बाबाधाम देवघर को ह्रदयपीठ और चिता भूमि भी कहा गया है
बाबाधाम देवघर को ह्रदयपीठ और चिता भूमि भी कहा गया है
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देवघर का बाबाधाम मंदिर सावन महीने में भक्तों और कांवड़ियों के स्वागत के लिए तैयार है. एक माह तक चलने वाले श्रावणी मेले में देश और विदेश के लाखों भक्त प्रतिदिन देवाधिदेव भगवान शंकर के पवित्र ज्योर्तिर्लिंग पर जलाभिषेक करेंगे. सावन महीने में शिव को गंगाजल अर्पित करने का विशेष महत्व है. इस दौरान श्रद्धालू देवनगरी देवघर से करीबन 108 किलोमीटर दूर बिहार के अजगैबीनगरी सुल्तानगंज से कांवड़ भर पैदल यात्रा के बाद बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं.

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा सगर के 60 हजार पुत्रों के उद्धार के लिए जब उनके वंशज भागीरथ यहां से गंगा को लेकर आगे बढ़ रहे थे, तब इसी अजगैबीनगरी में गंगा की तेज धारा से तपस्या में लीन ऋषि जान्व्ही की तपस्या भंग हो गई. इससे क्रोधित हो ऋषि पूरी गंगा को ही पी गए. बाद में भागीरथ के अनुनय-विनय पर ऋषि ने जंघा को चीर कर गंगा को बाहर निकाला. यहां मां गंगा को जान्व्ही के नाम से जाना जाता है.

यह भी माना जाता है कि मां गंगा के इसी तट से भगवान राम ने पहली बार भोलेनाथ को कांवड़ भर कर गंगा जल अर्पित किया था और सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जारी है. सुल्तानगंज से जल उठाने के बाद कंवड़िये बोल-बम का उदघोष करते हुए बाबा के मंदिर की ओर बढ़ते हैं. यह रास्ता काफी कठिन होता है. 

इस दौरान भक्तों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लेकिन इसके बावजूद भक्तों का जोश और उमंग देखते ही बनता है. इस दौरान कुछ ऐसे भक्त भी होते हैं जो इस 108 किलोमीटर की कठिन यात्रा को 24 घंटे में पूराकर जलार्पण करने का संकल्प लेते है जिन्हें डाकबम कहते है. बाबाधाम देवघर को ह्रदयपीठ और चिता भूमि भी कहा गया है. इसी पावन धरा पर माता सती का ह्रदय गिरा था. इस वजह से यह ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्ति पीठ भी है.

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