जानिए कर्नाटक की 'लक्ष्मीबाई', वीरांगना रानी चेन्नम्मा की कहानी
जानिए कर्नाटक की 'लक्ष्मीबाई', वीरांगना रानी चेन्नम्मा की कहानी
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19वीं सदी की शुरुआत में देश के बहुत से शासक अंग्रेजों की बदनीयत को समझ नहीं पाए थे. परन्तु उस समय भी कित्तुरु की रानी, रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी थी. रानी चेन्नम्मा की कहानी अधिकांश झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जैसे ही प्रतीत होती है. इस वजह से उनको 'कर्नाटक की लक्ष्मीबाई' भी कहा जाता है. वह पहली भारतीय शासक थीं जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया था. चाहे अंग्रेजों की सेना के मुकाबले उनके सैनिकों की संख्या कम थी और उनको गिरफ्तार किया गया था. परन्तु ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत का नेतृत्व करने के लिए उनको अब तक याद किया जाता है.

वहीं चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर, 1778 को ककाती में हुआ था. वह कर्नाटक के बेलगावी जिले में एक छोटा सा गांव है. उनकी शादी देसाई वंश के राजा मल्लासारजा से हुई जिसके पश्चात् वह कित्तुरु की रानी बन चुकी थी. कित्तुरु अभी कर्नाटक में है. शादी के पश्चात् उनका एक बेटा हुआ था जिनकी 1824 में मौत हो चुकी थी. अपने बेटे की मौत के पश्चात् उन्होंने एक अन्य बच्चे शिवलिंगप्पा को गोद ले लिया और अपनी गद्दी का वारिस घोषित किया. परन्तु ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी 'हड़प नीति' के अंतर्गत उसको स्वीकार नहीं किया. उस समय तक हड़प नीति लागू नहीं हुई थी फिर भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1824 में कित्तुरु पर कब्जा कर लिया था.

वहीं अंग्रेजों ने 20,000 सिहापियों और 400 बंदूकों के साथ कित्तुरु पर हमला कर दिया था. अक्टूबर 1824 में उनके बीच पहली लड़ाई हुई. उस लड़ाई में ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा. कलेक्टर और अंग्रेजों का एजेंट सेंट जॉन ठाकरे कित्तुरु की सेना के हाथों मारा गया. चेन्नम्मा के सहयोगी अमातूर बेलप्पा ने उसे मार गिराया था और ब्रिटिश सेना को भारी नुकसान पहुंचाया था. दो ब्रिटिश अधिकारियों सर वॉल्टर एलियट और स्टीवेंसन को बंधक बना लिया गया. अंग्रेजों ने वादा किया कि अब युद्ध नहीं करेंगे तो रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को रिहा कर दिया. परन्तु अंग्रेजों ने धोखा दिया और फिर से युद्ध छेड़ दिया. इस बार ब्रिटिश अफसर चैपलिन ने पहले से भी अधिक सिपाहियों के साथ हमला किया था. सर थॉमस मुनरो का भतीजा और सोलापुर का सब कलेक्टर मुनरो मारा गया. अंग्रेजों के मुकाबले कम सैनिक होने के वजह से वह हार गईं थी. फिर उन्हें बेलहोंगल के किले में कैद कर दिया गया. वहीं 21 फरवरी 1829 को उनकी मौत हो गई थी

चाहे चेन्नम्मा आखिरी लड़ाई में हार गई हो. परन्तु उनकी वीरता को हमेशा ही याद किया जाएगा. उनकी पहली जीत और विरासत का जश्न अब तक मनाया जाता है. वहीं हर साल कित्तुरु में 22 से 24 अक्टूबर तक कित्तुरु उत्सव लगता है जिसमें उनकी जीत का जश्न मनाया जाता है. रानी चेन्नम्मा को बेलहोंगल तालुका में दफनाया गया है. उनकी समाधि एक छोटे से पार्क में मौजूद है जिसकी देखरेख सरकार के जिम्मे में है. वीरांगना की कहानी रानी लक्ष्मी बाई की तरह ही नजर आती हैं. 

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