पितृपक्ष का समय चल रहा है और इस दौरान सनातन धर्म के अनुयायी अपने पितरों (पूर्वजों) के निमित्त श्राद्ध (Shradh) और तर्पण (Tarpan) करते हैं। सनातन धर्म में माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितर तृप्त होते हैं और अपनी संतानों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इस धार्मिक परंपरा के तहत पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान (Pind Daan) भी अनिवार्य माना गया है। पितृपक्ष के दिनों में यह धार्मिक कार्य विशेष महत्व रखता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पितर इन दिनों अपने परिजनों के बीच आते हैं और श्राद्ध से संतुष्ट होकर उन्हें आशीर्वाद देकर जाते हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो
पितृपक्ष के इस पवित्र अवसर पर एक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो को विकास मोहता (Vikash Mohta) नामक यूजर ने अपलोड किया है, जिसमें आचार्य दिनेश सेमल्टी जी ने श्राद्ध के महत्व और वंश परंपरा पर विस्तार से चर्चा की है। आचार्य जी ने बहुत ही सरल और सटीक ढंग से समझाया है कि कैसे श्राद्ध का सीधा संबंध हमारे डीएनए (DNA) से होता है और पितरों की पूजा का महत्व क्यों है।
श्राद्ध और DNA का संबंध
चिकित्सा विज्ञान में डीएनए का मतलब है डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid), जो हमारे शरीर की आनुवंशिक जानकारी को संचित करता है। लेकिन आचार्य दिनेश सेमल्टी जी ने इस वैज्ञानिक परिभाषा को वंश परंपरा से जोड़ते हुए इसे एक अलग रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने समझाया कि पिता ही पुत्र के रूप में जन्म लेते हैं, यानी पुत्र अपने पिता का ही विस्तार होता है। इसे वे 'डीएन' के रूप में परिभाषित करते हैं, जिसमें:
D का अर्थ है दादा (Grandfather)
N का अर्थ है नाना (Maternal Grandfather)
A का अर्थ है आत्मा (Soul)
इस प्रकार, आचार्य जी के अनुसार, हर व्यक्ति के शरीर में उसके माता-पिता दोनों के गुण होते हैं, और यह वंश परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। इस परंपरा को ध्यान में रखते हुए श्राद्ध का आयोजन किया जाता है ताकि पितरों को सम्मान मिल सके और उनकी कृपा से संतानों का जीवन सफल हो सके।
श्राद्ध का महत्व: आचार्य दिनेश सेमल्टी जी के अनुसार, सनातन धर्म में कहा गया है कि पिता पुत्र को जन्म देता है, दादा पौत्र को और परदादा पूरे परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। पितरों की कृपा से व्यक्ति को जीवन में यश, कीर्ति और संपत्ति प्राप्त होती है। इसलिए जब तक जीवन है, तब तक पितरों का श्राद्ध करना चाहिए और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं पिंडदान करना चाहिए।
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