यहाँ जानिए दशा माता पर सुनी जाने वाली कथा
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चैत्र माह के कृष्ण कृष्ण पक्ष की दशमी को दशा माता का व्रत रखा जाता है। यह व्रत घर पर आई विपदा व समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इस दिन सुहागन महिलांए अपने घर की दशा सुधारने के लिए यह व्रत करती है। इसलिए इस व्रत को दशा माता का व्रत कहा जाता है। इस व्रत के करने से घर में सुख एवं समृद्धि आती है। इस बार वर्ष 2023 मे दशा माता का व्रत 17 मार्च, शुक्रवार को किया जाएगा। दशा माता के दिन राजा नल और रानी दमयंती की कथा सुनी जाती है आइये आपको बताते है...

राजा नल और रानी दमयंती की कथा:-
बहुत वक़्त पहले की बात है। एक प्रदेश में राजा नल व उसकी रानी दमयंती रहते थे। उनके दो पुत्र थे। राजा के प्रदेश में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। वहां की प्रजा बहुत सुखी व संपन्न थी। राजा के प्रदेश में हर प्रकार की सुख सुविधाएं उपलब्ध थी। एक वक़्त की बात है। जब होली के बाद राज महल में दासी काम कर रही थी। वह रानी दमयंती को बता रही थी कि आज उसका दशा माता का व्रत है। आज मैं पीपल के वृक्ष की पूजा कर दशामाता गले में धारण करूंगी। तब रानी दमयंती ने दासी से पूछा कि ऐसा करने से क्या होता है। तब दासी ने बताया कि ऐसा करने से घर की आर्थिक आर्थिक स्थिति सुधरती है। घर में सुख समृद्धि का वास रहता हैं। यह व्रत सभी सुहागन स्त्रियों को करना चाहिए। यह सुनकर रानी दमयंती ने कहा कि मैं भी यह व्रत करूंगी। तो मुझे बता देना कि यह कैसे किया जाता है। तब दासी ने बताया कि यह व्रत दशमी तिथि के दिन किया जाता है। इस दिन प्रातः स्नान कर कर बाल धोकर पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। दशा माता के नाम का डोरा गले में धारण किया जाता है। दशा माता से घर में सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

तत्पश्चात, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि आई। रानी दमयंती ने दसियों के साथ यह दशा माता का व्रत किया। गले में दशा माता का धागा धारण किया।पूजा करने के कुछ वक़्त पश्चात रानी महल मे आई। राजा की नजर रानी दमयंती के गले में पहने हुए धागे पर पड़ी। राजा नल ने रानी दमयंती से पूछा कि यह क्या है। रानी दमयंती ने राजा को सारी बात बताई। कहा कि यह दशा माता का धागा है इससे हमारे महल की दशा सुधरेगी। प्रदेश में सुख समृद्धि का वास होगा। राजा यह सुनकर बहुत ही क्रोधित हो गया । वह बोला ऐसा कुछ नहीं होता है। यह कहकर राजा ने रानी के गले से दशामाता का धागा तोड़कर नीचे गिरा दिया। तब रानी ने राजा से बोला कि यह आपने बहुत गलत किया है। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। रानी ने दशा माता से इसके लिए माफी मांगी और रोने लगी। कुछ दिनों बाद राजा के स्वप्न में एक बुढ़िया आई । उसने राजा से कहा कि पहले तेरे प्रदेश की स्थिति बहुत अच्छी थी क्योंकि तेरी दशा बहुत अच्छी चल रही थी। पर अब तेरी दशा बहुत खराब आने वाली है। तेरा राज तुझसे छिन जाएगा। ऐसा सुनकर राजा का स्वप्न टूट गया। कुछ दिनों बाद ऐसा ही हुआ जैसा उस बुढ़िया ने स्वप्न में कहा था। राजा के प्रदेश की हालत बहुत खराब हो गई। भूखमरी की स्थिति आ गई। राजा का खजाना खाली हो गया। राजा के पास भी अब कुछ नहीं बचा था। तब उसने सोचा कि हमें यह प्रदेश छोड़कर जाना ही पड़ेगा। तब राजा ने रानी दमयंती से कहा कि तुम अपने पीहर चली जाओ। पर रानी दमयंती ने कहा कि मैं आपको ऐसी हालत में छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। मैं आपके साथ ही रहूंगी। अब जैसा भी होगा हम दोनों एक साथ ही गुजारा करेंगे। तब राजा ने कहा ठीक है लेकिन हमें अपने जीवन का गुजारा बसर करने के लिए कुछ ना कुछ काम करना ही पड़ेगा। इसके लिए हमें प्रदेश छोड़कर किसी अन्य स्थान पर जाना पड़ेगा। यह कहकर राजा और रानी महल से निकल गए।

