नीले आसमान के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस’, जानिए वायु प्रदुषण के दुष्प्रभाव और बचने के उपाय
नीले आसमान के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस’, जानिए वायु प्रदुषण के दुष्प्रभाव और बचने के उपाय
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19 दिसंबर 2019 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 2020 से प्रतिवर्ष 7 सितंबर को नीले आसमान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस मनाने का प्रस्ताव स्वीकार किया था। इससे पहले वायु प्रदूषण की समस्या को रेखांकित करते हुए 2014 में सरकार ने वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की निगरानी शुरू की थी और आज आठ मानकों पर प्रदूषण के स्तर पर निगाह रखी जा रही हैं। आज नीले आसमान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस  पर आइए क्या होता है वायु प्रदूषण का प्रभाव और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है। 

वायु प्रदूषण के प्रभाव :-

- अगर वायुमण्डल में निरंतर अवांछित रूप से कार्बन डाइ आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन, आक्साइड, हाइड्रो कार्बन आदि मिलते रहें हैं, तो स्वाभाविक है कि ऐसे प्रदूषित वातावरण में सांस लेने से फेफड़ों से जुड़ी बीमारियाँ होंगी। साथ ही उल्टी घुटन, सिर दर्द, आँखों में जलन आदि बीमारियाँ हो सकती है।

-वाहनों व कारखानों से निकलने वाले धुएँ में सल्फर डाइ आक्साइड की काफी मात्रा होती है, जो कि पहले सल्फाइड व बाद में सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का अम्ल) में बदलकर वायु में बूदों के रूप में मौजूद रहती है। बारिश के दिनों में यह बारिश के पानी के साथ पृथ्वी पर गिरती है जिसमें भूमि की अम्लता बढ़ती है और उत्पादन-क्षमता घट जाती है। साथ ही सल्फर डाइ आक्साइड से दमा रोग हो जाता है।

-कुछ रासायनिक गैसें वायुमण्डल में पहुँच कर, वहाँ ओजोन लेयर के साथ क्रिया कर उसकी मात्रा को कम करती हैं। ओजोन लेयर अन्तरिक्ष से आने वाले हानिकारक विकरणों को अवशोषित करती है। बता दें कि जब ओजोन मण्डल की कमी होगी, तब त्वचा कैंसर जैसे जानलेवा रोग हो सकते है।

-वायु प्रदूषण से भवनों, धातु व स्मारकों आदि का क्षय होता है। ताजमहल को भी मथुरा तेल शोधक कारखाने से नुकसान हुआ है। वायुमण्डल में आक्सीजन का लेवल कम होना भी प्राणियों के लिए जानलेवा है, क्योंकि आक्सीजन की कमी से प्राणियों को श्वसन में समस्या आयेगी। फैक्टरियों से निकलने के बाद रासायनिक पदार्थ व गैसों का अवशोषण फसलों, वृक्षों आदि पर करने से प्राणियों पर बुरा असर पड़ेगा।

वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय :-

-फैक्टरियों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित करना चाहिए, साथ ही ऐसी तकनीक इस्तेमाल में लाने के लिए बाध्य करना चाहिए जिससे कि धुएँ का ज़्यदातर भाग अवशोषित हो और अवशिष्ट पदार्थ व गैसें अधिक मात्रा में वायु में न मिल पायें।

-शहरीकरण की प्रक्रिया को धीमा करने के लिए गाँवों व कस्बों में ही रोजगार व कुटीर उद्योगों व अन्य सुविधाएं मुहैया कराना चाहिए। वाहनों में ईंधन से निकलने वाले धुएँ को ऐसे समायोजित, करना होगा जिससे की कम-से-कम धुआँ बाहर निकले। 

-निर्धूम चूल्हे व सौर ऊर्जा की तकनीकि को बढ़ावा देना चाहिए। ऐसे ईंधन के इस्तेमाल की सलाह दी जाए, जिसके उपयोग करने से उसका पूर्ण आक्सीकरण हो जाए और धुआँ कम-से-कम निकले। 

- साथ ही वनों की हो रही अन्धाधुन्ध अनियंत्रित कटाई पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। इस काम में सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाएँ व प्रत्येक मानव को चाहिए कि वनों को ख़त्म होने से रोके व वृक्षारोपण कार्यक्रम में हिस्सा ले।

-इसको पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों को इसके प्रति जागृत करना चाहिए। इसकी जानकारी व इससे होने वाले नुकसान के प्रति मानव समाज को सचेत करने हेतु प्रचार माध्यम जैसे दूरदर्शन, रेडियो पत्र-पत्रिकाओं आदि के जरिए प्रचार करना चाहिए।

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