लेहः केंद्र सरकार ने बीते पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर से विशेष दर्जे को समाप्त कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए। लद्दाख की यह पुरानी मांग थी। इस मांग की पूर्ति होने के बाद वहां जश्न का माहौल है। मगर साथ ही उनके कुछ चिंताएं भी है। लद्दाख के लोग केंद्र सरकार से इसे जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस संबंध में केंद्र सरकार से सिफारिश भी की है। मगर उसने यह सिफारिश पांचवीं नहीं, बल्कि छठी अनुसूची के तहत की है। पांचवीं अनुसूची के तहत असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को जनजातीय क्षेत्र घोषित किया गया है।
ये राज्य जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधीन आते हैं। वहीं, छठी अनुसूची के तहत उत्तर पूर्व के चार राज्यों को जनजातीय क्षेत्र का दर्जा हासिल है। ये राज्य गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं। लद्दाखी अपने लिए जनजातीय क्षेत्र का दर्जा इसलिए पाना चाहते हैं ताकि देश के दूसरे हिस्सों से लोग आकर वहां बस नहीं पाएं। ऐसे में उन्हें लद्दाख की जनसांख्यिकी बदलने का खतरा नहीं रहेगा। साथ ही, वहां की जमीन पर उनके विशेषाधिकार भी सुरक्षित रहेंगे।जनजातीय क्षेत्र घोषित होने के बाद लद्दाख को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवंटित होने वाले केंद्रीय फंड का बड़ा हिस्सा मिलने लगेगा। राज्यों को आवंटित फंड सामान्य केंद्रीय सहायता कहलाती है और इसका अनुपात 30:70 का होता है।
एनसीए का 30 फीसद हिस्सा 11 विशेष राज्यों को जाता है, जबकि बाकी के राज्यों में शेष बचा 70 फीसद फंड बांट दिया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्यों में केंद्र सरकार की योजनाओं की 90 फीसद फंडिंग भी केंद्र ही करता है, जबकि शेष 10 फीसद रकम राज्यों को बिना ब्याज के लोन के रूप में दी जाती है। लद्दाख 31 अक्टूबर से आधिकारिक तौर पर केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा, इसलिए देश के अन्य हिस्से में लागू कानून भी वहां लागू हो जाएंगे। ऐसे में लद्दाख में भी जमीन खरीदने का हक भी देशवासियों को मिल जाएगा। इसी से बचने के लिए लद्दाख ने खुद के लिए आदिवासी क्षेत्र दर्जे की मांग की है। बता दें कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक लद्दाख की 50 प्रतिशत आबादी आदिवासी है। लद्दाख लंबे समय से कश्मीर पर भेदभाव का आरोप लगाती रही है।
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