वही कुछ वक़्त तक चलने के बाद राजा व रानी को एक भील राजा का महल दिखाई दिया। तब राजा रानी ने यह निश्चय किया कि वे अपने दोनों पुत्रों को यही भील राजा के पास छोड़ देते हैं। यह सोचकर राजा रानी भील राजा के महल में गए। उन्होंने भील राजा को बोला कि हम हमारे दोनों पुत्रों को आपके पास अमानत के तौर पर छोड़कर जा रहे हैं। जब हमारी स्थिति अच्छी होगी तब हम इन्हें आकर वापस ले जाएंगे। ऐसा कहकर राजा ने अपने दोनों पुत्रों को वहीं छोड़ दिया। राजा और रानी ने अपने आगे की यात्रा प्रारंभ कर दी। कुछ दूर चलने के बाद राजा के पुराने मित्र का महल आया। राजा नल और दमयंती ने राजा से मिलने के लिए राजा के महल पहुंचे। मित्र राजा ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। राजा और रानी को उस ने रात में अपने शयनकक्ष में सुला दिया। रात को जब राजा की नींद खुली तो उसने देखा कि शयन कक्ष के कमरे में एक खूँटी लगी है। जिस पर एक महंगा गले हार टका है। वह खूंटी इस हार को धीरे-धीरे निकल रही है। देखते-देखते खूंटी इस हार को पूरा निकल गई। यह देखकर राजा घबरा गया और रानी को उठाया। वह रानी से बोला कि देखो यह खूंटी इस हार को निगल गई है। अब हमें हमारा मित्र चोर समझेगा। इसलिए हमे इसी वक़्त यहां से चले जाना चाहिए। यह सोचकर राजा रानी दोनों वहां से चुपचाप निकल गए। जब प्रातः मित्र राजा की पत्नी शयनकक्ष में आकर देखती है। तो खूंटी पर हार नहीं था । वह अपने पति से जाकर कहती हैं कि आपके मित्र कैसे चोर हैं। हमने उन्हें खाना खिलाया। उनका आदर सत्कार किया। शयनकक्ष में सुलाया और वह हमारा हार लेकर चले गए। ऐसे कैसे आपके मित्र हैं।

कुछ दिनों तक चलने के पश्चात राजा की बहन का गांव आ गया। तब उसने मुखबिर से सूचना अपनी बहन को पहुंचाई और कहा कि आपके भाई और भाभी दोनों आपके गांव में हैं। बहुत ही बुरी हालत में है। उनके पास ना हाथी घोड़ा कुछ भी नहीं है। वह अकेले ही हैं वह बर्बाद हो चुके हैं। उनका राज पाठ छीन चुका है। यह सुनकर राजा की बहन सोच में पड़ गई। उसने अपने भाई भाभी के लिए सूखी रोटी में प्याज रखकर उनसे मिलने पहुंची। भाई ने तो अपने हिस्से का खाना खा लिया। लेकिन भाभी ने उसके हिस्से का खाना एक गड्ढा खोदकर उसमें दबा दिया। फिर आगे चल दिए। चलते चलते रास्ते में एक नदी का किनारा आया। राजा और रानी बहुत थक चुके थे। राजा ने नदी में से कुछ मछलियां पकड़ी। उसने रानी को कहा कि आप इन को देखिए मैं गांव में होकर आता हूं। उस गांव में एक साहूकार था। जिसके उस दिन भोज था। राजा वहां से खाना खाकर आ गया।वह रानी के लिए भोजन लेकर लौट रहा था। लौटते वक़्त रास्ते में एक पक्षी ने भोजन पर झपट्टा मारा। जिससे सारा खाना गिर गया। राजा यह देखकर बहुत ही व्याकुल हो गया। वह सोचने लगा की रानी क्या सोचेगी कि वह अकेले खाना खाकर आ गए। मेरे लिए कुछ भी नहीं लाए। उधर दूसरी ओर रानी के पास जो मछलियां थी। वह जीवित होकर नदी में कूद गई। तब रानी ने सोचा कि राजा क्या सोचेंगे कि रानी ही सारी मछलियां खा गई। मेरे लिए कुछ भी नहीं बचाया। वह यह सोच कर रह गई।

