Editor's desk: हालातों और बुरे वक़्त से लड़ती केतकी की कहानी ज़िंदगी के मायने बताती है
Editor's desk: हालातों और बुरे वक़्त से लड़ती केतकी की कहानी ज़िंदगी के मायने बताती है
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ज़िंदगी के लम्बे रास्तों में कब फूल सी राहे आ जाए और काँटों का सफर शुरू हो जाए पता नहीं चलता, लेकिन कई ऐसे लोग है जिन्होंने काँटों भरे रास्तों पर भी लगातार चलने का हौसला कमाया है, पैरों में छालों के साथ खून भी निकले और तब भी सफर पर चलना पड़े तो शायद हर कोई ज़िंदगी से हार मान जाता है लेकिन पुणे की रहने वाली केतकी जानी ने जो सहा है उसे खुद पर सोचकर ही डर सा महसूस होता है.

भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में किसी पुरुष का गांजा होना शायद आम बात होगी, साथ ही उस पुरुष को किसी की गलत टिप्पणियों का सामना भी न करना पड़े, लेकिन वहीं इस समाज में अगर कोई महिला अपने सर के सारे बाल हमेशा के लिए खो दे और उसके बाद भी इस समाज में पूरी हिम्मत के साथ जीने का हौसला ज़िंदा रखे है ये हर किसी के बस की बात नहीं है वो भी तब जब महिला किसी दफ्तर में अधिकारी हो. 

ये कहानी है गुजराती मूल की पुणे में रहने वाली केतकी जानी की जो पुणे में महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ब्यूरो में गुजराती भाषा विभाग में स्पेशल ऑफिसर है. केतकी की खुशियों से भरी ज़िंदगी में एक समय ऐसा आया जब केतकी की ज़िंदगी अचानक से बदल गई, एक दिन अचानक से केतकी के सर से बालों का गुच्छा केतकी के हाथों में आ गया और इस समस्या से निपटने के लिए जैसे डॉक्टर का रुख किया वहां पता चला कि उन्हें 'एलोपेशिया' नाम की गंजेपन की बीमारी है. 

इलाज के लिए दर-दर भटकती केतकी ने कभी सोचा नहीं था कि उन्हें ज़िंदगी में ये दिन भी देखना होगा जब उनके सर से लेकर भौहों तक के बाल अचानक से चले जाएंगे. लोगों से मिल रहे तानों के बीच केतकी के दिमाग में कई बार ख्याल आया कि 'क्यों न उन्हें मौत आ जाए' 'पति के रहते हुए गंजे होने वाली महिला अपशकुन होती है' जैसी बातों के बीच ऑफिस और घर वालों के ताने मिलते थे जो ज़िंदगी को और मुश्किलों में डाल रहे थे. 

अपने इलाज के दौरान एक समय ऐसा आया जब बालों को बचाने के लिए केतकी  "स्टेरॉइड" का सेवन करनी लगी थी. बाल तो धीरे-धीरे लौट रहे थे लेकिन तब तक जब तक  "स्टेरॉइड" का सेवन चलता रहा. वहीं विपरीत इसके सेवन से 50 किलो वजनी केतकी 85 किलो की हो गई और भूलने जैसी बीमारी ने उनके दिमाग पर घर कर लिया. परिवार की सलाह पर केतकी ने  "स्टेरॉइड" का सेवन बंद किया और फिर बालों का शरीर से पूरी तरह से नाता टूट गया. 

माँ की तकलीफ को औलाद से बेहतर शायद ही कोई समझ सकता है इस बीच एक दिन केतकी की किशोरावस्था की बेटी ने केतकी को अपने पास बैठा कर कहा कि "आप बहुत खूबसूरत हो. मैं भी अपना सर मुंडवा लेती हूं फिर हम दोनों साथ-साथ बाहर जाएंगे. 3 साल आपने ये सोचने में गुज़ार दिए कि लोग क्या सोच रहे हैं. ये उनकी परेशानी है. अब आप अपने बारे में सोचो."

बस यही दिन था उसके बाद ऑफिस और लोगों से स्कार्फ के सहारे बचने वाली केतकी ने बिना कुछ ढके लोगों के सामने आना शुरू कर दिया. टैटू का शौक रखने वाली केतकी ने अपने सर पर एक टैटू बनवाया और ज़िंदगी को अपने ढंग से जीना शुरू किया. एक वो दिन थे और एक आज का दिन है केतकी अब लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देती और ज़िंदगी को अपनी ज़िद पर जीती है. 

कहने और पढ़ने में साधारण सी लगने वाली कहानी में 4-5 साल का एक ऐसा संघर्ष छुपा है जिसके बारे में बात करते हुए केतकी की आँखें भर आती है. एलोपेशिया नाम की इस बीमारी से अब तक कितने ही लोगों ने अपनी जान को अपने हाथों से खत्म कर लिया. हाल ही में इस बीमारी से पीड़ित एक लड़की ने खंडवा के रेलवे स्टेशन पर आत्महत्या कर अपनी ज़िंदगी खत्म कर ली थी. 

हालातों और वक़्त से निकलकर जो इंसान मुसीबतों से लड़ने का साहस जुटाता है वहीं ज़िंदगी में जीत हासिल करता है. मुसीबत कैसी भी हो ज़िंदगी को खुद की ज़िद से जीने वाले कभी निराश नहीं होते. अच्छा वक़्त और बुरा वक़्त ज़िंदगी के दो पहलु होते है. हर बुरे वक़्त के सामने मौजूद अँधेरे के पीछे खुशियों का एक रास्ता होता है जो हमेशा आपके लिए खुला होता है बशर्ते है आप अँधेरा पार कर ले. बस ऐसी ही एक कहानी है केतकी की जो ज़िंदगी जीने के मायने सिखाती है. 

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