जाने कैसे हुई तिरंगे की परिकल्पना कैसे तय हुआ तिरंगे का प्रारूप
जाने कैसे हुई तिरंगे की परिकल्पना कैसे तय हुआ तिरंगे का प्रारूप
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आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाये। हमारा देश आज 69वा स्वतन्त्रता दिवस मनाने जा रहा है। तिरंगे को फहराकर मनाया जाने वाला ये दिवस भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस तिरंगे को भारत की पहचान बनाने से पहले तिरंगे को कई रूपों मे ढाला गया,अंतत: ये तीन पट्टी वाला तिरंगा जो बीच मे सम्राट अशोक के चिन्ह को लिए हुये है भारत की पहचान के रूप मे विख्यात हो गया। हर भारतीय के लिए तिरंगा सम्मानीय है,इस तिरंगे के प्रारूप को तय करने मे पहले इसके कई स्वरूप बदले गए।

7 अगस्त 1906 मे बंगाल विभाजन के विरोध मे फहराया गया,सच्चिदानंद बोस का तिरंगा जिसमे सबसे ऊपर था संतरी रंग,बीच में पीला व सबसे नीचे था हरा रंग।संतरी रंग की पट्टी में 7 आधे खिले हुए कमल के फूल थे। सबसे नीचे एक सूरज और एक चंद्रमा था व बीच में देवनागरी में वंदेमातरम लिखा हुआ था।

दिसंबर 1906 मे स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने एक झण्डा प्रस्तुत किया। इसमे लाल और पीले रंग के इस झंडे पर वज्र और कमल के फूल भी थे इस झंडे को 1906 मे प्रदर्शित किया गया।

22 अगस्त 1906 को भीकाजी कामा कामा ने एक और तिरंगा जर्मनी मे फहराया। हरा रंग इस्लाम व केसरिया हिन्दू व बौद्ध धर्म का कहा गया। हरे रंग की पट्टी में आठ कमल थे जो ब्रिटिश हुकूमत के समय भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे। लाल रंग की पट्टी पर चाँद और सूरज बने हुए थे। इस तिरंगे को भीकाजी के साथ मिलकर बनाया था वीर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा ने।

इसके बाद गदर पार्टी ने भी अपना झंडा निकाला जिसमे क्रमशः लाल पीला और हारा रंग की पट्टी के ऊपर दो तलवारों के चिन्ह को अंकित किया गया था।अपने तिरंगे का इस्तेमाल एनी बेसेंट ने किया जिसमे लाल और हरे रंग की पट्टियों के ऊपर 7 सितारे,एक चाँद,एक सूर्य और कोने मे ऊपर की तरफ ब्रिटिश का झंडा अंकित था।

1916 मे कांग्रेस् ने पहली बार राष्ट्रध्वज का निर्माण करने का फैसला लिया। ये कार्य मछलीपट्टनम के आंध्रप्रदेश के लेखक "पिंगली वेंकैया" को दिया गया,महात्मा गांधी ने उन्हे ध्वज मे चरखा इस्तेमाल करने की सलाह दी। इस तिरंगे मे लाल और हरे रंग की पट्टियों मे चरखा लगाया।लेकिन लाल और हरा सिर्फ हिन्दू मुस्लिम को ही प्रदर्शित कर रहे थे इसलिए अन्य अल्पसंख्यक समुदायो के लिए सफ़ेद रंग जोड़ा गया।1921 मे ये ध्वज सबसे पहले कांग्रेस के द्वारा अहमदाबाद के सम्मेलन मे फहराया गया जिसमे क्रमशः सफ़ेद,हरे,लाल रंग की पट्टी मे चरखे का चिन्ह के साथ प्रदर्शित किया गया। 1924 मे तिरंगे का प्रारूप फिर से बदलकर कांग्रेस द्वारा सिर्फ केसरिया रंग का तिरंगा जिसमे कोने मे चरखा अंकित किया गया।

1931 मे फिर से तिरंगे के प्रारूप को लेकर कुछ बदलाव किए गए जिसकी कमान वापस वेंकैया जी को मिली यह झंडा कराची मे हुई बैठक मे पारित किया गया जिसमे ऊपर केसरिया, बीच मे सफ़ेद और उस पर चरखे का चित्र अंकित किया गया,सबसे नीचे हरे रंग को जगह दी गयी। दूसरी तरफ आज़ाद हिन्द फ़ौज़ की स्थापना उस झंडे के तले की जिसमें चरखे की जगह बाघ का चित्र बना हुआ था,इसकी अभिकल्पना सुभाषचन्द्र बोस ने की थी।

22 जुलाई 1947 मे स्वतंत्रता दिवस के महज 24 दिन पहले जल्दी जल्दी में एक कमेटी गठित की गई तब चरखे का स्थान लिया सारनाथ के "चक्र" ने। जिसे अशोक चक्र के नाम से जाना जाता है इस चक्र का डायमीटर सफ़ेद पट्टी की ऊँचाई का तीन चौथाई था।जिसकी अध्यक्षता डा.राजेंद्र प्रसाद को दी गई। इसमें सी.राजगोपालाचारी, सरोजिनीनायडू, कलाम, के.एम. मुंशी व बी.आर अम्बेडकर शामिल थे। इस झंडे को स्वीकृति मिली व यही झंडा आज का तिरंगा बना।

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