राजा और रानी एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे। पर उन्हें कहने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी है। वह दोनों एक दूसरे के भाव समझ गए। वे वहां से चल दिए। चलते चलते रानी का पीहर आ गया। अब उन दोनों ने यह निश्चय किया कि हम दोनों यहीं रह कर कुछ काम करेंगे।यही अपना जीवन यापन करेंगे।रानी तो अपने पिता के राज महल में दासी का काम करने लगी। राजा उसी गांव के तेली की घानी में काम करने लगा। दोनों मन लगा कर मेहनत से खूब काम करते हैं। कुछ दिनों पश्चात दशा माता का व्रत फिर आया। प्रदेश की सभी रानियां और दासिया के साथ रानी दमयन्ती ने भी दशा माता का व्रत रखा था। इसलिए सभी प्रातः जल्दी ही स्नान कर रही थी। तब रानी दमयन्ती ने सभी रानियों के बाल गुंथे। राजमाता ने दासी (दमयन्ती) से कहा कि आओ मैं तुम्हारा सिर गुंथ दूँ। राजमाता दासी का सिर गूँथने लगी। तब दासी के सिर में राजमाता को एक राज चिन्ह दिखाई दिया। यह देखकर राजमाता की आंखों से आंसू आ गए। आंसू जाकर दासी की पीठ पर गिर गए। दासी ने पूछा कि आप रो क्यों रही है। तब राजमाता ने बताया कि मेरे एक पुत्री है। उसके सिर पर भी एक ऐसा ही निशान है। यह सुनकर दासी रोने लगी। उसने राजमाता को पूरी बात बताई कि मैं ही आप की पुत्री हूं। हमारे प्रदेश में विपदा आ गई थी। इसलिए मैं यहां पर दासी का काम कर रही हूं। यह सुनकर राजमाता भावुक हो गई और बेटी को गले से लगा लिया। तब रानी दमयंती ने कहा कि मां मैं भी दशा माता का व्रत करूंगी। दशा माता की कृपा से ही मेरे प्रदेश की स्थिति वापस सुधर जाएगा। यह कहकर रानी दमयंती ने भी दशा माता का व्रत का संकल्प लिया। राजमाता ने रानी दमयंती से राजा नल के बारे में पूछा कि वे कहां पर है। तब रानी दमयंती ने बताया कि वह तो एक तेली की घानी में काम करते हैं। राजमाता ने राजा नल को लेने के लिए सैनिक भेजें। उन्हें प्रदेश में बुलवाया गया। उनका खूब आदर सत्कार किया गया। वक़्त बीतता गया। कुछ दिनों पश्चात राजा के स्वप्न में फिर वही बुढ़िया आई।राजा से बोली कि तेरी दशा खराब थी। इसलिए तेरे प्रदेश का यह हाल हुआ। लेकिन अब तेरी दशा अच्छी आने वाली है। वापस तेरा प्रदेश खुशहाल हो जाएगा। यह सुनकर राजा का स्वप्न टूट गया। कुछ दिनों बाद राजा नल और रानी दमयंती अपने प्रदेश के लिए निकल गए।चलते चलते राजा नल रानी दमयंती उसी गांव में पहुंचे। जहां राजा की बहन का ससुराल था।

