
इम्फाल: बीते काफी समय से हिंसा की मार झेल रहे मणिपुर के कांगपोकपी जिले के सैबोल गाँव में शुक्रवार (3 जनवरी) को पुलिस पर बड़ा हमला हुआ। कुकी उग्रवादियों की भीड़ ने पुलिस अधीक्षक (एसपी) मनोज प्रभाकर और डिप्टी कमिश्नर के दफ्तरों पर हमला किया। इस हमले में एसपी मनोज प्रभाकर घायल हो गए। उनकी तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें उनके माथे से खून बहता हुआ देखा जा सकता है।
कुकी उग्रवादी अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे और छद्म वेश में आए थे। कहा जा रहा है कि इस घटना के पीछे कमिटी ऑफ ट्राइबल यूनिटी (CoTU) का हाथ है, जिसने सैबोल गाँव में केंद्रीय बलों की तैनाती के खिलाफ ‘पूर्ण बंद’ का आह्वान किया था। CoTU ने केंद्रीय बलों द्वारा ‘सामुदायिक बंकरों’ पर कब्जे और 31 दिसंबर को महिलाओं पर कथित लाठीचार्ज के विरोध में यह कदम उठाया। शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन के दौरान कुकी उग्रवादियों ने शाम को एसपी के कार्यालय को घेर लिया और उसे सील करने की कोशिश की। भीड़ ने कार्यालय में तोड़फोड़ की और कई वाहनों को नष्ट कर दिया। पुलिस पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंके गए। स्थिति को संभालने के लिए सुरक्षा बलों ने आँसू गैस के गोले और खाली कारतूस दागे, जिससे उग्र भीड़ को तितर-बितर किया गया।
CoTU का दावा है कि इस झड़प में उनके करीब 15 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से 11 को ICU में भर्ती कराया गया है। उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान केंद्रीय बलों ने इलाके में बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया। मणिपुर पुलिस ने सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा कि स्थिति अब नियंत्रण में है और इलाके की कड़ी निगरानी की जा रही है। दूसरी ओर, CoTU ने अपनी बंद की घोषणा को 24 घंटे के लिए और बढ़ा दिया है।
आखिर क्या है मणिपुर हिंसा की असल जड़?
मणिपुर 90 फीसद पहाड़ी और 10 फीसद जमीन से बना हुआ राज्य है। वहां ये नियम है कि पहाड़ी इलाकों में केवल वही लोग निवास व् काम कर सकेंगे, जिन्हे आदिवासी का दर्जा प्राप्त है यानी ST केटेगरी का प्रमाणपत्र। मणिपुर में कुकी-जो समुदाय को ST सर्टिफिकेट मिला हुआ है, जिनकी कुल आबादी राज्य में 40 फीसद के आस-पास है, इनमे से बड़ी संख्या ईसाई धर्म में मतांतरित हो चुकी है। अब इन्ही 40 फीसद लोगों का पूरे 90 फीसद पहाड़ी इलाकों पर कब्जा है।
वहीं, मैतई समुदाय, जो वैष्णव धर्म का पालन करता है, उसकी आबादी 53 है, वो यहाँ का स्थायी निवासी है, लेकिन उसके पास सत सर्टिफिकेट नहीं। वो 53 फीसद आबादी 10 फीसद मैदानी क्षेत्र में रहने और काम करने के लिए मजबूर है, क्योंकि वो पहाड़ी क्षेत्र में नहीं जा सकते। आरोप ये भी है कि, कुकी-जो समुदाय, पहाड़ी इलाकों में अफीम की अवैध खेती और हथियारों का अवैध धंधा करता है, जिसे चीन और म्यांमार का समर्थन प्राप्त है। संभवतः ये कारण भी हो सकता है कि कुकी उग्रवादियों के पास इतने घातक हथियार पाए जा रहे हैं, जिनसे वो खतरनाक नुकसान पहुंचा रहे हैं।
कुछ रिपोर्ट्स में ये भी दावे किए जा रहे हैं कि, खालिस्तानियों का समर्थन भी कुकी-जो समुदाय को प्राप्त है, जो अपने लिए अलग देश की मांग करते हैं। इसलिए कनाडा से भी इन्हे फंड मिलता है। दूसरी तरह मैतई समुदाय ने संवैधानिक रास्ता अपनाया और कोर्ट से गुहार लगाई कि उन्हें ST का दर्जा दिया जाए, ताकि वे भी अपनी आजीविका बेहतर तरीके से चला सकें। प्रदेश की हाई कोर्ट ने तमाम तथ्यों पर गौर किया और पाया कि, मैतई को ST का दर्जा पाने के पात्र हैं। लेकिन, मैतई को ST दर्जा मिलने से कुकी-जो समुदाय उबल उठा और विरोध स्वरुप हिंसा शुरू हो गई, हाई कोर्ट के आदेश पर रोक भी लगा दी गई, यानी मैतई का ST दर्जा रोक दिया गया, परन्तु हिंसा का तांडव अब तक जारी है।
विदेशी ताकतों द्वारा समर्थित कुकी-जो समुदाय के लोग, मैतई लोगों को निशाना बना रहे हैं और जो प्रदेश की शांति सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षाबल भेजे गए हैं, उन्हें भी। इस पूरी हिंसा में धर्म का बड़ा रोल है, वरना चर्च इसमें प्रतिक्रिया नहीं देता। भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों के चर्चों को भी मणिपुर में दिलचस्पी है, क्यों? क्योंकि कुकी-जो समुदाय, जो धर्मान्तरण कर चुका है, वो एक अलग ईसाई देश बनाने में साथ देगा। यही खेल बांग्लादेश के कुछ सीमावर्ती इलाकों में भी चल रहा है, जिसको लेकर पूर्व पीएम शेख हसीना ने बयान भी दिया था कि, कुछ हिस्सों को तोड़कर एक नया ईसाई देश बनाने की साजिशें चल रहीं हैं। उसमे भारत के भी कुछ हिस्से शामिल हैं, पूर्वोत्तर में उभर रहे उग्रवादी उसी का परिणाम हैं, और कुछ भूतकाल की गलतियों का भी नतीजा हैं। बहरहाल, फ़िलहाल, मणिपुर में मैतई समुदाय और सुरक्षाबल, दोनों मुसीबत का सामना कर रहे हैं, देखते हैं, सरकार इसका क्या समाधान निकालती है ?