जानिए कैसे हुआ था तुलसी के साथ भगवान विष्णु का विवाह
जानिए कैसे हुआ था तुलसी के साथ भगवान विष्णु का विवाह
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं. इस साल 31 अक्टूबर को भगवान का शयनकाल खत्म होगा और इसके बाद ही कोई शुभ कार्य होगा. ये एकादशी दिवाली के 11 दिन बाद आती है. इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद सो कर जागते हैं तो तुलसी के पौधे से उनका विवाह होता है. देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है.

पूजा 

तुलसी विवाह के दिन एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन तुलसी जी के साथ विष्णु की मूर्ति रखी जाती है. विष्णु की मूर्ति को पीले वस्त्र से सजाया जाता है. तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाया जाता है. तुलसी जी के पौधे पर चुनरी चढ़ाकर विवाह के रिवाज होते है. 

कहानी 

पौराणिक कहानी के अनुसार प्राचीन समय में जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर हुआ. इसका विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से हुआ. उसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया था. अपने अजेय होने पर इसे अभिमान हो गया और स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा. दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे.

तब विष्णुजी ने माया से जलांधर का रूप धारण किया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया. इससे जलंधर की शक्ति क्षीर्ण हो गई और वह युद्ध में मारा गया. जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया.

मगर, विष्णुजी भी वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, इसलिए उन्होंने वृंदा के शाप का मान रखने के लिए अपना एक रूप पत्थर में प्रकट किया, जो शालिग्राम कहलाया.

बाद में जलंधर के साथ वृंदा सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा निकला. वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया.

एक और कथा के अनुसार  देवों और दानवों द्वारा किए गए समुद्र-मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए इस पौधे के हर हिस्से में अमृत समान गुण हैं.

 

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