राजा नल ने सैनिकों से बहन को सूचना पहुंचाई कि आपके भैया भाभी आप से मिलने आए हैं। वे बहुत अच्छी हालत में हाथी, घोड़ा, हीरे, जवाहरात आदि अपने साथ लेकर आए हैं।यह सुनकर बहन बहुत खुश हुई। वह भाई भाभी से मिलने के लिए अच्छे-अच्छे पकवान खाना लेकर आई। यह देख कर रानी दमयंती ने कहा बाईसा उस वक़्त हमारी दशा बहुत खराब थी। इसीलिए आपने हमें सूखी रोटी और खाना खिलाया। लेकिन आज हमारी बहुत अच्छी दशा है। इसीलिए आप हमारे लिए पकवान लेकर आई है। लेकिन कोई बात नहीं मैं आपको आपका खाना वापस देना चाहती हूं। यह कहकर रानी दमयंती ने उस खड्डे को खुदवाया। जिसके अंदर उसने सूखी रोटी वह प्याज दबाया था। जब खड्डे को खोदा गया। तब उसमें से हीरे जवाहरात निकले। हीरे जवाहरात राजा नल ने अपनी बहन को तोहफे के स्वरूप दे दिए और आगे चल दिए। कुछ दिनों तक चलने के पश्चात राजा के मित्र का गांव आया। फिर वापस वह दोबारा राजा अपने मित्र से मिलने के लिए उसके महल में पहुंचा। राजा ने उसका आदर सत्कार किया। उन्हें वापस उसी शयनकक्ष में सुला दिया। जहां से वह गले का हार गायब हुआ था। जब राजा रात को सो रहा था। तब उसकी नींद खुली, तो उसने देखा कि जिस खूंटी ने हार निकला था। वह वही खूंटी वापस उस हार को उगल रही है। वह हार उसकी खूंटी पर टिका है।

प्रातः राजा ने मित्र राजा व उसकी पत्नी को कक्ष में बुलाया। उन्हें यह बताया कि उस वक़्त हमारी दशा बहुत खराब थी। इसीलिए यह हार खूँटी ने निगल लिया था। पर अब दशा माता की कृपा से हमारी दशा बहुत अच्छी व पहले जैसी हो गई है। इसीलिए यह हार खूँटी ने वापस निकाल दिया है। यह रहा आपका हार हम चोर नहीं थे। यह सुनकर मित्र राजा व उसकी पत्नी बहुत शर्मिंदा हुए। वह उनसे माफी मांगने लगे। अगले दिन राजा नल दमयंती वहां से आगे की यात्रा के लिए निकल गए। चलते-चलते भील राजा का महल आया। तब रानी ने कहा कि हम हमारे दोनों पुत्रों को भी साथ लेकर चलते हैं। जब राजा रानी भील राजा के महल पहुंचे। राजा ने भील राजा से कहा कि हमने हमारे पुत्रों को आपके पास अमानत के तौर पर छोड़ा था। अब हम वापस आ गए हैं। आप हमें हमारे पुत्र वापस दे दीजिए।भील राजा ने उनसे कहा कि आपके कोई पुत्र यहा पर नहीं है। यहां से तो वे भाग गए हैं । रानी ने वहां पर दो सुन्दर बालक देखे। उन्हें देखकर बोली कि यह दोनों तो मेरे पुत्र है। लेकिन भील राजा ने रानी को उसके पुत्र देने से मना कर दिया। तब रानी दमयंती ने कहा कि अगर ये मेरे पुत्र होंगे तो मेरे सीने से दूध निकल कर इनके मुंह में चल जाएगा। अगर यह आपके पुत्र होंगे तो मेरे सीने से दूध नहीं निकलेगा। यह कहकर उन दोनों पुत्रों को सामने खड़ा कर दिया गया। रानी के सीने से दूध निकल कर उनके मुंह में चला गया। तो रानी ने कहा कि यह मेरे पुत्र है। ऐसा कहकर वह अपने पुत्रों को लेकर वापस अपने प्रदेश को चले गए। प्रदेश पहले जैसा खुशहाल और सुख समृद्ध हो चुका था। सभी प्रजा ने राजा और रानी का स्वागत किया।

तत्पश्चात, राजा नल रानी दमयंती ने प्रजा में ढिंढोरा पिटवाया की सभी सुहागिन स्त्रियां चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता का व्रत करेंगी।जिससे हमारे प्रदेश में खुशहाली आएगी। उसके पश्चात सभी प्रदेश की सुहागन महिलाएं दशा माता का व्रत करने लगी है। दशामाता जैसा राजा नल और रानी दमयंती के साथ किया वैसा किसी के साथ मत करना। जैसा राजा नल रानी दमयंती की स्थिति सुधारी। उनको सुख समृद्धि प्रदान की वैसे सबकी करना।

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