्याय की ओर कर्तव्यनिष्ट हो । 

इसलिए कहा गया है की इन सांसारिक वस्तुओं का -जो की असत्य है ,ये सभी क्षण भंगुर है , नाशवान है,  मोह हटाकर मनुष्य को पूर्ण मनोयोग से सत् वस्तुओं व भावों का स्मरण करना चाहिए। यही बुद्धिमत्ता व आनंद प्राप्त करने का सरल उपाय है।

आपके जीवन में आपको सुख और आनंद को समझना जरूरी है-

कई लोग सुख को आनंद का पर्यायवाची मानते हैं, जबकि ऐसा है नहीं। सुख में भौतिक साधनों और विलासितापूर्ण वस्तुओं का विशेष रूप से समावेश होता है। जैसे आप एक सुन्दर से घर में रह रहे है आपके पास कार है , नौकर चाकर है ,अनन्य सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति हो गई है। यहां तक तो बात ठीक है, लेकिन विलासितापूर्ण या भौतिक साधनों की उपलब्धता के बावजूद अगर आपके दिमाग में कोई तनाव या चिंता ,है तो फिर ये भौतिक सुख काम न आएंगे।

वहीं आनंद की मनोदशा में भले ही भौतिक संसाधनों या साधनों की उपलब्धता न हो, लेकिन आपके मन-मस्तिष्क में बेचैनी नहीं होती। आप शांति का अनुभव करते हैं। आपका मन नकारात्मक भावों से दूर रहता है। आपको सब सुहावना लगता है आपका दिल और दिमाक हमेशा प्रसन्ता की ओर रहता है। यह शांतिमय जीवन ही आनंद का प्रतीक माना जाता है .

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