लड़कों की शादी की उम्र भी हो 18 साल -विधि आयोग
लड़कों की शादी की उम्र भी हो 18 साल -विधि आयोग
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नई दिल्ली:  विधि आयोग ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन शुक्रवार को परामर्श पत्र में महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव दिये. आयोग ने कहा कि वयस्कों के बीच शादी की अलग-अलग उम्र की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए. दरअसल, विभिन्न कानूनों के तहत, शादी के लिए महिलाओं और पुरुषों की शादी की कानूनी उम्र क्रमश: 18 वर्ष और 21 वर्ष है. 'परिवार कानून में सुधार' पर अपने परामर्श पत्र में पैनल ने यह भी कहा: "यदि बालिग होने के लिए इस उम्र को सार्वभौमिक आयु की मान्यता प्राप्त है, और यह सभी नागरिकों को अपनी सरकारों का चयन करने का अधिकार देता है, तो निश्चित रूप से, उन्हें अपने पति / पत्नी का चुनाव करने के लिए भी सक्षम माना जाना चाहिए. 

पत्र के मुताबिक, 1875 इंडियन मेजोरिटी एक्ट के अनुसार, 18 साल की बालिग आयु पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से शादी के लिए कानूनी आयु के रूप में पहचानी जानी चाहिए. पत्र के अनुसार, "पति और पत्नी के लिए उम्र में अंतर कानून में कोई आधार नहीं है क्योंकि विवाह में प्रवेश करने वाले पति सभी मायनों में बराबर होते हैं और उनकी साझेदारी भी बराबर की होती है." लॉ पैनल का मानना ​​है कि महिलाओं के लिए 18 साल और पुरुषों के लिए 21 साल का अंतर बनाए रखना "पतियों की तुलना में पत्नियों को छोटा होना चाहिए" वाली रूढ़िवादी सोच को प्रदर्शित करता है. 

विधि आयोग ने निर्भया काण्ड के बाद बने  2013 के कनून का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के किसी भी संभोग के रूप में बलात्कार के रूप में मान्यता दी गई थी. विधि आयोग ने कहा कि "इस तरह के मामलों में कानून को उचित रूप से विचार करने की आवश्यकता है कि 2013 के संशोधन के बाद 16 से 18 वर्ष की उम्र के बीच भी सभी संभोग को अपराध मानना, सहमति के संभोग को अपराध बनाने का परिणाम भी हो सकता है. साथ ही कानून आयोग ने स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के बारे में बताते हुए कहा है कि इस एक्ट के तहत पुरुषों की 21 और महिलाओं की 18 साल आयु निर्धारित है, लेकिन इसके सेक्शन 11 , 12 के अनुसार अगर दोनों में से किसी की भी आयु कम होती है तो शादी को मान्यता नहीं दी जाती है. आयोग ने कहा कि इस तरह के कानून मात्र जुर्माने को आकर्षित करते हैं. 

आयोग ने अभिभावक/संरक्षक कानून पर भी सवाल उठाए, आयोग ने कहा कि अभिभावक कानून के अनुसार पति ही पत्नी का अभिभावक होता है, चाहे उसकी पत्नी बालिग हो या नाबालिग, लेकिन अगर पति खुद ही नाबालिग हो तो वो अभिभावक कैसे बन सकेगा. आयोग ने कहा  कि इस स्थिति में अगर शादी का पंजीकरण अनिवार्य करने वाले कानून की बात की जाए तो क्या कानून इस शादी का पंजीकरण करने देगा, या फिर वो इन शादियों को अपंजीकृत ही रहने देगा. आयोग ने अपने पत्र में उपरोक्त दलीलों को पेश करते हुए कहा है कि इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमे शादी के वर्तमान कानून में संशोधन करने की जरुरत है. 

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