शालिग्राम से किस तरह प्रकट हुए श्री राधारमण, जानिये
शालिग्राम से किस तरह प्रकट हुए श्री राधारमण, जानिये
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मथुरा। वृन्दावन में श्री कृष्ण के कई सारे मंदिर है लेकिन वहां के प्रसिद्ध मंदिरो में एक श्री राधारमण मंदिर भी है। इस मंदिर को गौड़ीय समाज का सबसे प्रसिद्ध मंदिर भी माना जाता है। मान्यता है कि, गोपाल भट्ट गोस्वामी के द्वारा श्री राधारमण जी की मूर्ति को प्रकट किया गया था। कहा जाता है कि, गोपाल भट्ट गोसवामी अपने प्रचार के लिए नेपाल गए थे, जहां वे गण्डकी नदी में स्नान कर रहे थे। वे स्नान करते समय सूर्य को अर्घ देने लगे तब उनके हाथ में एक शालिग्राम आ गया, फिर से वे सूर्य को अर्घ देने लगे तब एक और शालिग्राम उनके हाथ में आ गया, ऐसा तकरीबन 12 बार हुआ, यानी स्नान के वक्त गोस्वामी को 12 शालिग्राम मिले। गोस्वामी सारे शालिग्राम अपने साथ वृन्दावन लेकर आ गए, और यमुना नदी के तट, केशी पर एक कुटिया बनाकर सभी शालिग्रामों को स्थापित किया, और पूरी श्रद्धा भक्ति से उनकी पूजा अर्चना करने लगे।  

वृन्दावन की यात्रा पर निकले एक धनी सेठ ने, नगर में स्थापित श्री कृष्णा की सभी मूर्तियों के लिए अलग-अलग प्रकार के सुन्दर आभूषण और वस्त्र भेंट किये, जिसके चलते उसने गोपाल भट्ट गोस्वामी के द्वारा स्थापित किये शालिग्राम के लिए भी वस्त्र और आभूषण दिए, पर गोस्वामी सोच मे पड़ गए कि, शालिग्राम को किस प्रकार से वस्त्र धारण करवाएंगे। गोस्वामी के मन में आया कि, अगर शालिग्राम की जगह भगवान की मूर्ति होती तो, वे रोज भगवान का मनमोहक श्रृंगार करते, उन्हें नए वस्त्र पहनाते और साथ ही झूले में भी झुलाते। यही सब सोचते-सोचते गोस्वामी को नींद लग गई और जब वे सुबह उठे तब उन्होंने देखा कि, शालिग्राम साक्षात् त्रिभंग ललित द्विभुज मुरलीधर श्याम के रूप में बैठे है। बताया जाता है कि, यह घटना 1599 विक्रम संवत वैशाख शुक्ल पूर्णिमा की है। 

गोस्वामी ने इस घटना की जानकारी अपने सभी बड़े और गुरुजनों को दी, जिसके बाद श्री राधारमण जी का प्रागट्य उत्सव पुरे श्रद्धाभाव से मनाया। मान्यता यह भी है कि, जहा श्री राधारमण जी की मूर्ति प्रकट हुई थी उस जगह पर ही, राधा रानी ने श्री कृष्ण को रमण कहकर पुकारा था। इस लिए गोस्वामी ने शालिग्राम से प्रकट हुई मूर्ति को राधारमण नाम दिया। आज भी श्री राधारमण मंदिर में गोपाल भट्ट गोस्वामी के वंश द्वारा सेवा दी जा रही है। हर वर्ष वैशाख शुल्क पूर्णिमा पर भगवान का पंचामृत अभिषेक कर प्रागट्य उत्सव मनाया जाता है। श्री राधारमण जी की मूर्ति के साथ 11 शालिग्राम भी मंदिर में ही स्थापित है। 

श्री राधारमण जी की मूर्ति सिर्फ 12 उंगल की ही है, लेकिन उनका दर्शन बेहद ही मनमोहक है कि, उन्हें देखकर सुंदरता के देवता कामदेव भी मूर्छित हो जाएंगे। भगवान की मूरत को पीछे से देखो तो ऐसा प्रतीत होता है, जैसे शालिग्राम ही विराजित है। श्री राधारणाम जी की मूर्ति फूलों से भी नाजुक कमल चरणों वाली है, जो वेणु वादन की मुद्रा में हमेशा होठों पर मंद-मंद मुस्कान लिए है, वास्तव में उनका यह रूप अति मनमोहक है। श्री राधारमण जी के बारे में यह भी मान्यता है कि, उनका मुखारविंद राधा गोविन्द के समान है, वक्ष राधा गोपीनाथ के समान और चरण कमल मदनमोहन के समान है। इस लिए कहा जाता है कि, केवल श्री राधारमण के दर्शन मात्र से ही भगवान के तीनो रूपों का दर्शन हो जाता है। 

श्री राधारमण मंदिर का एक रहस्य यह भी है कि, यहां करीब 500 वर्षो से लगातार अग्नि जल रही है, जिसको लेकर मान्यता है, इस आग को श्री राधारमण मंदिर निर्माण के समय जलाया गया था। मंदिर में लगने वाला भोग इस आग पर ही पकाया जाता है। प्रसाद के लिए भोजन पकाए जाने वाले कक्ष में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है वहीं, भोजन पका रहे व्यक्ति भी केवल धोती पहनकर ही कक्ष में प्रवेश कर सकते है। भोजन पकने के दौरान अगर किसी कारणवश बाहर आना पड़ा तो कक्ष में वापिस जाने से पहले उन्हें दुबारा स्नान करना होता है। 

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