'टैक्स सेविंग्स के तरीकों को नहीं मिल रही सुधर की कोई मदद
'टैक्स सेविंग्स के तरीकों को नहीं मिल रही सुधर की कोई मदद
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भारतीय बचतकर्ता और निवेशक टैक्स बचाने के नए तौर-तरीके अपना रहे हैं। इसके अलावा मैं पहले भी लिख चुका हूं कि अब व्यक्तिगत निवेशक हर माह 8,000 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम एसआइपी में निवेश कर रहे हैं। ताजा निवेश का यह प्रवाह काफी स्थिर है और राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) एवं कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की रकम को भी जोड़ लें तो यह भारतीय इक्विटी मार्केट का मजबूत आधार बन गया है।इसके अलावा  निवेशक जहां महंगाई दर से ज्यादा रिटर्न देने वाले और लंबी अवधि के निवेश की नई दुनिया की ओर जा रहे हैं, इसके अलावा  कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर हमारा कानून अब भी पुरानी सोच में उलझा हुआ है। वही भारत में इक्विटी पर कैपिटल गेन्स टैक्स का स्ट्रक्चर बढ़ती अर्थव्यवस्था के बजाए काफी हद लगभग पांच दशक पहले के अमीर विरोधी विचार पर खड़ा है।

इसके अलावा यह ऐसे निवेशकों के हितों के खिलाफ काम कर रहा है जो अपने रिटर्न को बढ़ाना चाहते हैं और बड़ी रकम जुटाना चाहते हैं।इस समस्या की मूल वजह यह है कि टैक्स कानून कैपिटल गेन्स यानी पूंजीगत लाभ होने को ट्रांजैक्शन मानता है। म्यूचुअल फंड निवेश में जब भी निवेशक फंड की यूनिट बेचता है तो उसको होने वाला मुनाफा या गेन्स को टैक्स कानून के तहत कैपिटल गेन्स माना जाता है। अगर फंड में निवेश बनाए रखने की अवधि एक साल से कम है तो यह शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स है और निवेश बनाए रखने की अवधि एक वर्ष से अधिक है तो यह लांग टर्म कैपिटल गेन्स है। इसके अलावा इक्विटी फंड में लांग टर्म कैपिटल गेन्स 2005 में खत्म कर दिया गया था और 2018 तक यह शून्य था। इसके साथ ही वर्तमान टैक्स कानून कुछ इस तरह का है कि वह लंबी अवधि के निवेशकों को दंडित करता है हालाँकि यह लंबी अवधि के निवेशकों को प्रोत्साहित करने वाला होना चाहिए। लंबी अवधि में एक ऐसा समय आता है जब निवेशक को लगता है कि उसने जिस म्यूचुअल फंड में निवेश किया हुआ है, वही उससे बेहतर विकल्प बाजार में आ गया है। 

ऐसे में यदि निवेशक उस फंड में निवेश बेचकर रकम दूसरे फंड में लगाता है तो उसे पहले फंड से मिलने वाले मुनाफे पर कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा। तो इससे या तो उसका रिटर्न कम होता है या निवेशक टैक्स देने से बचने के लिए कम रिटर्न के साथ ही समझौता करे। निवेशक अपने निवेश का पूरा फायदा उठा सके इसके लिए जरूरी है कि इक्विटी म्यूचुअल फंड का निवेश बेचकर दूसरे इक्विटी फंड में निवेश करने को ट्रांजैक्शन नहीं माना जाए। इसके साथ ही यह मांग लंबे समय से की जा रही है।वही  एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (एम्फी) ने भी वित्त मंत्री के सामने यह मांग रखी थी।वही  वर्ष 2018 के पहले लोग इस मांग को लेकर ज्यादा मुखर नहीं थे क्योंकि लांग टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स शून्य था। हालांकि मैं यहां शून्य टैक्स से अलग बात कर रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि यदि कोई अपना निवेश रकम खर्च करने के लिए भुनाता है तो उस पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगना चाहिए। परन्तु लंबी अवधि के निवेश को भुनाकर दूसरे फंड में निवेश करने पर टैक्स नहीं लगना चाहिए।

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