भोपाल: मध्य और पश्चिमी भारत में मॉनसून की बारिश में धीमी गति के कारण सोयाबीन, धान, कपास, मक्का जैसे खरीफ फसलों की बोवनी में कम से कम दो सप्ताह की देरी हो सकती है. इसके कारण अंतत: पैदावार में कमी आ सकती है. भारत में होने वाली कुल बारिश का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मॉनसून सीजन में ही होता है. इसलिए मॉनसून भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद बन गया है.
मॉनसून की अच्छी बारिश के कारण कृषि पैदावार अच्छी होती है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आती है. इसके कारण सोना-चांदी से लेकर ट्रैक्टर, कार, मोटरसाइकिल, रेफ्रिजरेटर जैसे उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में तेजी आती है. सोयाबीन के उत्पादन में कमी के कारण भारत को पाम ऑयल, सोया ऑयल जैसे खाद्य तेलों के आयात को विवश होना पड़ेगा. दूसरी ओर, कपास के पैदावार में कमी से इसके निर्यात में भी कमी देखी जा सकती है. इसी तरह भारत चावल के मामले में विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक है, किन्तु पैदावार कम होने से इसके निर्यात पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है.
न्यूज एजेंसी रायटर्स के अनुसार मॉनसून की बारिश में देरी के कारण किसान समय पर बोवनी नहीं कर पाए हैं. कृषि मंत्रालय के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार अभी तक 2.03 करोड़ एकड़ भूमि पर ही किसान बोवनी कर पाए हैं, जो कि गत वर्ष के मुकाबले 9 प्रतिशत कम है. कपास की बोवनी में 9.4 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि सोयाबीन की बोवनी 51 प्रतिशत पीछे है.
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