ईसाईयों के तलाक पर केरल हाई कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, ख़त्म हुआ ये नियम
ईसाईयों के तलाक पर केरल हाई कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, ख़त्म हुआ ये नियम
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कोच्ची: केरल उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10ए को निरस्त कर दिया है। इस अधिनियम में आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी देने से पहले पति-पत्नी को कम से कम एक साल तक अलग-अलग रहना अनिवार्य था। इसे कानून को अदालत ने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना है और इस धारा को असंवैधानिक बताया है। इसके साथ ही ईसाइयों के लिए इस प्रोविजन को निरस्त करते हुए अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार को भारत में सेम मैरिज कोड पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

केरल हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पति-पत्नी में नहीं बनती और वो आपसी सहमति ले तलाक लेना चाहते हैं, तो उन्हें एक साल तक अलग-अलग रहने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। अदालत ने शुक्रवार (8 दिसंबर) को कहा कि, 'भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 की धारा 10 ए के तहत आपसी सहमति से तलाक याचिका दाखिल करने के लिए एक साल या उससे ज्यादा समय तक अलगाव की न्यूनतम अवधि का निर्धारण मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और यह पूर्णतः असंवैधानिक है।'

अदालत ने इस मामले में दंपत्ति के एक साल अलग-अलग रहने की शर्त को निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति शोबा अन्नम्मा एपेन की खंडपीठ ने कहा कि, 'अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि नागरिकों की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रभावित करती है, इस मामले में ईसाई नागरिक जिन पर भारतीय तलाक अधिनियम लागू होता है।' अदालत ने आगे कहा कि, 'हमारा दृढ़ विचार है कि जब किसी की इच्छा के मुताबिक कार्य करने की आज़ादी छीन ली जाती है, तो इस प्रकार के प्रतिबंधों के परिणामों को सुरक्षित करने की किसी प्रक्रिया के बगैर, कानून दमनकारी हो जाएगा।'

बता दें कि, केरल हाई कोर्ट ने यह फैसला एक युवा ईसाई जोड़े की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। इस कपल की शादी इस साल की शुरुआत में ईसाई रीति-रिवाजों के मुताबिक हुई थी। इस मामले में पति की आयु 30 वर्ष और पत्नी की आयु 28 वर्ष है। दंपत्ति का कहना है कि वे मानते हैं कि उनकी शादी एक गलती थी। वे शादी के चार महीने बाद ही एक पारिवारिक अदालत गए थे, जहां न्यायालय ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया था। फैमली कोर्ट ने तलाक की याचिका के लिए एक साल अलग रहने के नियम का हवाला देते हुए सुनवाई करने से इंकार कर दिया था। जिसके बाद ये दंपत्ति उच्च न्यायालय गया और उन्होंने वहां तलाक के लिए एक साल अलग रहने के नियम को निरस्त  करने की मांग की। 

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