जानिए किसने और क्यों रखा था कान्हा का नाम कृष्णा
जानिए किसने और क्यों रखा था कान्हा का नाम कृष्णा
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आप सभी को बता दें कि आज यानी 23 अगस्त और 24 अगस्त को जन्माष्टमी का पवन पर्व मनाया जाने वाला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कृष्ण का नाम 'कृष्ण' क्यों और किसने रखा. जी हाँ, आइए जानते हैं.

पौराणिक कथा - एक दिन वासुदेव प्रेरणा से कुल पुरोहित गर्गाचार्य गोकुल पधारे. नन्द यशोदा ने आदर सत्कार किया और वासुदेव देवकी का हाल लिया जब आने का कारण पूछा तो गर्गाचार्य ने बतलाया है पास के गांव में बालक ने जन्म लिया है नामकरण के लिए जाता हूं बस रास्ते में तुम्हारा घर पड़ता था सो मिलने को आया हूं. यह सुन कर नन्द यशोदा ने अनुरोध किया बाबा हमारे यहां भी दो बालकों ने जन्म लिया उनका भी नामकरण कर दो. गर्गाचार्य ने मना किया तुम्हें है हर काम जोर शोर से करने की आदत. कंस को पता चला तो मेरा जीना मुहाल करेगा. नन्द बाबा कहने लगे भगवन गौशाला में चुपचाप नामकरण कर देना हम ना किसी को बताएंगे. गर्गाचार्य तैयार हुए जब रोहिणी ने सुना कुल पुरोहित आए हैं गुणगान बखान करने लगी.

यशोदा बोली गर्ग इतने बड़े पुरोहित हैं तो ऐसा करो अपने बच्चे हम बदल लेते हैं तुम मेरे लाला को और मैं तुम्हारे पुत्र को लेकर जाउंगी देखती हूं कैसे तुम्हारे कुल पुरोहित सच्चाई जानते हैं. माताएं परीक्षा पर उतर आईं. बच्चे बदल गौशाले में पहुंच गईं. यशोदा के हाथ में बच्चे को देख गर्गाचार्य कहने लगे ये रोहिणी का पुत्र है इसलिए एक नाम रौहणेय होगा अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा तो एक नाम राम होगा और बल में इसके समान कोई ना होगा तो एक नाम बल भी होगा मगर सबसे ज्यादा लिया जाने वाला नाम बलराम होगा. यह किसी में कोई भेद ना करेगा सबको अपनी तरफ आकर्षित करेगा तो एक नाम संकर्षण होगा.

अब जैसे ही रोहिणी की गोद के बालक को देखा तो गर्गाचार्य मोहिनी मुरतिया में खो गए अपनी सारी सुधि भूल गए खुली आंखों से प्रेम समाधि लग गयी गर्गाचार्य ना बोलते थे ना हिलते थे ना जाने इसी तरह कितने पल निकल गए यह देख बाबा यशोदा घबरा गए हिलाकर पूछने लगे बाबा क्या हुआ ? बालक का नामकरण करने आए हो, क्या यह भूल गए. यह सुन गर्गाचार्य को होश आया है और एकदम बोल पड़े नन्द तुम्हारा बालक कोई साधारण इंसान नहीं यह तो ...यह कहते हुए जैसे ही उन्होंने अंगुली उठाई तभी कान्हा ने आंख दिखाई. कहने वाले थे गर्गाचार्य कि यह तो साक्षात् भगवान हैं. तभी कान्हा ने आंखों ही आंखों में गर्गाचार्य को धमकाया है बाबा मेरे भेद नहीं खोलना. मैं जानता हूं बाबा यहां दुनिया भगवान का क्या करती है उसे पूज कर अलमारी में बंद कर देती है और मैं अलमारी में बंद होने नहीं आया हूं, मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूं, मां की ममता में खुद को भिगोने आया हूं गर आपने भेद बतला दिया मेरा हाल क्या होगा यह मैंने तुम्हें समझा दिया.

मगर गर्गाचार्य मान नहीं पाए जैसे ही दोबारा बोले ये तो साक्षात् तभी कान्हा ने फिर धमकाया बाबा मान जाओ नहीं तो जुबान यहीं रुक जाएगी और अंगुली उठी की उठी रह जाएगी. यह सारा खेल आंखों ही आंखों में हो रहा था पास बैठे नन्द यशोदा को कुछ ना पता चला था. अब गर्गाचार्य बोल उठे आपके इस बेटे के नाम अनेक होंगे जैसे कर्म करता जाएगा वैसे नए नाम होते जाएंगे लेकिन क्योंकि इसने इस बार काला रंग पाया है इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा इससे पहले यह कई रंगों में आया है. मैया बोली बाबा यह कैसा नाम बताया है इसे बोलने में तो मेरी जीभ ने चक्कर खाया है. कोई आसान नाम बतला देना तब गर्गाचार्य कहने लगे मैया तुम इसे कन्हैया, कान्हा, किशन या किसना कह लेना. यह सुन मैया मुस्कुरा उठी और सारी उम्र कान्हा कहकर बुलाती रही.

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