आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस विधिपूर्वक प्रभु श्री गणेश की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा कष्ट दूर होते हैं साथ ही धन और समृद्धि में भी वृद्धि होती है। वही इस बार 7 जून को कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। ब्रह्मा और महालक्ष्मी योग बन रहे हैं।
ऐसे करें पूजा:-
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर लें तथा स्वच्छ कपड़े धारण कर लें।
पूजा स्थल को की साफ सफाई करने के पश्चात् गंगाजल का छिड़काव करें।
गणपति बप्पा का तिलक करें और पुष्प चढ़ाएं।
भगवान गणेश को दूर्वा की गाठ चढ़ाएं।
उसके बाद भोग लगाएं।
पूजा समाप्त होने के बाद आरती करें और क्षमा याचना करें।
गणेश जी की आरती:-
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
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